छत्तीसगढ़राज्य

छत्तीसगढ़ में औषधीय फसलों के प्रसंस्करण हेतु 40 लाख टन क्षमता की दो इकाईयां स्थापित

रायपुर : इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कृषि मड़ई एग्री कानीर्वाल के तीसरे दिन छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवम विकास) सहकारी संघ मर्यादित के सहयोग से छत्तीगसढ़ के लघु वनोपज उत्पादों के विपणन एवं निर्यात हेतु प्रदर्शनी एवं जागरूकता सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का शुभारंभ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के विशेष प्रबंध संचालक श्री एस.एस. बजाज के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक त्रिपाठी, निदेशक विस्तार डॉ. अजय वर्मा छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के अतिरिक्त प्रबंध संचालक श्री आनंद बाबू, लघु वनोपज संघ के संचालक श्री अमरनाथ प्रसाद, सत्यम इन्टरप्राइजेस के श्री रोमीत राठी, उद्योग संचालनालय श्री संजय गजहाडे उपस्थित थे। सम्मेलन में छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को लघु वनोपज संग्रहण, प्रसंस्करण एवं विक्रय की जानकारी दी गई।

सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री एस.एस. बजाज ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ निरंतर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली एवं लाख अनुसंधान संस्थान, रांची के सहयोग से छत्तीसगढ़ में लघु वनोपज पर अनुसंधान एवं विकास कार्य किया जा रहा है। उन्होंने संघ द्वारा संचालित की जा रही कृषकोपयोगी योजनाओं की जानकारी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि विभिन्न औषधीय एवं सगंध पौधों की संरक्षण, संग्रहण, अनुसंधान, विस्तार का कार्य किया जा रहा है तथा औषधीय फसलों की कृषि कार्यमाला भी बनाई गई है। उन्होंने बताया कि उत्कृष्टता केन्द्र द्वारा अश्वगंधा, शतावर उत्पादन एवं प्रसंस्करण किया जा रहा है। कुलपति डॉ. चंदेल ने बताया की विश्वविद्यालय में उत्पादित सफेद मूसली, हल्दी का क्रय इमामी कम्पनी द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के तीनों जलवायु परिस्थिति के अनुसार विभिन्न औषधीय एवं सगन्ध फसलों की कार्यमाला के अनुरूप उत्पादन करने में कृषि विज्ञान केन्द्र सहयोगी होंगे। उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ के गांवों में परंपरागत रूप से औषधीय फसलों की तुड़ाई माह के विशेष दिन पूर्णिमा में ही करने का प्रावधान है, ताकि गुणकारी उत्पाद प्राप्त हो।

कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के अतिरिक्त प्रबंध संचालक श्री आनंद बाबू ने कहा कि छत्तीसगढ़ में औषधीय फसलों के 13 लाख 50 हजार संग्रहणकर्ता हैं, जिनके माध्यम से इमली, हर्रा व बहेरा का संग्रहण किया जाता है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में औषधीय फसलों की दो प्रसंस्करण इकाई स्थापित की जा चुकी है जिनकी क्षमता 40 टन की है। डॉ. बाबू ने कहा कि महुआ का समर्थन मूल्य 40 रुपए प्रति किलो होने से एक भी महुआ बेकार नहीं जा रहा है। लघु वनोपज संघ के संचालक श्री अमरनाथ प्रसाद ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य औषधि संस्थान द्वारा ग्रामीणों को बाड़ी में औषधीय पौधे लगाने हेतु प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि संजीवनी में 134 प्रकार के औषधीय उत्पादों की बिक्री की जाती है तथा गत वर्ष 6.8 करोड़ रुपए की बिक्री की गई थी। औषधीय, सगन्ध फसल उत्कृष्टता केन्द्र के मुख्य अन्वेषक डॉ. पी.के. जोशी ने बताया कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 2005-06 से गैरकाष्ठीय वनोपज पर अनुसंधान कैम्पा के माध्यम से किया जा रहा है, अभी वतार्मान में 9 फसलों की कृषि कार्यमाला तैयार की गई है। कार्यक्रम में रोमीत राठी, श्री संजय गजहाडे, श्री राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. मंजीत कौर बल एवं नमिता मिश्रा ने भी विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर अधिष्ठाता विनय पाण्डेय, डॉ. आर.एन. सिंह, डॉ. ए.के. दवे एवं विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, विद्यार्थी एवं बड़ी संख्या में प्रगतिशील कृषक उपस्थित थे।

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