भारतीय भाषाओं को बचाने का समय सिर्फ बचेंगी 200 भाषाएं : प्रो. द्विवेदी
नई दिल्ली : विश्व में लगभग छह हजार भाषाओं के होने का अनुमान है। भाषाशास्त्रियों की भविष्यवाणी है कि 21वीं सदी के अंत तक इनमें से केवल 200 भाषाएं जीवित बचेंगी और खत्म हो जाने वाली भाषाओं में भारत की सैकड़ों भाषाएं होंगी। यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने मंगलवार को हिंदी पखवाड़े के दौरान आयोजित की गई प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरण समारोह में व्यक्त किए। कार्यक्रम में संस्थान के अपर महानिदेशक श्री सतीश नम्बूदिरीपाद, प्रोफेसर आनंद प्रधान एवं भारतीय सूचना सेवा की पाठ्यक्रम निदेशक श्रीमती नवनीत कौर भी मौजूद थीं।
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समारोह में प्रो. द्विवेदी ने सभी विजेताओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। कोविड-19 महामारी के संबंध में सरकार की ओर से जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए इस कार्यक्रम में केवल पुरस्कार विजेताओं को ही आमंत्रित किया गया। इस अवसर पर प्रो. द्विवेदी ने कहा कि अगर आप भाषा विज्ञान के नजरिए से देखें, तो हिंदी एक पूर्ण भाषा है। हिंदी की देवनागरी लिपि पूर्णत: वैज्ञानिक है। हिंदी भाषा में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है, जिसके कारण संवाद और उसके लेखन मे त्रुटियां न के बराबर होती हैं। उन्होंने कहा कि भाषा मनुष्य की श्रेष्ठतम संपदा है। सारी मानवीय सभ्यताएं भाषा के माध्यम से ही विकसित हुई हैं।
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि वर्ष 2040 तक भारत विश्व की एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन चुका होगा। आप सोचिए कि उस भारत के अधिकतर नागरिक अपने जीवन के सारे प्रमुख काम किस भाषा में कर रहे होंगे? वर्तमान में जिस तरह अंग्रेजी का चलन तेजी से बढ़ रहा है, क्या उसके बीच हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को स्थान मिलेगा? प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आईआईएमसी ने इस वर्ष हिंदी पखवाड़े का आयोजन भारतीय भाषाओं के बीच संवाद बढ़ाने की भावना के साथ किया था। इस वर्ष हमारा ये प्रयास था कि हिंदी पखवाड़ा संवाद और विमर्श का प्रबल माध्यम सिद्ध हो।
हर वर्ष की तरह इस बार भी हिंदी पखवाड़े के तहत भारतीय जन संचार संस्थान में हिंदी पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं की प्रदर्शनी, निबंध प्रतियोगिता, हिन्दी टिप्पणी एवं प्रारूप लेखन प्रतियोगिता, हिन्दी काव्य पाठ प्रतियोगिता, हिन्दी टंकण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। पखवाड़े के दौरान भारतीय सूचना सेवा प्रशिक्षुओं के लिए एक कार्यशाला का आयोजन भी किया गया, ताकि उन्हें रोजमर्रा के सरकारी कामकाज को हिंदी में करने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित किया जा सके। कार्यक्रम का संचालन भारतीय जन संचार संस्थान की छात्र संपर्क अधिकारी विष्णुप्रिया पांडेय ने किया। समारोह के अंत में संस्थान के राजभाषा विभाग की परामर्शदाता रीता कपूर ने सभी का धन्यवाद दिया।
(लेखक : महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली)
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