तेहरान : ईरान में दो टन सोने के सिक्कों के साथ गिरफ़्तार हुए वहीद मज़लूमीन को आज सुबह फांसी दे दी गई। ईरान में वहीद मज़लूमीन और उनके साथी मोहम्मद इस्माइल ग़ासेमी की मौत की सज़ा को ईरान की सबसे बड़ी अदालत की मंजूरी मिल गई थी। वहीद मज़लूमीन और मोहम्मद इस्माइल ग़ासेमी को अदालत ने भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराध के मामले में कसूरवार ठहराया था। उन दोनों पर सोने के सिक्कों की जमाखोरी के जरिए मुद्रा बाज़ार के कामकाज में अनधिकृत रूप से दखल देने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में वहीद मज़लूमीन के साथ और भी लोग गिरफ़्तार किए गए थे। जब इस साल जुलाई में तेहरान के पुलिस चीफ़ ने दो टन सोने की अशर्फ़ियों के साथ एक शख़्स की गिरफ़्तारी की ख़बर दी और उसे ‘सिक्कों के सुल्तान’ के नाम से नवाज़ा तो ईरान के आम लोग वहीद मज़लूमीन को नहीं के बराबर जानते थे। उस समय तेहरान पुलिस ने बताया था कि इस शख़्स ने अपने लोगों को आदेश दिया था कि तेहरान के बाज़ार में तमाम सिक्कों को जिस भी क़ीमत पर हो, ख़रीद लो ताकि आने वाले दिनों में वे ख़ुद सोने के सिक्कों की क़ीमत तय करें।
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फिर बाद में हालांकि ये भी घोषणा की गई कि मज़लूमीन की दो टन सोने की अशर्फियाँ ज़ब्त नहीं की गई हैं। लेकिन ये भी कहा गया कि उन्होंने और उनके बेटे ने दो टन से ज़्यादा सिक्के ख़रीदे हैं। तब से लेकर अब तक मज़लूमीन का नाम ईरानी मीडिया में बार-बार लिया गया और उनके केस की फ़ाइल फांसी की सज़ा के लिए आगे बढ़ा दी गई। लेकिन इस फ़ाइल में ‘सिक्कों का सुल्तान’ एक मात्र शख़्स नहीं है जिसे आर्थिक अपराध के लिए मौत की सज़ा सुनाई गई थी। पिछले साल जून महीने के आख़िर में नए तरह की सोने की कुल अशर्फियाँ 12 लाख तूमान से भी अधिक थीं लेकिन जैसे ही विनिमय दर में तेज़ी आई, मुद्रा की क़ीमत भी उसी अनुपात में बढ़ गई। फिर इस साल जुलाई में जब वहीद मज़लूमीन की गिरफ़्तारी की ख़बर आई तो सोने के सिक्कों की क़ीमत तीन मिलियन तूमान से भी ऊपर पहुँच गई। न्याय विभाग के अधिकारियों का मानना है कि मज़लूमीन और उनके सहयोगियों ने बाज़ार से सिक्कों का ज़ख़ीरा इकट्ठा करके सिक्कों की आपूर्ति में गिरावट लाकर सिक्कों की क़ीमतें बढ़ा दी थीं।
56 साल के मज़लूमीन को नज़दीक से जानने वालों का कहना है कि वे 30 साल से भी ज़्यादा समय से तेहरान के बाज़ार में सोने और सिक्कों के लेनदेन का काम करते आ रहे थे। तेहरान के वनक रोड की गली के दुकानदार मज़लूमीन को वहीद के नाम से बुलाते थे, इसी गली में उनका दफ़्तर भी था, जहाँ से उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। लोकल मीडिया में वहीद के पड़ोसी दुकानदारों के हवाले से ये कहा जा रहा है कि मजलूमीन एक मेहनती शख़्स थे और वे अपनी अक्ल और हुनर के बल पर इस मकाम तक पहुँचे और उन पर लगे इल्ज़ाम झूठे थे।