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अफ्रीकी देश सूडान की राजधानी खारतूम में बम हमले में दर्जनों नागरिक मारे गए

नई दिल्ली (विवेक ओझा): अफ्रीकी देश सूडान एक तरह के अघोषित गृह युद्ध में घिरा हुआ है जिसकी लपटें आम नागरिकों की जिंदगी को तबाह कर रही हैं। ताजा मामला सूडान की राजधानी खारतूम ( khartoum) का है जहां बमवर्षा के चलते 33 आम नागरिकों की जानें गईं हैं । वहां ले प्रो डेमोक्रेसी लायर्स ( pro democracy lawyers) नामक गैर सरकारी संगठन ने इस सूचना की पुष्टि की है। अभी एक दिन पहले ही वहां आंतरिक हमलों 10 निर्दोष लोग मारे गए थे। इन हमलों के बीच की वजह है सूडान की सेना और वहां की पैरामिलिट्री फोर्स ” रैपिड सपोर्ट फोर्सेज ( Rapid support forces) के बीच सूडान पर हुकूमत की जंग।

सूडान की सेना और अर्ध सैनिक बल के बीच संघर्ष में घिरा देश :

सूडान की सेना और उसके प्रतिद्वंद्वी रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) दोनों के बीच गंभीर संघर्ष ने कुछ समय पहले सूडान में अशांति और अस्थिरता को एक बार फिर से बढावा दे दिया। खार्तूम के एयरपोर्ट और शहर के अन्य अहम ठिकानों पर नियंत्रण होने का दावा दोनों पक्षों ने किया। यह संघर्ष सूडान में नागरिक सरकार को सत्ता हस्तांतरित करने की माँग को लेकर शुरू हुआ था। अक्तूबर 2021 में देश में हुए तख्तापलट के बाद बनी अंतरिम सरकार और सेना के बीच लगातार टकराव होता आ रहा है।

सूडान को सॉवरेन काउंसिल के ज़रिए सेना ही चला रही है। इसके प्रमुख सेना के जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान हैं। वही जनरल अल बुरहान की समर्थक सेना और देश के दूसरे नंबर के नेता यानी आरएसएफ़ प्रमुख मोहम्मद हमदान डगालो में से सत्ता नियंत्रण के मुद्दे पर कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। सूडान में अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स को सेना में मिलाने की योजना है, जिसे लेकर सालों से विवाद भी रहा है। अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स प्रमुख का कहना है कि सेना के सभी ठिकानों पर कब्ज़ा होने तक उनकी लड़ाई चलती रहेगी। वहीं सेना ने बातचीत की किसी संभावना को नकारते हुए कहा है कि अर्धसैनिक बल आरएसएफ़ के भंग होने तक उनकी कार्रवाई जारी रहेगी। इस प्रकार सूडान में सेना और अर्धसैनिक बलों के बीच एक बार फिर शुरु हुए हालिया भीषण संघर्ष से पूरा देश प्रभावित हुआ है। अफ्रीकी देश सूडान की सेना से अलग इतने मजबूत अर्ध सैनिक सुरक्षा बल का होना, सूडान की अस्थिरता की वजह माना जाता रहा है। रैपिड सपोर्ट फोर्स की उत्पत्ति सूडान के कुख्यात ‘जंजावीद’ विद्रोही संगठन के रूप में हुई थी जिसने दारफुर में विद्रोहियों के खि़लाफ़ क्रूरता से लड़ाई लड़ी थी। उस दौरान इस पर बड़े पैमाने पर नृजातीय हिंसा करने का आरोप लगा था।

कुछ समय पहले तक सूडान की सेना के वर्तमान प्रमुख और देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता और आरएसएफ के प्रमुख सहयोगी थे जिन्होंने 2019 में सूडान के राष्ट्रपति उमर अल-बशीर को अपदस्थ करने के लिए एक साथ काम किया था और 2021 में सैन्य तख्तापलट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन देश में नागरिक शासन को बहाल करने की योजना के हिस्से के रूप में आरएसएफ को देश की सेना में एकीकृत करने के लिए बातचीत के दौरान तनाव उत्पन्न हुआ जो सूडान में सिविल वार का कारण बना हुआ है। हालांकि, नागरिक शासन को बहाल करने की योजना के हिस्से के रूप में आरएसएफ को देश की सेना में एकीकृत करने के लिए बातचीत के दौरान तनाव उत्पन्न हुआ। उल्लेखनीय है कि रैपिड सपोर्ट फोर्स के प्रमुख इस समय सूडान के सत्ताधारी सावरेन काउंसिल के डेप्युटी हेड हैं। 2013 में सूडान के भूतपूर्व राष्ट्रपति उमर अल बशीर द्वारा रैपिड सपोर्ट फोर्स को बनाने के पहले यह 2000 के दशक में जंजावीद मिलीशिया के रूप में उमर अल बशीर द्वारा ही बनाया गया था। इसका इस्तेमाल उमर अल बशीर ने दारफूर क्षेत्र में अपने सत्ता के खिलाफ होने वाले विद्रोहों को दबाने के लिए किया था। दारफूर में हुई दमनकारी हिंसा में 2000 के बाद से लगभग 3 लाख लोग मारे जा चुके हैं और 2.5 मिलियन लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ा है ।

