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सुप्रीम कोर्ट बोला-एनआरसी मसौदे के आधार पर नहीं की जा सकती कोई बड़ी कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस के अंतिम मसौदे में शामिल नहीं किए जाने के आधार पर लोगों पर सख्त कार्रवाई नहीं की जा सकती है। यह महज एक मसौदा है। सोमवार को जारी मसौदे में असम के 40.70 लाख लोगों को भारतीय नागरिकता का सबूत पेश नहीं कर पाने के कारण शामिल नहीं किया गया है। 

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और आरएफ नरीमन की विशेष पीठ ने मंगलवार को केंद्र को निर्देश दिया कि सभी लोगों को अपने दावे और आपत्तियां दर्ज कराने का पूरा मौका दिया जाए। इसकी प्रक्रिया निष्पक्ष होनी चाहिए। लोगों की अपील पर विचार के लिए स्टेंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) बनाया जाए और इसे 16 अगस्त तक कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए। मामले पर अगली सुनवाई 16 अगस्त को होगी।

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी कहा कि मसौदे के आधार पर किसी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। पश्चिम बंगाल सरकार ने आशंका जताई है कि बड़ी संख्या में लोग उनके राज्य में आ सकते हैं। लिहाजा कोर्ट एनआरसी में शामिल नहीं किए गए लोगों का बायोमैट्रिक डाटा लेने की इजाजत दे।

इस पर पीठ ने कहा, ‘हम इस पर कोई विचार व्यक्त नहीं करना चाहते। हमारा चुप रहना न तो सहमति है, न विरोध है और न ही आश्वासन है।’ पीठ ने एनआरसी में शामिल नहीं किए गए लोगों को कोई भी मौखिक आश्वासन देने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, ‘अदालत आश्वासन नहीं देती, आदेश पारित करती है।’ 

7 अगस्त को सार्वजनिक हो जाएगा मसौदा
असम में एनआरसी के संयोजक प्रतीक हजेला ने एनआरसी मसौदा कोर्ट को सौंपा। उन्होंने बताया कि एनआरसी का अंतिम मसौदा 7 अगस्त से सार्वजनिक कर दिया जाएगा। लोग ऑनलाइन भी अपना स्टेटस चेक कर सकते हैं। 8 से 20 अगस्त के बीच लोग जान सकेंगे कि उनका नाम क्यों शामिल नहीं किया गया। लोग 30 अगस्त से 28 सितंबर के बीच दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं। 

हम में हिम्मत थी, हमने एनआरसी लागू किया : शाह
एनआरसी के मुद्दे पर राज्यसभा में मंगलवार को भी हंगामा हुआ। विपक्ष की नारेबाजी और हंगामे के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सदन में कहा कि एनआरसी ‘असम समझौते’ की आत्मा है। 1985 में कांग्रेस के तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने एनआरसी पर पहल की थी, लेकिन लागू करने की हिम्मत नहीं थी। हम में है और हम सूची बना रहे हैं।

शाह ने पूछा, ‘क्या विपक्ष असम में अवैध बांग्लादेशियों को बचाना चाहता है।’ इस पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्ष ने वेल में पहुंचकर हंगामा शुरू कर दिया। दो बार स्थगन के बाद भी हंगामा नहीं थमा तो कार्यवाही बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी गई।

इससे पहले सोमवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह स्पष्ष्ट कर चुके हैं कि एनआरसी में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश और निगरानी में बनाया जा रहा है। 

कोट

‘एनआरसी का मसौदा सियासी मंशा के साथ तैयार किया गया है। हम इस मंशा को पूरा नहीं होने देंगे। भाजपा लोगों को बांटने की कोशिश कर रही है। हालात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। देश में खून की होली खेली जाएगी। देश में गृहयुद्ध छिड़ेगा।’ – ममता बनर्जी, सीएम, प. बंगाल

‘अगर अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या शराफत से अपने देश वापस नहीं जाते हैं तो उन्हें गोली मार देनी चाहिए। इन लोगों ने भारत को बर्बाद करने की मंशा से असम में घुसपैठ की है। भारत में अवैध तरीके से रहने वाले सभी मुस्लिमों को वापस उनके देश भेजा जाना चाहिए।’ – टी. राजा सिंह, भाजपा सांसद, तेलंगाना

‘अल्पसंख्यकों को एनआरसी से बाहर कर केंद्र और असम की भाजपा सरकारों ने बांटने की राजनीति का लक्ष्य पूरा कर लिया। भाजपा की जातिवादी, सांप्रदायिक राजनीति के कारण पूरे देश में अराजकता का माहौल है। जरूरी कदम उठाने के लिए सर्वदलीय बैठक की तत्काल जरूरत है।’ – मायावती, बसपा प्रमुख

‘त्रिपुरा में सभी के पास वैध दस्तावेज हैं। राज्य में एनआरसी न तो कोई मुद्दा है और न ही इसकी जरूरत है। विदेशी मानसिकता के कुछ नेता इस मुद्दे पर माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। असम में भी एनआरसी संवेदनशील मुद्दा नहीं है। वहां के सीएम हालात से निपटने में सक्षम हैं।’ – बिप्लब कुमार देब, सीएम, त्रिपुरा

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