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देश का पहला जीआई बोर्ड बनाएगा उत्तराखंड, करेगा बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा 

-विवेक ओझा

भौगोलिक संकेतकों के बारे में आपने सुना ही होगा, इसे हम जियोग्राफिकल इंडिकेटर के नाम से भी जानते हैं। सरल भाषा में कहें तो यह एक बौद्धिक संपदा है। बौद्धिक संपदा इसलिए है कि किसी भी वस्तु के निर्माण का तरीका, उस पर की गई डिजाइनिंग का तरीका, किसी कृषि उत्पाद को उत्पादित करने का तरीका, खाद्यान्न फसलों या फलों की स्पेशल क्वालिटी और उनकी वैरायटी से जुड़ी विशेषताएं उन लोगों पर निर्भर करती हैं जो उसे निर्मित करते हैं या उसे उत्पादित करते हैं और इसीलिए ऐसे लोगों की उन उत्पादों पर बौद्धिक संपदा अधिकार होना जरूरी हो जाता है अन्यथा बासमती चावल उगाया किसी और क्षेत्र में जाएगा, उगाने वाले लोग कोई और होंगे और कहीं और बासमती चावल के नाम पर उसे बेचकर ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ कमाया जाएगा और इस तरीके से किसी कृषक समूह के बौद्धिक संपदा की चोरी कर ली जाएगी। 

जीआई जैसी बौद्धिक संपदा के संरक्षण के लिए ही अब उत्तराखंड की धामी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। मुख्यमंत्री धामी ने की घोषणा की है कि उत्तराखंड  देश का पहला जीआई बोर्ड (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन बोर्ड ) बनाएगा। इस बोर्ड के बनने से स्थानीय उत्पादों को कानूनी संरक्षण भी मिलेगा। उत्तराखंड में क्षेत्र विशेष में उत्पादित पारंपरिक और जैविक उत्पादों के संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए राज्य भौगोलिक संकेत बोर्ड (ज्योग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का निर्णय काफी अहम है। हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कृषि मंत्री गणेश जोशी ने उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद की ओर से प्रदेश में उत्पादित विभिन्न जैविक उत्पादों की तैयार किट का अनावरण किया। उत्तराखंड के जैविक उत्पादों को पहचान दिलाने के लिए सरकार ने नई पहल की है।

जीआई बोर्ड के गठन का क्या होगा लाभ

  • बोर्ड के गठन से जीआई ( भौगोलिक संकेतक) प्रमाणित उत्पादों का निर्यात बढ़ेगा और उससे राज्य की आर्थिक स्थिति में मजबूती आएगी । साथ ही जैविक व क्षेत्र विशेष के उत्पादों की मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए ब्रांडिंग की जाएगी। 
  • बोर्ड जीआई पंजीकरण कराने के साथ घरेलु व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इन उत्पादों की मांग व विशेषताओं का अध्ययन करते हुए संभावित उत्पादों की पहचान भी करेगा। 
  • यह बोर्ड स्थापित सीमाओं के भीतर और सहमत मानकों के अनुसार उत्पाद का उत्पादन करने वाले किसी भी निर्माता और अन्य संबंधित ऑपरेटर को संकेत का उपयोग करने का अधिकार प्रभावी ढंग से देने के लिए एक प्रणाली तैयार करेगा।
  • यह बोर्ड जीआई पंजीकरण कराने के साथ घरेलु व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इन उत्पादों की मांग व विशेषताओं का अध्ययन करते हुए संभावित उत्पादों की पहचान भी करेगा। 
  • यह बोर्ड स्थापित सीमाओं के भीतर और सहमत मानकों के अनुसार उत्पाद का उत्पादन करने वाले किसी भी निर्माता और अन्य संबंधित ऑपरेटर को संकेत का उपयोग करने का अधिकार प्रभावी ढंग से देने के लिए एक प्रणाली तैयार करेगा। 
  • जीआई बोर्ड के गठन से बड़े पैमाने पर स्थानीय उत्पादकों को रोजगार प्रोत्साहन मिलेगा। जिससे पलायन भी रूकेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद की ओर से बोर्ड गठित का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। 

क्या है जियोग्राफिकल इंडीकेशन (भौगोलिक संकेतक)
जियोग्राफिकल इंडीकेशन (भौगोलिक संकेतक ) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है। दूसरे शब्दों में भौगोलिक चिन्ह या संकेत (जीआई) का शाब्दिक अर्थ है एक ऐसा चिन्ह, जो वस्‍तुओं की पहचान, जैसे कृषि उत्‍पाद, प्राकृतिक वस्‍तुएं या विनिर्मित वस्‍तुएं, एक देश के राज्‍य क्षेत्र में उत्‍पन्‍न होने के आधार पर करता है, जहां उक्‍त वस्‍तुओं की दी गई गुणवत्ता, प्रतिष्‍ठा या अन्‍य कोई विशेषताएं इसके भौगोलिक उद्भव में अनिवार्यत: योगदान देती हैं।
यह दो प्रकार के होते हैं- (1) पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं जो उत्‍पाद के उद्भव के स्‍थान का नाम बताते हैं जैसे शैम्‍पेन, दार्जीलिंग आदि। (2) दूसरे हैं गैर-भौगोलिक पारम्‍परिक नाम, जो यह बताते हैं कि एक उत्‍पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है जैसे अल्‍फांसो, बासमती, रोसोगुल्ला आदि। जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।

किन वस्तुओं, पदार्थों को दिया जा सकता है जी आई टैग
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के मुताबिक कृषि उत्पादों जैसे चावल, जीरा, हल्दी, नींबू आदि।
खाद्यान्न वस्तुओं जैसे रसगुल्ला , लड्डू , मंदिर के विशिष्ट प्रसाद आदि।
वाइन और स्पिरिट पेय जैसे शैम्पेन और गोआ के एल्कोहलिक पेय पदार्थ फेनी आदि।
हस्तशिल्प वस्तुएं (हैंडीक्राफ्ट्स) जैसे मैसूर सिल्क, कांचीवरम सिल्क तथा इसके साथ ही मिट्टी से बनी मूर्तियां (टेराकोटा) और औद्योगिक उत्पाद।

जीआई टैग से लाभ
जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पादन को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
जीआई टैग के द्वारा उत्पादों के अनधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है।
यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाली वस्तुओं का महत्व बढ़ा देता है।
जीआई टैग के द्वारा सदियों से चली आ रही परंपरागत ज्ञान को संरक्षित एवं संवर्धन किया जा सकता है।
जीआई टैग के द्वारा स्थानीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में मदद मिलती है। इसके द्वारा टूरिज्म और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
जीआई टैग 10 साल के लिए दिया जाता है और जीआई टैग होल्डर की मृत्यु के बाद इसके अधिकार को ट्रांसफर किया जा सकता है। 

(लेखक ‘दस्तक टाइम्स’ उत्तराखण्ड के संपादक हैं)

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