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने भी दारफुर में हुई हिंसा के आधार पर सूडान के सरकारी अधिकारियों और प्रशासन पर मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और युद्ध बंदियों के प्रति अपराध का आरोप लगाकर मुकदमा चलाने की कोशिश की लेकिन सूडान के राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के क्षेत्राधिकार को मानने से इंकार कर दिया। कालांतर में जंजावीद मिलीशिया और मजबूत हुई और उसे 2013 में रैपिड सपोर्ट फोर्स के रूप में बदल दिया गया और इसका प्रयोग सूडान के राष्ट्रपति ने बॉर्डर गार्ड्स के रूप में कराना शुरू किया। वर्ष 2015 से अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्स को सूडान की आर्मी, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की सेना के साथ यमन के खिलाफ़ सैन्य अभियान ( हूती विद्रोहियों के खिलाफ़ कार्यवाही) में भेजा जाने लगा। 2015 में ही रैपिड सपोर्ट फोर्स को सूडान में ” रेगुलर फोर्स ( नियमित बल) का दर्जा मिला था। 2017 में सूडान में एक कानून बनाकर रैपिड सपोर्ट फोर्स को एक इंडिपेंडेंट सिक्योरिटी फोर्स बनाया गया। इसके चलते इस अर्ध सैनिक बल और इसके प्रमुख की राजनीतिक महत्वाकांक्षाए बढ़ती गईं और इसने ठान लिया कि राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई भी लड़नी हो तो भी पीछे नहीं हटेंगे।

दारफूर क्षेत्र के अलावा इस अर्ध सैनिक बल के सैनिकों को ब्लू नील और साउथ कोरदोफान जैसे राज्यों में भी सत्ता विरोधी प्रदर्शन को दबाने के लिए तैनात किया गया। इन इलाकों में इस पर मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर आरोप लगा। ह्यूमन राइट्स वाच ने इसके सैनिकों को “मेन विद नो मर्सी” की संज्ञा तक दे दी थी। जैसे जैसे रैपिड सपोर्ट फोर्स और उसके प्रमुख डगालो की भूमिका सूडान के सुरक्षा मामलों में बहुत अधिक बढ़ी तो सूडान की सेना और उसके प्रमुख को इस बात का भय सताने लगा कि रैपिड सपोर्ट फोर्स कहीं सुरक्षा के सभी कार्यों को अपने हाथ में लेते हुए देश के शासन पर पूरी तरह से नियंत्रण न स्थापित कर ले और यही वजह है कि सूडान की सेना और इस अर्ध सैनिक बल के बीच अप्रैल माह में भीषण संघर्ष शुरू हुआ जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।

जब एक देश में सेना और अर्धसैनिक बल में ही विवाद शुरू हो जाए तो उस देश में सुरक्षा की क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जब किसी अफ्रीकी देश में वहां की मिलिट्री और पैरामिलिट्री फोर्स में पूरे देश की सत्ता पर नियंत्रण के लिए संघर्ष होने लगे तो इससे शांति सुरक्षा और स्थिरता गंभीर तौर पर पर प्रभावित हो जाता है। अफ्रीका के कई देशों में सत्ता पर नियंत्रण, नृजाति संघर्ष, गृह युद्ध की स्थितियां समय समय पर पूरे अफ्रीकी महाद्वीप को प्रभावित करती रही हैं। लोकतांत्रिक चुनाव बनाम सैन्य सरकार , नागरिक शासन ( सिविलियन गवर्नमेंट) बनाम अधिनायकवादी सरकार की समस्या से अफ्रीकी देश जुझते रहे हैं। इससे नृजाति अथवा जातीय संहार ( जेनोसाइड और एथनिक क्लिनजिंग ) को बढावा मिला है। ऐसा ही कुछ फिर से अफ्रीकी देश सूडान में हाल ही में हुआ है।

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