डिजिटल युग में मात्र 350 मीटर का सफ़र, 8 किलोमीटर का अतिरिक्त रास्ता चलकर तय करते हैं हज़ारों लोग
गोण्डा: अभी इसी साल जनवरी माह में जनपद गोण्डा के परसौली गांव में एक शिक्षक समेत दर्जनों लोगों के डूबने की घटना दुर्भाग्य से हमारे सामने आयी थी। लेकिन इस घटना के बाद भी ज़िला प्रशासन या स्थानीय नेतागण सबक नहीं ले सके। सब बड़े बड़े वादे तो करते हैं किंतु धरातल पर उनका कोई सरोकार नहीं होता। संलग्न चित्र है गोण्डा शहर से चंद किलोमीटर दूर बसे नगर कोतवाली के ग्राम माधवपुर चकत्ता से होकर गुज़र रही टेढ़ी नदी का। दरअसल माधवपुर चकत्ता यूँ तो मुख्य राजधानी मार्ग से सटा हुआ है लेकिन इसका एक पुरवा टेढ़ी नदी के उस पार बसा है। ज्ञात हो कि इस पुरवा तक पहुंचने का कोई मुख्य संपर्क मार्ग आज तक नहीं बन पाया है। लखनऊ रोड से महज 350 मीटर की दूरी पर हज़ारों की तादाद में बसे गांववासी लगभग 7 से 8 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करके बालपुर पहुंचते हैं।
दूरी कम तय करनी पड़े इसलिए यहां की आबादी सामान्य दिनों में सीने तक भरे जल में होकर नदी पार करते हुए माधवपुर राय के समीप लखनऊ मार्ग पर पहुंचती है। किन्तु यदि इन्हें किसी आपात स्थिति में गोण्डा पहुंचना हो तो इनके पास दो ही रास्ते बचते हैं या तो बालपुर होकर जाया जाए या फिर गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर बना रेलवे पुल पार करके। सामान्य दिनों में तो बदतर होती ही है किन्तु स्थिति बरसात में अत्याधिक भयानक हो जाती है। नदी अपने पूरे उफ़ान पर होती है। जलस्तर बढ़ जाता है और इसका जलभराव क्षेत्र भी चौड़ा हो जाता है जिससे तैराक भी नदी पार करने में अक्षम होते हैं और मज़बूरी में बालपुर का रास्ता तय करते हैं या फिर दूसरा यहां के लोग ग्राम भूलभुलिया से होकर रेलवे पुल चढ़कर उस पार निकलते हुए ग्राम दुल्लापुर खालसा पहुंचते हैं। ये रास्ता भी 7 किलोमीटर से कम नहीं पड़ता और रेलवे पुल क्रॉस करने में मौत से हर रोज़ आंख मिलाना अलग से।
सुविधा से महज 350 मीटर की दूरी इस गांव के लिए अभिशाप बन चुकी है। शिक्षा का स्तर 1 प्रतिशत ही हो सका है। दैनिक मज़दूरी कर जीवन यापन को भी नदी मार्ग ने दुष्कर बना दिया है। प्रशासन व शासन से गुहार लगाने पर नदी पार करने हेतु महज एक ‘नाव’ तक इन ग्रामवासियों को नसीब न हुआ। ग्राम प्रधान को तो ये समस्या कोई समस्या जैसी लगती ही नहीं। शासन प्रशासन में बैठे लोग भी जवाब में ये कहकर बात टाल देते हैं कि इस गांव से लखनऊ राज्यमार्ग तक का लिंक मार्ग बनाने में नदी पर पुल का निर्माण करना होगा जो कि खर्चीला काम है और दूसरी बात संबंधित मार्ग आगे चलकर किसी मुख्य मार्ग से या किसी दूरगामी मार्ग से नहीं जुड़ता इसलिये इस मार्ग पर ज्यादा बजट खर्च नहीं किया जा सकता।
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या लगभग हज़ारों ग्रामीणों का अपना कोई मानवाधिकार नहीं है? इन्हें मुख्यधारा से सिर्फ इसलिए नहीं जोड़ा जा सकता क्योंकि इनका मार्ग किसी अन्य मार्ग या प्रभावशाली व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं करता? जनपद में ही ऐसे बहुत से मार्ग बनाये गए हैं जो कि विशिष्ट व्यक्तित्त्व को आर्थिक सुविधा सम्पन्न बनाने हेतु हैं।
पुरवा चकत्ता पार के नागरिकों की सुध क्या कोई नहीं लेगा? क्या यहां के बच्चे खासतौर पर बालिकायें, मार्ग दुरूह होने की वजह से शिक्षा से वंचित रह जाएंगी? जिम्मेदारों को एक बार इस मजरे का दौरा कर हरसंभव आवश्यक इंतेज़ाम ज़रूर करना चाहिए। क्योंकि भारत का संविधान कहता है कि एक नागरिक का भी मौलिक अधिकार प्रभावित होता है तो उससे संविधान की आत्मा को चोट पहुंचती है।