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कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक मंच पर लाने के साक्षी बने पीएम मोदी

विवेक ओझा

मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीशों की संयुक्त बैठक को किया संबोधित

नई दिल्ली: आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के शासन प्रणाली में बेहतरी लाने के लिए एक और ऐतिहासिक काम किया जो उनके गवर्नेंस के मजबूती का एक और सबूत है। उन्होंने आज राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने तीन चार बातों पर विशेष बल दिया। पहली बात ये कि किसी भी देश में सुराज का आधार न्याय होता है। इसलिए प्रधानमंत्री ने न्याय प्रणाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए लीगल टर्मिनोलॉजिस के साथ-साथ लोक भाषाओं , मातृभाषाओं में न्याय की कार्यवाहियों को पहुंचाने पर बल दिया , टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के जरिये जुडिशल परफॉर्मेंस को मजबूती देने की सलाह दी , अप्रासंगिक कानूनों के गट्ठर को खत्म करने की अपील राज्यों के मुख्यमंत्रियों से की ।

देश में यह देखा जाता रहा है कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री अथवा राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठकें और जुडिशरी के मामलों से संबंधित बैठकें अलग अलग होती रही हैं। मुख्यमंत्रियों की बात करें तो मुख्यमंत्रियों की बैठक देश के गृह मंत्री के साथ कई अवसरों पर होती रही हैं , खासकर क्षेत्रीय परिषदों की जब बैठके होती हैं तो उसकी अध्यक्षता देश के गृहमंत्री करते हैं और उसमें संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ उनकी चर्चा होती है और शासन-प्रशासन में सुधार के लिए नीतियां निर्मित की जाती हैं। इसके अलावा कई महत्वपूर्ण अवसरों पर देश के प्रधानमंत्री विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित करते रहे हैं। खासकर कोरोनावायरस महामारी से निपटने की तैयारियों में एकरूपता लाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कई अवसरों पर देश के मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल मीटिंग भी की।

इसी प्रकार देश के जुडिशल अधिकारियों, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीश की बैठकें आमतौर पर अलग से होती रही हैं लेकिन अब भारतीय प्रधानमंत्री ने देश के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया है जिसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण मौजूद हैं ।

चूंकि भारत जैसे देश की प्रगति के लिए यह बहुत जरूरी है कि वहां के शासन के विभिन्न अंगों में एक सामंजस्य हो , शासन के अंग यानी विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे पर भरोसा करें , शासन के अंग एक दूसरे के साथ गलत प्रतिस्पर्धा की भावना न रखें और खासकर शासन के अंगों के बीच राजनीतिक दलगत आधार पर आपसी मनमुटाव को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी मकसद के लिए शासन के अंगों के बीच एक वैधानिक बंधुत्व की भावना के विकास का आवाहन किया है। उनका मानना है कि जिस दिन शासन के तीनों अंग एक वैधानिक भाईचारे के भाव से जुड़ कर काम करेंगे उसी दिन राष्ट्र की प्रगति अपने सर्वोत्तम रूप में सुनिश्चित हो जाएगी।

प्रधानमंत्री मोदी की यह अपेक्षा पूरी होने पर देश की शासन प्रणाली में आमूलचूल बदलाव देखा जा सकेगा। आपने अक्सर देखा होगा कि भारत के कई राज्यों के ऐसे हाईकोर्ट हैं जिन्होंने अपने ही राज्य सरकारों के खिलाफ फैसले दिए , कई ऐसे हाईकोर्ट हैं जिन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों फैसलों को गलत माना और उसके खिलाफ निर्णय दिए । कई ऐसे हाईकोर्ट हैं जो कुछ ज्यादा ही ज्यूडिशल एक्टिविज्म के साए में रहते पाए गए हैं।

अक्सर ऐसा होता है कि राज्यों के हाई कोर्ट्स राज्य सरकारों से कुछ सूचनाएं मांगते हैं और उन्हें कुछ जरूरी दिशानिर्देश भी देते हैं, लेकिन राज्य सरकार ऐसे आदेशों के अनुरूप या तो काम नहीं कर पाती हैं या नहीं करना चाहती हैं । ऐसे में हाईकोर्ट और राज्य सरकार के मध्य विवाद बढ़ने के आसार भी सामने आते हैं। ऐसा देखा गया है कि कई अवसरों पर राज्य सरकारें अपने निर्णय नीतियों और कार्यप्रणाली को सही साबित करने के लिए राज्य के महाधिवक्ताओं के जरिए कानूनी जिरह करने लगती हैं , इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपने निर्णय और अपने स्टैंड को सही साबित करने के लिए अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सामने तर्क पर तर्क देती है । ऐसा नहीं है कि राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि शासन करने की अपनी कार्यप्रणाली होती है और न्याय करने की अपनी कार्यप्रणाली। लेकिन हम भारत जैसे देश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के विचारों , निर्णय और निर्देशों को भी सिरे से खारिज नहीं कर सकते और संविधान की व्याख्या करने का अधिकार ज्यूडिशरी को ही दिया गया है और वही देश के नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षक भी है । जुडिशरी हमारे देश में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक परिवर्तनों का का वाहक है।

विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय की पीठें राज्य सरकारों से कभी बलात्कारियों के मुद्दे पर , कभी मृत्युदंड के मामले पर , कभी राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को रोकने पर , कभी पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन करने जैसे तमाम मुद्दों पर नोटिस भेजती रहती हैं और उनकी अपेक्षा होती है कि राज्य सरकारें सही दिशा में काम करें और जनता के कल्याण को सुनिश्चित करें। वहीं दूसरी तरफ भारतीय चुनावी राजनीति और दलगत प्रणाली की यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि कई राज्य सरकारों को कई अवसरों पर दलीय निष्ठा और दलगत आधारों पर काम करने की विवशता रहती है जिसके चलते वह उचित फैसले ले पाने में अपने को असमर्थ पाती हैं। इसलिए भी न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेद उभर जाते हैं । इन्हीं मतभेदों को दूर कर शासन व्यवस्था को गुड गवर्नेंस से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के मध्य सहयोग और समन्वय के साथ कार्य करने का आवाहन किया।

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