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सावन: शिव के त्रिशूल से जुड़ी ये बातें नहीं जानते होंगे आप…

सावन के इस खास महीने में हजारों भक्त भगवान शिव की खास पूजा-अर्चना करते हैं। इन दिनों भगवान शिव का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है। उनकी जटाओं से बहती गंगा की धारा, माथे का चंद्रमा, शरीर पर भस्म, गले नाग देवता, जटाओं एवं कलाइयों में रुद्राक्ष की मालाएं, मोटे-मोटे कड़े, डमरू और हाथों में चमचमाता त्रिशूल उनको और भी आकर्षक बनाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि शास्त्रों में त्रिशूल को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार बिना त्रिशूल के शिव जी की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि त्रिशूल को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि, त्रिशूल में लगे तीनों फलत सतगुण, रजोगुण और तमोगुण के प्रती हैं। हिंदू धर्म के 4 वेदों में सबसे महत्वपूर्ण वेद आयुर्वेद में भी त्रिशूल की खासी व्याख्या की गई है। इसके मुताबिक ये तीन फलक वात, पित्त और कफ को दर्शाते हैं।

प्रचलित कथाओं के अनुसार शिव ने कैलाश पर्वत पर अपना निवास स्थान बनाया था। कहा जाता है कि शिव जी खूंखार जानवरों से बचने और पर्वतों पर चढ़ने के लिए त्रिशूल का इस्तेमाल करते हैं। यह भी कहा जाता है कि, भगवान शिव असुरों के संहार करने के लिए भी त्रिशूल का प्रयोग करते हैं।

शास्त्रों में त्रिशूल को भगवान शिव का अहम शस्त्र कहा गया है। त्रिशूल की पूजा को शिव की पूजा माना गया है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, पूरी विधि-विधान से त्रिशूल की पूजा करने वाले पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। मान्यता ये भी है कि त्रिशूल दान करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट समाप्त होते हैं। कहते हैं कि अपनी उपस्थिति का अहसास करवाने के लिए भगवान शिव त्रिशूल के अलावा डमरू भी धारण करते हैं।

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