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शोकगीत, कॉमेडी नाइट का : कपिल शर्मा को समझना ही होगा…

comedy-nights-with-kapil_650x400_51455002547दस्तक टाइम्स एजेन्सी/सचमुच यह एक घटना फिलहाल काफी काबिलेगौर है कि कपिल शर्मा के कॉमेडी प्रोग्राम ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ के बंद होने की चर्चा तो काफी लोग कर रहे हैं, लेकिन उसके बंद होने पर अफसोस कोई-कोई ही जता रहा है। दरअसल, इस घटना का रहस्य कला और समाज के आपसी रिश्तों में छिपा हुआ है, सो आइए, हम यहां इस खूबसूरत और बहुत नज़दीकी रिश्ते को जानने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हम सभी का इन दोनों से गहरा नाता होता है।

जहां तक अभिनय (कला) के कमाल की बात है, दर्शकों को रुलाना सबसे आसान होता है और हंसाना सबसे कठिन। लेकिन हंसाते-हंसाते रुला देना तो कुछ ग़ज़ब की ही बात होती है। एक सच्ची कॉमेडी, एक अच्छी कॉमेडी इसी तरह की होती है। यह पहले तो हमारी ज़िन्दगी की उन गहरी सच्चाइयों को हल्के-फुल्के और व्यंग्य के अंदाज़ से हमारे सामने परोसती है, जिससे हम जी चुराते हैं, जिससे हम डरते हैं, या जिसे हम भूल ही चुके होते हैं, लेकिन सच्ची कॉमेडी यहां खत्म नहीं हो जाती। यहां से तो वह शुरू होती है। फिर यह आंखों द्वारा दिल तक पहुंचकर दिल और आंखों; दोनों को कुछ इस तरह निचोड़ देती है कि दिल पसीजकर आंखों के जरिये बहने लगता है।

पिछले 10 सालों में टेलीविजन के पर्दे पर दो सबसे लोकप्रिय कॉमेडियन अवतरित हुए हैं – राजू श्रीवास्तव और कपिल शर्मा। दोनों ने अपने-अपने समय में खूब धूम मचाई, बावजूद इसके कि दोनों की कॉमेडी अलग-अलग छोरों पर स्थित है। राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी हास्य से शुरू होकर पहले व्यंग्य तक पहुंचती है, और फिर करुणा में समाप्त हो जाती है। उनका अवलोकन (ऑब्ज़रवेशन) अद्भुत है। उनकी आंखों पर समाज के दोहरे चरित्र को पहचानने वाला विलक्षण चश्मा चढ़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश के गांव के जिस मध्यम वर्ग से वह आते हैं, उसने उनकी चेतना को पूरे देश की लोक चेतना का प्रतिनिधि बना दिया है, इसलिए यदि राजू किसी बारात का चित्र खींचते हैं, तो उसमें पूरे हिन्दुस्तान की बारात का चरित्र नजर आता था। साथ ही दिखाई देता है – लोगों का खोखलापन, उनकी मूर्खता, उनका छद्म और उनका भोलापन भी।

कपिल शर्मा में इन गुणों का नितांत अभाव है। दरअसल, उन्हें हास्य अभिनेता के बजाए ‘हास्य एंकर’ कहना ज्यादा सही होगा। वह हमारे यहां के उस पारसी थिएटर की परम्परा का आधुनिक संस्करण मालूम पड़ते हैं, जिसमें पुरुष महिलाओं का रोल किया करते थे। उसमें हल्के-फुल्के और अक्सर भौंडे संवादों और एक्शन के द्वारा दर्शकों को हंसाकर उन्हें बांधे रखने की कोशिश होती थी। उस नाटक में एक सूत्रधार (आज का एंकर) होता था, जो अपनी बोलचाल की शैली, चुटकुलेबाजी, माहौल पर की गई तत्काल टिप्पणियों तथा एक्टिंग के द्वारा माहौल को खुशनुमा बनाए रखता था। ऐसा ही कुछ आज के कवि सम्मेलनों की एंकरिंग में भी देखने को मिलता है।

कला के बिकाऊ बनते ही वह विज्ञापन का रूप ले लेती है। कपिल शर्मा की कॉमेडी नाइट इस हादसे की शिकारों का सर्वोत्तम और ताजा उदाहरण है। जैसे ही उनका यह शो रिलीज़ होने वाली फिल्मों का मंच बना, फिल्म के हीरो और हीराइनें दर्शकों के लिए प्रमुख हो गए। कपिल साइड में चले गए। साथ ही साइडलाइन हो गई उनकी कॉमेडी। कॉमेडी नाइट का यह बढ़ता और बदलता जा रहा कुनबा कहीं न कहीं यह कह रहा था कि ‘कपिल शर्मा तुम चूकते जा रहे हो…’ और अंततः यही हुआ। कपिल को समझना होगा कि लोकप्रियता और प्रसिद्धि; दोनों एक नहीं होते, लेकिन ये एक-दूसरे के विरोधी भी नहीं हैं। सवाल केवल यह है कि आप इन दोनों में से क्या चाहते हैं…?

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