हृदयनारायण दीक्षित : भारतीय जनतंत्र अजर-अमर है। यह भारतीय समाज की मूल प्रकृति है। राष्ट्रजीवन का स्वाभाविक प्रवाह और भारत…
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हृदयनारायण दीक्षित : स्वाद दिखाई नहीं पड़ता। सबके अपने स्वाद बोध हैं। इसलिए सबका स्वादिष्ट भी अलग-अलग है। लेकिन मीठा सबको…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित: प्रकृति की सभी शक्तियां गतिशील हैं। हम पृथ्वी से हैं, पृथ्वी में हैं। पृथ्वी माता है। पृथ्वी सतत् गतिशील…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : जीने की इच्छा में मृत्यु का भय अंतनिर्हित है। जितनी गहरी जीवेष्णा उतना ही गहरा असुरक्षा का…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : अमृत प्राचीन प्यास है। कोई मरना नहीं चाहता लेकिन सभी जीव मरते हैं। मृत्यु को शाश्वत सत्य…
Read More »नई दिल्ली : कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर को प्रतिष्ठित श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। सुविख्यात साहित्यकार…
Read More »सोफे पर अधलेटा सा सन्नी मेज पर अपनी टांगे पसारे टेलिविजन पर समाचार देख रहा था। जेड गूडि की आकस्मिक…
Read More »ऋग्वेद से लेकर अथर्ववेद तक गायों की प्रशंसा है। महाकाव्य और पुराण गोयश से भरे पूरे हैं। वेदों में गाय…
Read More »शतपथ ब्राह्मण में प्रश्न है – “मनुष्य को कौन जानता है?” मनुष्य को दूसरा मनुष्य नहीं जान सकता। प्रत्येक मनुष्य…
Read More »जीवन को भरपूर देखते हुए वायु को भी देखा जा सकता है। हम आधुनिक लोगों ने वायु को दूषित किया…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : अस्तित्व एक इकाई है। भारतीय दर्शन में इस अनुभूति को अद्वैत कहते हैं। अस्तित्व में दो नहीं…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : तीर्थ भारत की आस्था है। लेकिन भौतिकवादी विवेचकों के लिए आश्चर्य हैं। वैसे इनमें आधुनिक विज्ञान के…
Read More »हिन्दुओं का कोई सर्वमान्य आस्था ग्रंथ नहीं और न ही सर्वमान्य देवता। हरेक हिन्दू की अपनी इच्छा। कोई अग्नि उपासक…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित: बोलने से मन नहीं भरता। लगातार बोलना हमारा व्यावहारिक संवैधानिक दायित्व है। विधानसभा का सदस्य हूं और अध्यक्ष…
Read More »नई दिल्ली: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई देश गुलामी से मुक्त हुए और वैश्विक मानचित्र पर एक स्वतंत्र राष्ट्र…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : गर्भ सभी प्राणियों का उद्गम है। माँ गर्भ धारण करती है। पिता का तेज गर्भ में माँ…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : कालद्रव्य बदल गया है। समय भी प्रदूषण का शिकार है। दिक् भी स्वस्थ नहीं। मन और आत्म…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : संसार धर्म क्षेत्र है। यह कथन शास्त्रीय है। संसार कर्मक्षेत्र है। पुरूषार्थ जरूरी है। यह निष्कर्ष वैदिक…
Read More »स्वयं के भीतर बैठकर अन्तःकरण की गति और विधि देखना ही अध्यात्म है हृदयनारायण दीक्षित : संसार प्रत्यक्ष है। दिखाई…
Read More »दशहरा पर्व हर्ष और उल्लास का त्योहार है डा. जगदीश गांधी : दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है।…
Read More »विज्ञान प्रकृति में पदार्थ और ऊर्जा देख चुका है। पदार्थ और ऊर्जा भी अब दो नहीं रहे। समूची प्रकृति एक…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : प्रश्न और जिज्ञासा वैदिक परंपरा है। भारतीय इतिहास के वैदिक काल में सामाजिक अन्तर्विरोध कम थे। तब…
Read More »हृदयनारायण दीक्षित : श्रद्धा भाव है और श्राद्ध कर्म। श्रद्धा मन का प्रसाद है और प्रसाद आंतरिक पुलक। पतंजलि ने…
Read More »बोध आसान नहीं। शोध आसान है। शोध के लिए प्रमाण, अनुमान, पूर्ववर्ती विद्वानों द्वारा सिद्ध कथन और प्रयोग पर्याप्त हैं।…
Read More »हम सब कर्मशील प्राणी हैं। कर्म की प्रेरणा है कर्मफल प्राप्ति की इच्छा। कर्मफल प्राप्ति की अभिलाषा के कारण ही…
Read More »हम सभी स्वतंत्र भारत के परतंत्र नागरिक हैं…यह वाक्य पढ़ने में बिल्कुल गलत लगा न? कड़वा तो ऐसा है जैसे कच्ची…
Read More »स्तम्भ: कैकेयी के स्वर ने राम में अपार ऊर्जा का संचार किया। एक हल्के से विराम के बाद राम ने कहा-…
Read More »स्तम्भ: मंथरा के जाने के बाद कैकेयी मंथरा के विचारों का सूक्ष्म अवलोकन करने लगीं, मनुष्य स्वभाव से ही महत्वाकांक्षी…
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