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सेना की चुनौतियां दोधारी तलवार जैसी, उपकरण खरीदने के लिए नही हैं पैसे

भारतीय सेना 12 लाख संख्याबल के साथ दुनिया में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी सेना है. लेकिन अब भारत की सेना को चुस्त, पारंपरिक और हाइब्रिड युद्ध के लिए पूरी तरह से चाक-चौबंद बनाने और सेना मुख्यालय के पुनर्गठन को लेकर कोशिशें की जा रही हैं. सेना कमांडरों के पिछले अर्धवार्षिक अधिवेशन में जनरल बिपिन रावत ने इसको लेकर एक योजना पेश की थी.
सेना की चुनौतियां दोधारी तलवार जैसी, उपकरण खरीदने के लिए नही हैं पैसे संसद में पिछले साल जो बजट पेश किया गया, उसमें सेना के पास नए उपकरणों को खरीदने के लिए अब तक का सबसे कम महज 26,826 करोड़ रुपये आवंटित था. यह रक्षा बजट का 13 फीसदी था. इसके पीछे वजह ये थी कि सेना के बजट का 87 प्रतिशत हिस्सा वेतन, ईंधन और गोला-बारूद खरीदने पर खर्च होना था.
लेकिन अब ऐसी संभावना जताई जा रही है कि पुनर्गठन से 1,00,000 सैनिकों की कमी होगी. आपको बता दें कि 2009 से अब तक के बजट में रक्षा व्यय 17 फीसदी के आसपास ही रहा है. 2018-19 के बजट में यह 16.6 फीसदी था.
सेना के बजट का 87 प्रतिशत हिस्सा वेतन, ईंधन और गोला-बारूद खरीदने पर खर्च होने की वजह से उपकरणों के लिए पैसे काफी कम हो जाते हैं. जबकि आने वाले वक्त में सेना को अपने 1980 के शस्त्रागार को बदलकर नए लड़ाकू हेलिकॉप्टरों, युटिलिटी हेलिकॉप्टरों और मिसाइलों के लिए कम से कम 1,00,000 करोड़ रु. की आवश्यकता है.
एनएसए अजीत डोभाल के तहत काम करने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की ओर से बीते साल नवंबर में एक रिपोर्ट सौंपी गई थी. इस रिपोर्ट में खर्च में कटौती के लिए 20 फीसदी स्थायी सेना को आरक्षित सेना के रूप में रखने की सिफारिश की गई थी. (प्रतीकात्मक फोटो- Reuters)

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