पूर्व अफगान कमांडर की चेतावनी- तालिबान के कारण गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा अफगानिस्तान
नई दिल्ली: अफगानिस्तान के पूर्व कमांडर ने चेतावनी देते हुए कहा कि अमेरिकी सेना के दो साल पहले अचानक काबुल छोड़ने के बाद देश में गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो रही है जो हालात को और भयावह बना सकती हैं। तालिबान अब गुटबाजी से पीड़ित है और यह तेजी से विदेशी आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बनता जा रहा है। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर वर्ष 2021 में कब्जे के दौरान सेना के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल हिबतुल्लाह अलीजई ने साक्षात्कार में कहा था, ‘‘मेरा मानना है कि अफगानिस्तान में स्थिति बहुत गंभीर और खतरनाक है और यह एक खतरनाक दिशा की तरफ बढ़ रही है।
इस स्थिति में अफगानिस्तान में गृह युद्ध या फिर देश विभाजित हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बीते दो वर्षों में इस पर आतंकवादियों का नियंत्रण रहा है और इसका शासन उन्हीं के हाथों में है।” अलीजई वर्तमान में अमेरिका में रह रहे हैं और उन्होंने हाल में देश के बाहर अफगानिस्तान के लोगों को एकजुट करने के लिए एक पहल शुरू की है। अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए पूर्व कमांडर ने अफगानिस्तान और उसके लोगों को अचानक तालिबान के रहम पर छोड़ने के लिए जो बाइडन प्रशासन को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि तालिबान के शासन में अफगानिस्तान में आतंकी संगठनों की संख्या बढ़ी है।
पूर्व कमांडर ने आरोप लगाया कि अल-शबाब जैसे अफ्रीकी आतंकवादी समूहों ने भी अफगानिस्तान में अपने पैर जमा लिए हैं और अपने आतंकवादियों को प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘अफगानिस्तान में ये सब कुछ तालिबान के शासन में हो रहा है।” अलीजई ने कहा, ‘‘यही स्थिति है। अल-कायदा सक्रिय है। दाएश अधिक से अधिक सक्रिय हो रहा है और विभिन्न हिस्सों में तालिबान शासन के खिलाफ कई विरोधी समूहों की घोषणा और स्थापना की जा रही है, जो निश्चित रूप से अफगानिस्तान को एक और गंभीर गृह युद्ध या संभावित विभाजन (अफगानिस्तान) की ओर ले जाएगा।”
एक सवाल के जवाब में अलीजई ने कहा कि तालिबान के तहत अफगानिस्तान आतंकवादियों के लिए पनाहगाह बनता जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि उस समय बाइडन प्रशासन ने या खासतौर पर स्वयं बाइडन ने बहुत बड़ी भूल की थी। उनके पास अफगानिस्तान के बारे में अधिक जानकारी जुटाने तथा देश की स्थिति के बारे में थोड़ा और गहराई से जानने का अवसर था। लेकिन यह निर्णय बहुत ही जल्दबाजी में लिया गया और यहां तक कि फैसले के वक्त अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के बारे में भी नहीं सोचा गया।”