पितरों को जल देने से तृप्त होंगे पूर्वज, श्राद्ध में जरूर शामिल करें
उज्जैन : भविष्य पुराण के अनुसार कुल बारह प्रकार के श्राद्ध होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं- पहला नित्य, दूसरा नैमित्तिक, तीसरा काम्य, चौथा वृद्ध, पांचवा सपिंडित, छठा पार्वण, सातवां गोष्ठ, आठवां शुद्धि, नौवां कर्मांग, दसवां दैविक, ग्यारहवां यात्रार्थ और बारहवां पुष्टि। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाना चाहिए। जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण को भोजन कराये श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन ग्रहण नहीं करते और ऐसा करने से व्यक्ति को समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में पितरों को प्रसन्न करने और उन्हें तृप्ति करने के लिए पितरों के निमित श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान आदि किया जाता है. बता दें कि श्राद्ध 14 अक्टूबर पर चलने वाले हैं. ऐसे में कुछ बातों का खास ध्यान रखकर भी पितरों का आशीर्वाद पाया जा सकता है. मान्यता है कि इन दिनों में पितर 16 दिन पितर लोक से आते हैं और धरती पर वंशजों के बीच रहते हैं. ऐसे में पितरों को खुश करने के लिए, उनकी आत्मा की मुक्ति के लिए पिंडदान, तर्पण, दान-पुण्य कर्म आदि किए जाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि इन सब से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वंशजों से प्रसन्न होकर वे उन्हें आशीर्वाद देकर वापस लौटते हैं. पितृ पक्ष में पितरों को जल अर्पित करने का नियम बताया गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं पितरों को जल देने का सही समय क्या होता है. अगर नहीं तो चलिए जानते हैं जल देने का सही समय और सही तरीका।
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के दौरान पितरों का तर्पण करने से उन्हें शांति मिलती है लेकिन तर्पण करते समय इस बात का ध्यान रखें कि इसके लिए अंगूठे का इस्तेमाल करें. धर्मिक ग्रंथों में कहा जाता है कि जिस जगह अंगूठा होता है वह पितृ तीर्थ कहलाता है. इस तरह से तर्पण करने से पितर जल ग्रहण करते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि तर्पण सुबह 11:30 से 12:30 के बीच में ही करें. यह पितर तर्पण का सबसे सही समय माना जाता है. इस दौरान तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें.
पितरों के जल देने के लिए हमेशा दक्षिण दिशा में मुंह करके बैठे। इसके लिए हाथों में जल, कुश, अक्षत, काला तिल लेकर दोनों हाछजोड़कर पितरों का ध्यान करें और उनका आव्हान करें. उन्हें जल ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करें. अब अंजली मुद्रा में 11 बार जल जमीन पर गिराएं। वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना जाता है. इस दिशा में पितरों का मुंह होना ताहिए इसलिए पितरों की तस्वीर उत्तर दिशा में लगाना चाहिए इससे उनका मुख दक्षिण में होगा. इस बात का भी ध्यान रखें कि पितरों की तस्वीर बेडरूम या लिविंग रूम में न लगाएं. इससे घर के सदस्यों की सेहत पर असर पड़ता है।