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शिक्षा की गुणवत्ता और अनुसंधान की गति बढ़ाने की जरूरत -राज्यपाल

लखनऊ विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह सम्पन्न

लखनऊ : प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज लखनऊ विश्वविद्यालय के 60वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि गृहमंत्री राजनाथ सिंह को डी0एससी0 की मानद् उपाधि प्रदान की तथा उपाधि प्राप्त छात्र-छात्राओं को पदक एवं उपाधि देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह, उप मुख्यमंत्री डा0 दिनेश शर्मा, कुलपति प्रो0 एस0पी0 सिंह, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण, कार्य परिषद एवं विद्वत परिषद के सदस्यगण, शिक्षकगण, छात्र-छात्राओं सहित अन्य विशिष्टजन भी उपस्थित थे। राज्यपाल ने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय के कैलेन्डर में महत्वपूर्ण दिवस होता है। उपाधि प्राप्त करने के बाद किताबी पढ़ाई समाप्त होती है और जीवन के संघर्ष की शुरूआत होती है। जीवन में कड़ी स्पर्धा है। ज्ञान और बाजार की दृष्टि से दुनिया बड़ी है। शार्टकट से नहीं बल्कि कड़ी मेहनत, प्रमाणिकता और पारदर्शिता से मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है। उन्होंने कहा कि असफलता के समय आत्मपरीक्षण करें तो निश्चित रूप से स्वयं की कमी दूर होगी और सफलता प्राप्त होगी। राज्यपाल ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 29 विश्वविद्यालयों में से 25 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह कैलेन्डर के हिसाब से सम्पन्न होने है। लखनऊ विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह 17वाँ दीक्षांत समारोह है और शेष 8 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह दिसम्बर अंत तक सम्पन्न होंगे। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह आयोजन पटरी पर आ गये हैं, शिक्षा की गुणवत्ता और अनुसंधान की गति बढ़ाने की जरूरत है।

छात्र अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हों – राजनाथ सिंह

दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति का कद उपाधि एवं पद से नहीं बल्कि कृतित्व से बड़ा होता है। माता-पिता एवं गुरू के सद्गुण देंखे उनमें कमी न निकालें। मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ भावनाओं का रिश्ता होता है। गुरूजनों को कभी भूलना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें पूरा आदर और सम्मान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी गुरू के महत्व को समझें। श्री राजनाथ सिंह इस अवसर पर अपने बचपन के गुरू ‘मौलवी साहब को याद करके भावुक हो गये।’ राजनाथ सिंह ने कहा कि ज्ञान के साथ संस्कार का होना जरूरी है। ज्ञान और संस्कार का संबंध टूट जाता है तो मनुष्य विनाशकारी हो जाता है। चरित्र का जीवन में बहुत महत्व होता है इसलिए अपनी मर्यादा को समझें। रावण धनवान, ज्ञानवान तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला था परन्तु उसकी पूजा नहीं होती जबकि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की पूजा होती है। मर्यादा का पालन पूज्य बनाता है। छात्र अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हों और उत्कृष्ट बनने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि असंभव को संभव करने के लिए अद्वितीय बनने का प्रयास करें तथा स्थापित व्यवस्था का सम्मान करें। इस अवसर पर राज्यपाल ने कुलपति प्रो0 एस0पी0 सिंह के एक वर्ष के कार्यकाल पर प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण किया। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री डा0 दिनेश शर्मा तथा कुलपति प्रो0 एस0पी0 सिंह ने भी अपने विचार रखे।

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