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JNU प्रकरण का असर: देशद्रोह‍ कानून में हो सकता है बदलाव

105166-rajnathदस्तक टाइम्स एजेंसी/नई दिल्ली : जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय (जेएनयू) विवाद के बाद देशद्रोह को लेकर उपजे विवाद के बीच केंद्र सरकार अब देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि लॉ कमीशन देशद्रोह कानून की फिर से समीक्षा करते हुए इसमें जरूरी संशोधन करेगी। जेएनयू विवाद में देशद्रोह मामले को लेकर सरकार और विपक्षी दलों के बीच जमकर बहस चल रही है।

केंद्र सरकार इस कानून में बदलाव की तैयारी कर चुका है। इन रिपोर्टों में बताया गया कि देशद्रोह कानून की धारा 124 (ए) की समीक्षा की जा रही है। कानून मंत्रालय ने लॉ कमीशन से इस धारा का अध्ययन करने को कहा था, जिसके बाद कमीशन ने बदलाव के लिए कुछ खास बिंदुओं की पहचान की है। हालांकि इन बिंदुओं को सार्वजनिक नहीं किया गया है। इन पर अभी कानून मंत्रालय विचार करेगा। मंगलवार को लोकसभा में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसकी जानकारी दी। यह कानून अंग्रेजों द्वारा 1870 में बनाया गया था। आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार स्वतंत्रता सेनानियों महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के खिलाफ इसी कानून का इस्तेमाल करती थी। पिछले हफ्ते संसद ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर के देशद्रोह कानून में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

लोकसभा सांसद एमडी राजेश ने लोकसभा में सवाल उठाते हुए कहा था कि देशद्रोह कानून का देशभर में पुलिस मनमाना उपयोग कर रही है। क्या सरकार इसका संज्ञान लेगी? उसी के जवाब में गृह राज्य मंत्री हरिभाई चौधरी ने कहा कि कानून मंत्रालय ने लॉ कमीशन से देशद्रोह कानून और भारतीय दंड संहिता का अध्ययन करने के लिए कहा था। 2014 में उन्होंने कुछ क्षेत्रों पर ध्यान देने के लिए कहा था। देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या है कि सिर्फ नारेबाजी इस आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए हिंसा के लिए उकसाया जाना भी जरूरी है। इन्हीं कानूनी शब्दों में संशोधन की गुंजाइश को देखने के लिए समीक्षा की जरूरत जताई जा रही है।

गौरतलब है कि जेएनयू में छात्र कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्या को कैंपस में देशद्रोही गतिविधि में कथित संलिप्तता को लेकर गिरफ्तार किया गया है। कांग्रेस महासचिव से लेकर माकपा महासचिव येचुरी तक ने छात्रों की नारेबाजी को देशद्रोह मानने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया। इसके बाद से देशद्रोह की फिर से व्याख्या पर बहस ने जोर पकड़ ली है।

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