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चुनावी मशीनरी की ओवरहालिंग : जीत का मंत्र

लोकसभा चुनाव के नतीजों से भारतीय जनता पार्टी को बेशक एक सदमा लगा था। 400 पार के जुमले का विपक्ष ने मजाक उड़ाया। आत्ममंथन से पता चला कि जमीनी समर्थकों और कार्यकर्ताओं के मजबूत नेटवर्क में कहीं कोई लीकेज रह गई हो लेकिन वक्त रहते बीजेपी सचेत हो गई। नतीजा हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली आज उसकी जेब में हैं। बीजेपी ने अपनी चुनावी मशीनरी के कील-काटें कैसे दुरस्त किए, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल।

भारतीय जनता पार्टी संगठन चुनाव में उत्तर प्रदेश की पार्टी जिला अध्यक्षों की सूची 25 जनवरी को जारी होनी थी, लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने सूची को जारी होने से रोक दिया। सूची बनाने के लिए कुछ ऐसी पाबंदियां लगाईं जिसके चलते नए सिरे से काम शुरू हुआ। वास्तव में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि पार्टी जिला अध्यक्षों के 25 प्रतिशत पद अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं को दिए जाएं। यही नहीं, 25 प्रतिशत से अधिक पद पिछड़ों और अति पिछड़ों को दिए जाएं। न केवल जिला अध्यक्षों बल्कि मंडल अध्यक्षों की सूची में भी इसी तरह की पाबंदियां लगाई गईं और लगभग 50 फीसदी से अधिक मंडल अध्यक्ष आरक्षित वर्ग से हैं। उत्तर प्रदेश के नेता केंद्रीय नेतृत्व के इस कड़े रुख से भौचक्क हैं। आखिर केंद्रीय नेतृत्व ने यह रुख क्यों अपनाया? यह फार्मूला क्यों लागू किया गया? वास्तव में यह 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम का यह असर है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब सतर्क हो चुका है और वह अपनी हारी बाजी को पलट देना चाहता है। भाजपा नेतृत्व ने अब जो चुनावी रणनीति तैयार की है, उसी का परिणाम है कि भाजपा हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे कठिन चुनाव जीत चुकी है और अब बाजी पलट चुकी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जो खोया था, उसे वह मजबूती से वापस ले आई है और विपक्षियों को उसने पीछे ढकेल दिया है।

यही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार के आपसी रिश्तों को नए सिरे से गढ़ा जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व यह मानकर चल रहा था कि उसे चुनाव जीतना ही है इसलिए बीजेपी के कुछ आत्ममुग्ध नेताओं ने संघ के खिलाफ भी बयानबाजी तक कर दी। ऐसा पहली बार हो रहा था कि भाजपा नेताओं को लग रहा था कि वह वह बिना संघ की मदद के चुनाव जीत सकते हैं। लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपनी कम सीटेंआने के कारणों पर गहन अध्ययन किया और जो परिणाम सामने आए, उसी के अनुसार बदलाव किए जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने यह मान लिया था कि उनके पक्ष में लहर है और उन्हें जीतना ही है और 400 पार जाना है। पार्टी अब एक ऐसी चुनावी मशीनरी तैयार कर रही है जो इस बात की प्रतीक्षा नहीं करती कि वर्तमान में जिन राज्यों के चुनाव हो रहे हैं, उसके परिणाम आ जाएं, उसके बाद आगे का काम शुरू किया जाए। उसकी मशीनरी किसी भी राज्य में चुनाव के एक साल पहले से काम शुरू कर देती है।

कठिन होमवर्क
दिलचस्प तथ्य है कि जब हरियाणा का चुनाव परिणाम आ रहा था, ठीक उसी दिन भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व महाराष्ट्र के चुनाव की तैयारी में जुटा हुआ था और बैठकें कर रहा था। उन्हें इस बात की शायर्द ंचता नहीं थी कि चुनाव परिणाम क्या आएंगे। यह तब था जब ज्यादातर चुनावी सर्वेक्षण भारतीय जनता पार्टी को हरियाणा में हारते हुए दिखा रहे थे। वास्तव में 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद अपने चुनावी लक्ष्य से दूर हो गई भाजपा एक बार फिर मजबूती से खड़ी हो गई है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि भाजपा नेतृत्व जानता है कि किस तरह से चुनाव लड़ना है, और हारी बाजी को अपने पक्ष में करना है। वह हारता भी है तो अंतिम समय तक लड़ाई लड़कर। उसे यह मालूम होता है कि जमीन कठिन है लेकिन उसके प्रयासों में कोई कमी नहीं होती। ऐसी कौन सी मशीनरी है जो पार्टी के अंदर यह जोश पैदा करती है कि पहले तो चुनाव जीतना है। अगर हारना भी है तो मजबूती से लड़ कर। लोकसभा चुनाव के बाद जम्मू कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र्र, झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए और यह अनुमान लगाया गया था कि इन सभी राज्यों में बीजेपी कमजोर हो गई है और हारेगी। लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने हरियाणा जीता, महाराष्ट्र जीता और अब दिल्ली भी जीत लिया।

