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CJI ने जज नियुक्ति के लिए रिटायर जजों के पैनल बनाने से जताई असहमति

l_cji-ts-thakur-1467738792 (1)एजेंसी/ नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश टी.एस.ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में न्यायाधीश नियुक्ति के इच्छुकों के नाम कॉलेजियम को भेजने से पहले छांटने के लिए रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाए जाने की सरकार की मंशा से अहमति जताते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया है। 

सीजेआई ने यह असहमति पिछले दिनों सीजेआई निवास पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज,कानून मंत्री डी.वी.सदानंद गौड़ा के साथ हुई बैठक में जताई है। यह बैठक सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच न्यायाधीश नियुक्ति के लिए तैयार होने वाली एमओपी (मेंमोरंडम ऑफ प्रोसिजर) पर चल रही खीचंतान को कम करने के उद्देश्य से हुई थी। 

पिछले साल दिसंबर में एनजेएसी एक्ट को रद्ध करने वाली संविधान बैंच ने सरकार को न्यायाधीश नियुक्ति में और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए एमओपी तैयार करने को कहा था। सरकार की ओर से तैयार किए गए एमओपी ड्राफ्ट में हाईकोर्ट में न्यायाधीश नियुक्ति के लिए नाम तय करने में संबंधित राज्य के महाधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर एटार्नी जनरल की राय लेने,सुप्रीम कोर्ट में न्यूनतम तीन जज वकील कोटे से सीधे नियुक्त होने के प्रावधान किए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट और सरकार एमओपी को लेकर शुरु से ही आमने सामने हैं। सुप्रीम कोर्ट विशेषकर कॉलेजियम की सिफारिश में से किसी भी नाम को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर रद्ध करने की सरकार की शक्ति वाले प्रावधान को लेकर राजी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यदि सरकार को इसकी छूट दी गई तो यह अप्रत्यक्ष रुप से कॉलेजियम की शक्तियों को हड़पने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले के विपरीत होगा। 

उल्लेखनीय है कि संवैधानिक पीठ ने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्ति व ट्रांसफर के लिए एकमात्र कॉलेजियम को संविधान सम्मत माना है।एक ओर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रही यह खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है वहीं दूसरी और देश के 24 हाईकोर्ट में 45 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली चल रहे हैं। 

1 जुलाई, 2016 को इलाहबाद हाईकोर्ट में सबसे ज्यादा 82 पद रिक्त चल रहे हैं और कोर्ट स्वीकृत पदों के मुकाबले मात्र 50 प्रतिशत न्यायाधीश से ही काम चला रहा है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भी 50 प्रतिशत पद रिक्त हैं तो पंजाब व हरियाणा हाईकेार्ट भी मात्र 54 प्रतिशत न्यायाधीशों से ही काम चला रहा है। 

राजस्थान हाईकोर्ट में भी न्यायाधीशों के 50 पद स्वीकृत हैं लेकिन फिलहाल 19 पद रिक्त चल रहे हैं। 24 में से केवल त्रिपुरा व सिक्किम हाईकोर्ट में ही सभी स्वीकृत पदों पर न्यायाधीश नियुक्त हैं लेकिन मणिपुर व मेघालय हाईकोर्ट में एक-एक पद रिक्त चल रहे हैं।

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