अद्धयात्मसाहित्यस्तम्भहृदयनारायण दीक्षित

प्रकृति प्रेमी है वैदिक समाज, वह सूर्य को नमस्कार करता है, उनसे बुद्धि मांगता है

  • ऋग्वेद से लेकर अथर्ववेद तक गायों की प्रशंसा है। महाकाव्य और पुराण गोयश से भरे पूरे हैं। वेदों में गाय को अबध्य बताया गया है। भारत का प्राचीन साहित्य गाय-दर्शन से ओतप्रोत है।

हृदयनारायण दीक्षित : प्रकृति के सृजन आकर्षित करते हैं भी। पूरी प्रकृति दिव्य है। इसका सौन्दर्य अप्रतिम है। इनमें मनुष्य सर्वाधिक जटिल प्राणी है। वह सोचता है। प्रश्न करता है। प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए खोजबीन भी करता है। मनुष्य बौद्धिक है। भावुक भी है। चार्ल्स डारविन का जन्म (1809) इंग्लैण्ड में हुआ था। दुनिया के सबसे बड़े प्रकृति शास्त्री डारविन ने प्रकृति के अध्ययन में बड़ा श्रम किया। वह इसी के लिए कई साल समुद्री यात्रा में रहा। उसने जीवों के विकास पर गहन शोध किया और एक महान ग्रंथ लिखा ‘ओरिजन आफ स्पेशीज बाई मीन्ज आफ नेचुरल सेलक्शन्स’। डारविन ने बताया है कि प्रकृति के रूप मनुष्यों में संवेदन जगाते हैं। जीवों पर परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है। उनकी जीवनशैली व जीने की इच्छा प्रभावित होती है। प्रकृति विज्ञानी डारविन का शोध लगभग 200 बरस पहले का है। भारत के ऋग्वैदिकाल के कवि-ऋषि हजारों बरस पहले प्रकृति के रूपों से प्राप्त संवेदनों को अपने मंत्रों व कविताओं में ढाल चुके थे। ऋग्वेद में वनस्पतियों, कीट पतिंगों के प्रति प्रीतिपूर्ण भावप्रवणता है। ऋग्वेद में मेढक पर भी काव्य सूक्त है। पक्षी के सौन्दर्य और बोली पर सुरम्य मंत्र है। रेगने वाले कीट व सर्प भी सुंदर बताए गए हैं। लेकिन गौंए सर्वाधिक प्रभावित करती हैं।


वैदिक समाज प्रकृति प्रेमी है। वह सूर्य को नमस्कार करता है। उनसे बुद्धि मांगता है। वह जल को नमस्कार करता है। उसे जीवन का आधार बताता है। पशु-पक्षी के प्रति संवेदनशील है। कुत्तों की भी प्रशंसा है। सभी जीव प्रिय है। लेकिन गाय की बात ही दूसरी है। ऋग्वेद से लेकर अथर्ववेद तक गायों की प्रशंसा है। महाकाव्य और पुराण गोयश से भरे पूरे हैं। वेदों में गाय को अबध्य बताया गया है। भारत का प्राचीन साहित्य गाय-दर्शन से ओतप्रोत है। गाय के प्रति भारतीय प्रेम का पक्ष लेने वाले विद्वानों ने तमाम तर्कसंगत बातें लिखी हैं। गाय के आर्थिक महत्व पर बहुत कुछ लिखा गया है। गाय दूध देती है, गोबर देती है। मर जाने पर उसका शरीर भी कई कामों में प्रयुक्त होता है। वह बछड़े देती है। बैल भारतीय कृषियंत्र की धुरी थे। ट्रैक्टर जैसे तमाम यंत्रों के विकास के बाद बैल अनुपयोगी हो गए। उनको काटकर मांस का व्यापार होने लगा। यह व्यपार वैध और अवैध रूप में बहुत फैला। अवैध ज्यादा और वैध कम। गोसंवर्द्धन के पक्षकार लम्बे समय से इसके विरोध में है। भारतीय संस्कृति में गोसंरक्षण की महत्ता है। इसलिए संस्कृति विरोधियों ने चुनौती देते हुए गोमांस की दावतें दीं। गोवंश मारे गए। संस्कृति प्रेमी स्वाभाविक ही चिढ़े। चिढ़ाना और चुनौती देना ही संस्कृति विरोधियों का लक्ष्य था। वैदिक काल में जनतंत्री संस्थाएं थीं। ऋग्वेद के कई मंत्रों में सभा व समिति का उल्लेख है। तब सभा में प्रमुख विषयों पर चर्चा होती थी। अब भी लोकसभा व विधान सभाओं में प्रमुख विषयों पर चर्चा होती है। वैदिक काल की सभा में गोसंरक्षण पर बहुधा चर्चा होती थी। एक मंत्र में गायों से ही संवाद है कि ‘गौओ सभा में आपकी चर्चा होती है’। गोपालन प्रतिष्ठा का काम था। भारत का संविधान (1947-1950) में बना। संविधान सभा में गाय की खासी चर्चा हुई। गोसंरक्षण और गोसंवर्द्धन के विषय को राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों में सम्मिलित किया गया। गोसंरक्षण संविधान (अनुच्छेद 48) का भाग है। उत्तर प्रदेश सहित देश के तमाम राज्यों में गोबध पर कानूनी रोक है। गोसंवर्द्धन के पक्षकार आन्दोलन लगातार करते हैं। गोहत्या की घटनाओं पर प्रतिक्रिया में भी आते है। प्रतिक्रिया स्वाभाविक भी है। अपवाद स्वरूप यह प्रतिक्रिया विधिव्यवस्था का अतिक्रमण करती है। ऐसा उचित नहीं है। गोमांस के प्रेमियों को हिन्दू भावनाओं का आदर करना चाहिए। किसी भी अल्पसमूह को बहुसंख्यक समाज की भावनाओं का अपमान करने की छूट नहीं दी जा सकती।