संघ है ताकत
आखिर वह कौन सी शक्ति है जो बीजेपी को चुनावी संजीवनी दे रही है। इसको समझने के लिए भारतीय जनता पार्टी की कमजोरी और ताकत दोनों को समझना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक नेता बताते हैं कि केवल संघ कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र में लगभग पचास हजार तक छोटी- बड़ी बैठक कीं और लोगों को समझाने का प्रयास किया कि भाजपा उनके लिए क्यों जरूरी है? संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता कहते हैं कि हम लोग यह समझकर काम करते हैं कि सफलता कोई जरूरी नहीं है, शायद कोई हमारी बात समझ ले। समर्थक उनके साथ हैं लेकिन विरोधियों में से कोई एक भी उनकी बात समझ लेता है तो यह उनकी सफलता है। वह बताते हैं कि संघ कार्यकर्ता यह जानते हुए भी कि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा बुरी तरह हार गई थी, लोगों को समझाने में लगे रहे। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि चुनाव एक निश्चित अवधि में नहीं लड़ा जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि चुनावी तैयारी बहुत पहले से हो और इसकी विवेचना और आंकड़े आपके सामने हों। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता हंसते हुए कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जो चुनावी मशीनरी तैयार की है, उसको भेद पाना आसान नहीं है। यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें विपक्ष की थोड़ी सी भी गलती बहुत भारी पड़ जाती है।

सब पर गहरी नज़र
दरअसल, भाजपा के देशभर में फैले लाखों कार्यकर्ता और उनके फोन नंबर पार्टी के दिल्ली स्थित मुख्यालय में दर्ज हैं। लोकसभा चुनाव में कुछ राज्यों में हुई हार के बाद भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं से संवाद का कार्यक्रम और तेज किया है। पार्टी के पास ऐसा डाटा मौजूद है कि वह गांव बैठे अपने कार्यकर्ता से भी बात कर सकती है और चुनावी हवा की जानकारी ले दे सकती है। एक रोचक घटना याद आ रही है। हरियाणा को लेकर चुनावी तैयारी चल रही थी। पंचायत स्तर तक बैठक हो रही थी। पार्टी के एक नेता एक दिन बैठक में नहीं गए। उनके पास दोपहर को फोन आने शुरू हुए कि आज की र्मींटग में क्या हुआ? उनकी अपनी रिपोर्ट क्या है? तत्काल नोट कराएं? पार्टी के नेता ने बताया कि आज की र्मींटग में जा नहीं पाए हैं लेकिन 1 घंटे के अंदर लगभग 10 ऐसे फोन आए जिसमें एक ही सवाल पूछा गया कि आज की र्मींटग में क्या हुआ? और क्या निष्कर्ष निकला है?

यह फोन प्रदेश स्तर से लेकर दिल्ली तक से आ रहे थे। पार्टी के केंद्रीय मुख्यालय को भी यह पता था कि आज कौन नेता कहां बैठक कर रहा है और कितने लोगों से मिल रहा है। उनकी बैठकों का एजेंडा क्या है। जो लोग बैठक ले रहे थे, उनसे पूरी रिपोर्ट देने को भी कहा गया था और यह रिपोर्ट दिल्ली तक जानी थी। वह नेता इस बात से परेशान हो गए कि उनके पास इतने फोन आ रहे हैं। वह बोले ज्यादा अच्छा होता कि मैं र्मींटग में चला जाता। आवश्यक कार्य के कारण नहीं गया लेकिन यह सफाई मुझसे कल तक मांगी जाएगी कि मैं र्मींटग में क्यों नहीं गया? भाजपा ने एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार किया है जो अपने नेताओं को न केवल उत्तरदायित्व देता है बल्कि उसके बाद उसकी समीक्षा भी करता है। यह आश्चर्य पैदा करता है कि दिल्ली जैसे राज्य में संघ के ही कार्यकर्ताओं ने लगभग 10000 बैठकें कीं। छोटे-छोटे मोहल्लों में जाकर 10-15 लोगों के बीच अपनी बात कही और चुनावी मैदान में डटे रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा का वह पितृ संगठन है जो भाजपा के लिए माहौल तैयार करता है। वह अपने विरोधियों को भी यह समझाने का प्रयास करता है कि वह जो कह रहे हैं वह सही है। बीजेपी से ही देश बच सकता है।

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