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सर्जरी से डिलीवरी होने पर 96 घंटे से पहले छुट्टी देना गलत, अस्पताल पर लगा 1 करोड़ का जुर्माना

नई दिल्‍ली : राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (एनसीडीआरसी) ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सर्जरी से प्रसव (डिलीवरी) होने पर अगर प्रसूता को परेशानी है तो अस्पताल में 96 घंटे तक डॉक्टर की निगरानी में रखना जरूरी है। बेटी को जन्म देने के बाद एक महिला की मौत के मामले में आयोग ने यह फैसला दिया है। महिला की तबीयत खराब होने के बावजूद अस्पताल ने महज 50 घंटे के भीतर ही उसे छुट्टी दे दी थी। आयोग ने अस्पताल को महिला की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उसके परिजनों को एक करोड़ रुपये मुआवजा देने का आदेश भी दिया है।

आयोग के सदस्य डॉ. एस.एम कानितकर की बेंच ने लापरवाही के लिए अस्पताल प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है। आयोग ने फैसले में कहा कि तय मानकों के अनुसार बिना किसी परेशानी के सामान्य प्रसव में 48 घंटे तक अस्पताल में रखना जरूरी है, जबकि बिना किसी परेशानी के सर्जरी से प्रसव होने के बाद 96 घंटे तक मरीज को अस्पताल में रखना जरूरी है।

शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने कहा कि मौजूदा मामले में इलाज करने वाले डॉक्टर /अस्पताल ने सर्जरी से प्रसव होने के महज 50 घंटे के भीतर ही अस्तपाल से छुट्टी दे दी थी, जो कि पूरी तरह से गलत और अनुचित था। जिस दिन मरीज को अस्पताल से छुट्टी दी गई, उस दिन उसका ब्लड प्रेशर भी काफी बढ़ा हुआ था। महिला के मेडिकल रिकॉर्ड को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि सर्जरी से पहले इलाज करने वाले डॉक्टर ब्लड जमावट प्रोफाइल, किडनी और लिवर से जुड़ी रक्त और नेत्र परीक्षण जैसी आवश्यक जांच करने में नाकाम रहे।

आयोग ने ‌यह टिप्पणी करते हुए बेंगलुरु के एक अस्पताल को महिला की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए एक करोड़ रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने महिला की नाबालिग बेटी और अन्य की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला दिया है। नाबालिग बच्ची ने याचिका में निजी अस्पताल पर आपनी मां के इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए मुआवजे की मांग की थी।

आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को हर्जाने के एक करोड़ रुपये में से 90 लाख बच्ची के नाम फिक्स डिपॉजिट और 10 लाख रुपये उसके नाना को देने को कहा है। आयोग ने एक लाख रुपये मुकदमा खर्च भी देने का आदेश दिया है। बच्ची नाना के साथ रह रही है क्योंकि उसकी मां की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली है। आयोग ने कहा कि इलाज में लापरवाही के चलते एक युवा डॉक्टर ने 31 साल की उम्र में अपना बहुमूल्य जीवन खो दिया और अपने पीछे पति, नाबालिग बच्ची और बूढ़े पिता को छोड़ गई। आयोग ने कहा है कि मृतक महिला के पति ने दूसरी शादी कर ली है, इसलिए शिकायतकर्ता नाबालिग बच्ची और उसके नाना पर्याप्त मुआवजे के पात्र हैं।

एक महिला डॉक्टर 9 दिसंबर, 2013 को प्रसव के लिए बेंगलुरु के निजी अस्पताल में भर्ती हुई थी। अस्पताल में महिला ने सर्जरी के बाद बेटी को जन्म दिया। सर्जरी के बाद तबीयत खराब होने लगी और ब्लड प्रेशर भी काफी बढ़ा हुआ था, लेकिन अस्पताल ने सर्जरी के 50 घंटे के भीतर ही महिला को अस्पताल से छुट्टी दे दी। 12 दिसंबर 2013 को उसे दोबारा से अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन 25 मिनट ‌बाद ही अस्पताल ने महिला को दोबारा से छुट्टी दे दी। घर जाते ही महिला की तबीयत खराब होने लगी तो एक अन्य अस्पताल में ले गए, जहां उसकी मौत हो गई।

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