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दया याचिका में अत्यधिक देरी से मौत की सजा का उद्देश्य हो जाएगा विफल: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दया याचिका पर फैसला करने में अत्यधिक देरी से मौत की सजा का उद्देश्य विफल हो जाएगा। इसलिए राज्यों व सक्षम अधिकारियों द्वारा दया याचिका पर जल्द से जल्द फैसला लिया जाए। जस्टिस एम.आर. शाह और सी.टी. रविकुमार ने कहा कि यह सच है कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के दौरान अपराध की गंभीरता एक प्रासंगिक विचार हो सकता है, लेकिन दया याचिकाओं के निपटान में अत्यधिक देरी को भी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलते समय एक प्रासंगिक विचार कहा जा सकता है।

अगर अंतिम निष्कर्ष के बाद भी दया याचिका पर फैसला करने में अत्यधिक देरी होती है, तो मौत की सजा का उद्देश्य और उद्देश्य विफल हो जाएगा। इसलिए राज्य सरकारों /या संबंधित अधिकारियों को दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला लेना चाहिए, ताकि दोषी को को भी अपने भाग्य का पता चल सके और पीड़ित को भी न्याय मिल सके।

पीठ ने कहा कि जगदीश बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2020) में, पांच साल से अधिक समय से लंबित दया याचिका के निपटान में देरी को ध्यान में रखते हुए अदालत ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का निर्देश दिया, और इस आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के अन्य फैसलों का भी हवाला दिया।

शीर्ष अदालत का आदेश बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर आया। उच्च न्यायालय ने 1990 से 1096 के बीच कोल्हापुर जिले में 13 बच्चों के अपहरण व उनमें से नौ की हत्या की दोषी रेणुका और उसकी बहन को दी गई मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि उच्च न्यायालय ने मौत की सजा को इस आधार पर आजीवन कारावास में बदल दिया है कि दया याचिकाओं पर फैसला नहीं करने में राज्य/राज्य के राज्यपाल की ओर से अत्यधिक अस्पष्ट देरी हुई है। दोषियों की दया याचिका को लगभग 7 साल 10 महीने तक लंबित रखा गया।

उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा, उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के फैसले और आदेश को संशोधित किया जाता है और यह निर्देश दिया जाता है कि दोषियों को प्राकृतिक जीवन के लिए और बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा काटनी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा, हम उन सभी राज्यों/उपयुक्त अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि जिनके समक्ष दया याचिकाएं दायर की जानी हैं और/या जिन्हें मौत की सजा के खिलाफ दया याचिकाओं पर फैसला करना आवश्यक है, ऐसी दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला करें। दया याचिकाओं पर फैसला न करने में देरी का लाभ दोषियों को नहीं मिलता है।

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