प्रियंका गांधी के लिए मुश्किल है कांग्रेस का रायबरेली गढ़ बचाना, ये हैं 5 कारण
रायबरेली : कांग्रेस पार्टी के लिए रायबरेली की सीट अब प्रतिष्ठा की सीट बनती जा रही है . कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और इस सीट से लगातार चार बार सांसद रहीं सोनिया गांधी ने रायबरेली को अब अवविदा कह दिया है. कांग्रेस का कहना है कि स्वास्थ्य कारणों के चलते अब सोनिया गांधी का लोकसभा चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए उन्हें राजस्थान से राज्यसभा का कैंडिडेट बनाया गया है. पर सोनिया ने रायबरेली के मतदाताओं के नाम एक भावुक पत्र लिखा है उसमें गांधी फैमिली के लिए अपना प्यार बनाए रखने की अपील की गई है.
जाहिर है कि इस अपील का मतलब यही निकाला जाएगा कि इस सीट से फैमिली का ही कोई सदस्य चुनाव लड़ सकता है. राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ते रहे हैं. पर जिस तरह उन्होंने अमेठी में हार के बाद वायनाड़ का रास्ता पकड़ लिया है उससे नहीं लगता कि राहुल गांधी रायबरेली में अपनी किस्मत आजमाने राहुल गांधी आएंगे. यही कारण है इस सीट के लिए प्रियंका गांधी का नाम लिया जा रहा है. शुक्रवार को यूपी के चंदौली में प्रियंका गांधी राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से जुड़ने वाली थीं, पर स्वास्थ्य कारणों के चलते उनके मीटिंग में शामिल नहीं होने की सूचना मिली है. कार्यक्रम में शामिल न होने का प्रियंका ट्वीट आयोजन से कुछ घंटे पहले आना कई तरह के संदेह खड़े कर रहा है कि क्या वे रायबरेली से चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छुक हैं? आइये उन 5 कारणों की चर्चा करते हैं जिसके चलते प्रियंका कभी नहीं चाहेंगी रायबरेली जैसी असुरक्षित सीट से उनकी चुनावी राजनीति की शुरूआत हो.
गांधी फैमिली के लोगों विशेषकर प्रियंका गांधी पर इलाके के लोग आरोप लगाते हैं कि चुनावों के बाद क्षेत्र की जनता का कभी ध्यान नहीं रखती हैं. यहां तक कि सोनिया के अधिकृत प्रतिनिधियों को भी प्रियंका से मिलने में बहुत दिक्कतें होती हैं. रायबरेली के ही एक कांग्रेसी नेता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सोनिया गांधी के प्रतिनिधि तक की बात प्रियंका गांधी से नहीं हो पाती है. एक फोन कॉल पर कनेक्ट होने के लिए कई महीने लग जाते हैं.
1999 में सोनिया गांधी के पहले चुनाव में प्रियंका ने अमेठी में चुनाव की कमान संभाली थी.इस चुनाव में वे पिता के मित्र कैप्टन सतीश शर्मा के लिए रायबरेली में सक्रिय थीं. इसके बाद से ही आमतौर पर चुनाव के मौकों पर ही यहां नजर आती रहीं.सुल्तानपुर के पत्रकार राजखन्ना कहते हैं कि शुरूआत में जब प्रियंका यहां आती थीं तो उन्हें देखने के लिए लोगों में उत्साह रहता था पर अब वह क्रेज भी खत्म हो गया है. इसलिए रायबरेली में प्रियंका गांधी के बजाय सोनिया चुनाव लड़तीं तो एक बार फिर जनता उन्हें चुन लेती. सोनिया भले ही रायबरेली में अपनी उपस्थिति दर्ज न कराएं पर उनके प्रति जनता में सम्मान है.
पिछले 3 लोकसभा चुनावों के आंकड़ों का मूल्यांकन करें तो रायबरेली में कांग्रेस को मिलने वाले वोटों का शेयर लगातार कम हो रहा है. 2009 के बाद 2014 और 2019 में वोट शेयर का ग्राफ लगातार गिर रहा है. जबकि रायबरेली से बीजेपी ने कभी भी कांग्रेस प्रत्य़ाशी सोनिया गांधी के स्तर का प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिलने वाले वोट का परसेंटेज करीब 72.2 प्रतिशत था. जो कि 2024 गिरकर 63.8 परसेंट हो गया. 2019 आते-आते सोनिया गांधी को मिलने वाले वोट का प्रतिशत गिर 55.8 प्रतिशत हो गया है. वर्ष 2000 तक यहां कांग्रेस की सबसे बड़ा राइवल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ही होती थी.पर 2014 से यहां बीजेपी टक्कर दे रही है. 2014 में बीजेपी को यहां करीब 21 .1 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था जो 2019 में 38.7 परसेंट तक पहुंच चुका है. वोटों में यह गिरावट ही कांग्रेस के लिए चिंता की बात है और बीजेपी के लिए उत्साहजनक. शायद खुद सोनिया गांधी ने भी इस कारण यहां से किनारा करना उचित समझा.सोनिया अगर यहां से चुनाव लड़ती तो जीत के चांसेस फिफ्टी-फिफ्टी ही रहते .
