दिल्ली: दो सौ साल से शिलॉन्ग की पंजाबी लेन में रह रहे परिवारों को वहां से हटाया जा रहा है. राज्य सरकार के इस कदम का विरोध मेघालय से पंजाब तक हो रहा है.मेघालय सरकार ने राजधानी शिलॉन्ग स्थित पंजाबी लेन इलाके का अधिग्रहण कर लिया है. वहां रहने वाले बाशिंदों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा. लेकिन अब इलाके के बाशिंदों ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है. तीन साल पहले इस इलाके में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने सुर्खियां बटोरी थीं. तब मेघालय और पंजाब सरकार ने ठन गई थी और पंजाब सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने भी मेघालय का दौरा किया था. पंजाब सरकार ने भी मेघालय सरकार के इस फैसले के प्रति विरोध जताया है. उसका आरोप है कि भूमाफियाओं के दबाव में ही यह फैसला किया गया है. क्या है विवाद? मई 2018 में स्थानीय खासी और सिख समुदाय के बीच हुई हिंसक झड़पों के बाद दशकों पुराने भूमि विवाद के स्थायी समाधान के उपाय सुझाने के लिए जून 2018 में एक समिति का गठन किया गया था.
उसकी रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कैबिनेट ने सात अक्टूबर को शिलॉन्ग के थेम इव मावलोंग इलाके के सिख लेन से सिखों को अन्यत्र स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. तस्वीरों मेंः करतारपुर कॉरिडोर इस कालोनी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की ओर से गठित उच्चाधिकार समिति की रिपोर्ट के एक महीने बाद सरकार ने इसका कब्जा ले लिया है. समिति की सिफारिशों को सरकार ने बीते महीने ही मंजूरी दे दी थी. सरकार का दावा है कि यह विवादित जमीन शहरी मामलों के विभाग से जुड़ी है. उधर, सिखों का कहना है कि यह जमीन उन्हें 1850 में खासी हिल्स के मुखिया में से एक हिमा माइलीम ने उपहार में दी थी. आज माइलीम खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद के तहत 54 पारंपरिक प्रशासनिक क्षेत्रों में से एक है और पंजाबी लेन इसका हिस्सा है.
मेघालय सरकार ने करीब साढ़े बारह हजार वर्गमीटर जमीन के लिए स्थानीय मुखिया को दो करोड़ रुपए का भुगतान देकर जमीन का अधिग्रहण कर लिया है. दूसरी ओर, हरिजन पंचायत समिति की दलील है कि करीब दो सौ साल पहले उनको वह जमीन स्थानीय मुखिया से उपहार में मिली थी और सरकार को यहां रहने वाले साढ़े तीन सौ परिवारों से उसे छीनने का कोई अधिकार नहीं है. कालोनी के नेता गुरजीत सिंह सवाल करते हैं, “हमारी कालोनी का मामला मेघालय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ऐसे में सरकार इसका अधिग्रहण कैसे कर सकती है?” मेघालय के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग, जो उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष भी थे, कहते हैं, “हम कालोनी में रहने वालों के खिलाफ नहीं हैं.