गोसंवर्द्धन और संरक्षण वैदिक समाज में बहस का केन्द्र था। अब भी है। गाय के आर्थिक उपयोग के लाभ सुस्पष्ट हैं लेकिन बात इतनी ही नहीं है। हम अपने इस नियमित स्तम्भ के सम्मानीय पाठकों के प्रति आदर रखते हैं और कुछ प्रश्न रखते हैं। क्या गाय को ध्यान से आपने देखा है? ध्यान से ही देखने पर मेरा जोर है-क्या आपने गायों की आंखों को भी ध्यान से देखा है? क्या आपने इन आंखों में करूणा का महासागर अनुभूत पाया है? गाय का दूध आप सबने पिया ही होगा। लेकिन क्या गाय का सौन्दर्यरस आपने पिया है? वे हम सबको देखते हुए क्या असीम प्यार नहीं उड़ेलती है? वे ट्रक में लदी हमारी ओर बेबसी से देखती क्या कहना चाहती है? क्या वे हम सबसे अपना जीवन पूरा कर लेने की दया याचिका पर विचार का आग्रह करती नहीं प्रतीत होती? वे अपनी संतान के साथ कैसी लगती है। बछड़े को चांटते हुए कैसी लगती है। संस्कृत विद्वानों ने बछड़े का नाम ’वत्स’ रखा था। भगवान भक्तों के लिए हम भक्तवत्सलय शब्द का प्रयोग करते है। पुराणों में वरिष्ठों द्वारा पुत्र को भी वत्स कहा गया है। हरेक पिता-माता के लिए उसकी संतान वत्स है लेकिन हम गोवत्सो को छुट्टा क्यों छोड़ देते हैं। जीवन उपयोगितावाद से ही नहीं चलता। प्रीति, प्रेम, सहज संवेदन सौन्दर्यबोध और भाव प्रवणता भी जीवन के मुख्य घटक हैं।
गोवंश हमारे परिवार के अभिजन है। पिता, पुत्र, दादा, अम्मा, दादी उपयोगी न रह जाएं तो क्या हम उन्हें छोड़ देंगे? एक भारतीय संस्कृति के विरोधी मित्र उत्तर भारत को अंग्रेजी में ‘काऊ बेल्ट’ कहते है। कुछेक विद्वान गाय को राजनैतिक पशु भी कहते हैं। संवेदनहीनता के अपने दुर्गुण हैं। गाय को ध्यान से न देखने के कारण ही वे ऐसा लिखते कहते हैं। मैंने गाय को ध्यान से देखा है बछड़े को चांटते हुए। श्रीकृष्ण के साथ चित्रों में देखा है-गाय को आह्लादपूर्ण व्यक्तित्व में। गायों को करूण भाव में देखा है-करूणा के अवतार रूप में। हमने अपने अंतस में गाय की करूणा का अनुभव पाया है। हां मैने गाय को प्रातः जंगल की ओर और सांय उछलते कूदते घर की ओर लौटते भी देखा है। हमने देखा है गाय को घास चरते हुए, उछलते हुए, कूदते फांदते जीवनरस बाटते हुए। गाय को अपने अंतस में भी देखा है मैने। मैने महानगरों में दूध निकालकर सड़क में हांक दी गई गायों को प्लास्टिक का कचरा खाते भी देखा है। स्वयं को असह्य दुख होता है तब। हमने गायों को देखा है-आस्था हीन होकर भी। उसे माता न जानते हुए भी। भौतिकवादी दृष्टि यही है। गाय बेशक एक प्राणी है लेकिन प्राणी तो हम सब भी हैं। हमारे भीतर संवेदन हैं। गाय में वे संवेदन ज्यादा हैं। हमारे संवेदन गोसंवेदनों से मिलते हैं। गोसंवेदन हमारे संवेदनों को झकझोरते हैं। भौतिकवादी चाहें तो हम उसे मां नहीं कहेंगे लेकिन अपनी अनुभूति का क्या करें? मां सभी भाषाओं में है। मां का अर्थ है-जननी, पालक, पोषक। बिन प्रतिकर लिए जो हमको अपना सारा प्यार उड़ेल दे वह माता। इसीलिए हमने अपने राष्ट्र को भारत माता कहा है। भारत माता का अंग है गाय। इसलिए गाय माता है। चलिए हमको रूढ़िवादी कह लीजिए लेकिन हमारी भावुकता का बध न कीजिए। अंतःकरण की स्वतंत्रता हमारा भी मौलिक अधिकार है। हम आपके मौलिक अधिकार स्वीकार करते हैं। आप हमारे अधिकार भी स्वीकार कीजिए। हमारा निवेदन छोटा है। बस आप गाय या बछड़ों को ध्यान से देखिए। ममत्व के साथ। निर्मम से ममत्व की यात्रा का आनन्द बड़ा है। निर्ममता काठ बनाती है और ममता रस पूर्ण।

(रविवार पर विशेष)
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं विधानसभा अध्यक्ष हैं।

‘बड़ा रहस्यपूर्ण है ‘स्वयं’, सोचता हूं कि क्या मेरा व्यक्तित्व दो ‘स्वयं’ से बना है, एक देखता है, दूसरा दिखाई पड़ता है’

Related Articles

Back to top button