2022 तक आते-आते कांग्रेस का हाल रायबरेली में इतना खराब हो गया कि रायबरेली संसदीय सीट की 5 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस एक भी जीत नहीं सकी. सबसे बड़ी बात यह रही कि करीब 4 सीटों पर कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही.और एक सीट पर कांग्रेस चौथे स्थान पर पहुंच गई थी. हालांकि यहां की 4 सीटें समाजवादी पार्टी ने हासिल की हैं. बीजेपी को केवल एक ही सीट मिल सकी है. कांग्रेस के लिए अच्छी बात ये है कि समाजवादी पार्टी इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने जा रही है. इसलिए जाहिर है समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की ताकत कांग्रेस के साथ होगी. पर लोकसभा चुनावों में जिस तरह आजकल नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मिलता है उसे देखकर ऐसा लगता नहीं कि समाजवादी पार्टी के वोट कांग्रेस को ट्रांसफर हो सकेंगे.
रायबरेली संसदीय सीट के जितने भी मजबूत लोग कांग्रेस के साथ होते थे अब वो पार्टी छोड़ चुके हैं. जिनके बल पर सोनिया गांधी रायबरेली में भारी वोट पातीं थीं उनमें से अधिकतर लोग अब बीजेपी के हो चुके हैं. जाहिर है कि उन्हें अब कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं दिखाई देता होगा. बाहुबलि अखिलेश सिंह अब नहीं रहे पर उनकी बेटी अदिति सिंह अब बीजेपी से विधायक हैं. दिनेश प्रताप सिंह का कुनबा भी रायबरेली के दिग्गज लोगों में शामिल है. अब वो भी बीजेपी के साथ है. दिनेश प्रताप सिंह पहले कांग्रेस में होते थे. पर 2018 में वो बीजेपी में शामिल हो गए. 2019 में उन्हें बीजेपी ने सोनिया गांधी के खिलाफ टिकट दिया. दिनेश प्रताप चुनाव तो नहीं जीत सके पर सोनिया गांधी के जीत का मार्जिन काफी कम कर दिया. अब बीजेपी ने उन्हें एमएलसी बनाकर प्रदेश सरकार में मंत्री बना दिया है.पब्लिक के रोजमर्रा के काम यही लोग आते हैं , जाहिर है वोट भी इन्हीं लोगों के कहने पर देंगे.
रायबरेली लोकसभा चुनाव क्षेत्र जातियों का संतुलन भी कांग्रेस के फेवर में अब नहीं है. यहां ब्राह्मण करीब 11 प्रतिशत , ठाकुर 9 प्रतिशत के करीब हैं. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद उत्तर प्रदेश के ठाकुरों का वोट बीजेपी को ही जाता है शर्त यह होती है कि सामने वाला कैंडिडेट भी ठाकुर न हो . ब्राह्मण भी अब बीजेपी के हो चुके हैं. हो सकता है कि एक दो परसेंट गांधी फैमिली के नाम पर कांग्रेस को वोट दें पर ऐसा लगता नहीं. 7 प्रतिशत यादव और 6 प्रतिशत मुस्लिम वोट में से जितना कांग्रेस अपनी ओर खींच ले. 6 फीसदी लोध और 4 फीसदी कुर्मी अब बीजेपी के कोर वोटर्स में गिने जाते हैं. 23 फीसदी अन्य वोटों में कायस्थ-बनिया और कुछ अति पिछड़ी जातियां हैं जो बीजेपी के वोट देती हैं. इस तरह यहां जातीय गणित भी बीजेपी के पक्ष में है. 34 फीसद के करीब एससी वोट बीएसपी को जाना तय है. इसमें कुछ सेंध अगर लगेगी तो वो बीजेपी को ही जाएगा. कांग्रेस की ओर जाने की संभावना कम ही है.