जांच एजेंसियों की लड़ाई में विदेशी सीक्रेट एजेंटों का नाम सामने आने से केंद्र सरकार खफा है। इस मामले में खासतौर से सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को सरकार की दोहरी नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। वजह, उन्होंने सीबीआई में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राकेश अस्थाना के साथ अन्य जिन लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कराया था, उनमें दो आरोपी लंबे समय से रॉ की मदद कर रहे थे।
इन्होंने दुबई व कई दूसरी जगहों पर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से संबंधित कुछ वित्तीय जानकारियां भी जुटाई थीं। इसके अलावा ये एजेंट दुबई व खाड़ी के देशों में पैसा लगाने वाले आईएएस-आईपीएस और दूसरे कई विभागों के अधिकारियों की जानकारी एकत्रित करने में लगे थे। विदेशों में ईडी के कई मामले सुलझाने में मदद करने वाले एजेंट भी अब दूर हट रहे हैं।
डीओपीटी के सूत्रों का कहना है कि सरकार ने पिछले दिनों रॉ एवं अन्य एजेंसियों के सीक्रेट एजेंट को लेकर सख्त हिदायतें भी जारी की हैं। इनमें साफ तौर से कहा गया है कि एजेंसी अपने सीक्रेट एजेंट का ध्यान रखे। जब किसी एजेंट के खिलाफ देश द्रोह का केस हो या फिर वह दूसरे मुल्क में रह कर किसी अन्य एजेंसी को अपनी गोपनीय फाइलें शेयर करता हुआ पकड़ा जाता है तो ही उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
सरकार ने नए एजेंटों के लिए कुछ नियम भी बनाए हैं। एजेंसियों को कहा गया है कि वे आपातकालीन स्थिति को छोड़कर बाकी समय के दौरान नए मापदंडों का पालन करें। सूत्र बताते हैं कि पीएमओ भी आलोक वर्मा की कार्रवाई से खासा नाराज है। राकेश अस्थाना व अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज होने से पहले ही उन्हें इशारे में सूचित कर दिया गया था कि इस केस में रॉ के लिए काम करने वाले एजेंट भी हैं, इसलिए वे इस केस में बहुत गहराई से अध्ययन करने के बाद ही आगे बढ़ें।
सूत्रों की माने तो मनोज प्रसाद और सोमेश प्रसाद के अलावा कई अन्य लोग रॉ की मदद कर रहे थे। मनोज प्रसाद ने तो रॉ के कई बड़े टॉस्क पूरे किए थे। उसने पाक के पूर्व राष्ट्रपति को लेकर कई अहम जानकारियां हासिल की थीं। साथ ही देश के कई बड़े नौकरशाह, जो विदेशों में अपने भारी निवेश को लेकर सरकार के निशाने पर थे, उनकी सूचनाएं भी एजेंसी को दी थी। ये एजेंट किसी अफसर को पैसे देकर, तबादला या फिर अन्य कोई काम कराकर सूचना हासिल करते थे।
कई बार इन्हें हनी ट्रैप की मदद से उनके खातों की जानकारी लेनी पड़ी थी। ऐसे में जांच एजेंसी अपने स्तर पर या दूतावास की मदद से एजेंटों का भी काम करा देती थी। अधिकांश एजेंट दूसरे देश में निवेश एवं अन्य कारोबार के सिलसिले में ही दूतावास या सीक्रेट एजेंसी की मदद लेते हैं। कुछ एजेंट ऐसे भी थे, जो विदेश में रहते हुए भारत में सरकार से कोई फेवर ले लेते थे।
सीबीआई के टॉप बॉस की लड़ाई में ईडी की मदद करने वाला भी मुसीबत में फंसा
बता दें कि मोईन कुरैशी मामले में रॉ के स्पेशल सेक्रेटरी सामंत गोयल, सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना, सोमेश प्रसाद और मनोज प्रसाद की आपसी बातचीत सामने आई थी। राकेश अस्थाना के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले की जांच कर रहे अधिकारी एके बस्सी ने तो सुप्रीम कोर्ट में ये सब बातें लिखित में दे दी थी।
अस्थाना, जो कि एजेंट की भूमिका को अच्छी तरह जानते थे, इसके बावजूद उन्होंने ईडी के अधिकारी राजेंद्र पाल उपाध्याय (आईपीएस), राजेश्वर सिंह (आईपीएस) और विकास मेहता का नाम विदेशी सिमकार्ड इस्तेमाल करने के मामले में सार्वजनिक कर दिया।
राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी और कैबिनेट सचिव को जो शिकायत दी थी, उसमें यह बात लिखी थी कि उक्त तीनों अधिकारी नेपाल के सिमकार्ड का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यहां तक लिख दिया कि राजेश्वर सिंह के दुबई निवासी दानिश शाह के साथ संबंध हैं।
अस्थाना के पत्र में शाह को कथित तौर से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आईएसआई) का एजेंट बताया गया था। यह भी सामने आया कि उसकी पत्नी के पास पाकिस्तान का पासपोर्ट है। इसके साथ ही कहा गया कि शाह की पत्नी का चचेरा भाई पाकिस्तान में बड़ा कारोबारी है।
हालांकि बाद में इस बात पर वित्त मंत्रालय और तत्कालीन ईडी निदेशक करनैल सिंह के बीच तीखी नोक-झोंक हो गई थी। करनैल सिंह के हस्तक्षेप के चलते राजेश्वर सिंह के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। बताया गया कि उनके बीच प्रोफेशनल रिश्ते थे, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
कुछ दिन बाद दानिश शाह ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वे ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह को करीब 15 साल से जानते हैं। मैने ईडी के कई केस जो कि दुबई से संबंधित थे, को सुलझाने में सिंह की मदद की थी। इस मामले के सामने आने के बाद ईडी को कई मामलों में मदद पहुंचाने वाले दो अन्य एजेंट भी पीछे हट चुके हैं।