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…तो इस बड़ी वजह से बार-बार शिव की शरण में जा रहे हैं राहुल गांधी

पहले केदारनाथ और बाद में गुजरात चुनाव में सोमनाथ मंदिर में दर्शन के बाद से ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की शिवभक्ति सियासी गलियारों में चर्चा में है। हाल ही में उन्होंने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उज्जैन स्थित महाकाल के भी दर्शन किए।
राहुल गांधी की दादी और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिसंबर 1979 में सत्ता में लौटने से पहले महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन किए थे। बाद में  उनके पिता राजीव गांधी ने 23 अप्रैल 1987 में प्रधानमंत्री रहते हुए भगवान महाकाल के दर्शन किए जबकि उनकी मां सोनिया गांधी साल 2008 में यहां आईं थीं।
...तो इस बड़ी वजह से बार-बार शिव की शरण में जा रहे हैं राहुल गांधी
क्यों खास हैं महाकाल  
बता दें कि देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ सबसे खास हैं। उनका अपना महत्व है। महाकाल शिव का वह रूप हैं जो मृत्यु के देवता हैं। शिव महापुराण के 22 वें अध्याय के मुताबिक दूषण नामक एक दैत्य से अपने भक्तों की रक्षा के लिए भगवान शिव ज्योति के रूप में उज्जैन में प्रकट हुए थे । शिवपुराण के अनुसार दूषण संसार का काल था और शिव ने उसे खत्म कर दिया और वे महाकाल के नाम से स्थापित हुए। कहा जाता है कि दूषण वध के बाद भगवान शिव कालों के काल महाकाल कहलाए।

मान्यता है कि जिसके परिवार में अकाल मृत्यु हो रही है, जिसे अकाल मौत का डर सता रहा हो उसे शिव की शरण में जाना चाहिए। शिव ऐसे भक्तों को अभयदान देते हैं। मार्केंडेय ऋषि ने मृत्यु के देवता यमराज से बचने के लिए महामृत्युंजय के मंत्र के रूप में शिव को पुकारा और जीवन दान प्राप्त किया।

हिंदू कार्ड या सचमुच की भक्ति 
खास बात यह है कि शिव के प्रति आस्थावान नजर आ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हजारों किलोमीटर दूर की दुर्गम कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी कर चुके हैं। जब वे कैलाश पहुंचे थे तो ट्वीट कर कहा था- “एक इंसान तब ही कैलाश जाता है, जब उसे बुलावा आता है। मैं काफी खुश हूं कि मुझे ये मौका मिला है, जो भी मैं यहां देखूंगा वह आपके साथ साझा करने की कोशिश करूंगा.” यकीनन यह केवल ट्वीट भर नहीं था। कैलाश मानसरोवर के बारे में यह कहा भी जाता है कि वहां कोई तभी जा सकता है जब शिव बुलाते हैं।

क्यों शिव को पूज रहे हैं राहुल?
बहरहाल, गुजरात चुनाव के दौरान राहुल की शिवभक्ति पर सियासी गलियारों में निशाने पर रही। बीजेपी ने उन पर हिंदू कार्ड खेलने तक के आरोप लगाए। लेकिन इन बयानों के उलट राहुल पूरी गंभीरता से पब्लिक के बीच खुदको शिवभक्त बताते रहे हैं। मीडिया में उन्होंने कई बार कहा है कि उनकी दादी इंदिरा गांधी भी शिव जी की पूजा करती रही हैं, जबकि पिता राजीव गांधी शिवभक्त रहे हैं। यहां तक कि शिव उनके पूरे परिवार के ही आराध्य रहे हैं।

दरअसल, राहुल की शिव पूजा को लेकर भले ही सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं रही हों, लेकिन इतिहास वहीं कहता है जो राहुल कहते हैं। राहुल की दादी और देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी शिव की भक्त रही हैं। शिव उनके लिए उस डर, भय और अनिष्ट से बचाने वाले देव के रूप में रहे हैं, जो सियासत में उनके विरोधियों से उन्हें था। इमरजेंसी उसी भय का बाहरी नतीजा थीं, जबकि अंदर से वे एक डरी हुईं अकेली राजनेता ही थीं, जिन्हें सत्ता से बाहर रहते विरोधियों से भी मौत का डर सता रहा था। उस अकेले और डर से भरे समय में इंदिरा को मृत्यु के देव शिव का ही सहारा रहा।

राहुल सही कहते हैं क्योंकि शिव के करीब थीं दादी, लेकिन क्यों ? 
गांधी परिवार में संजय गांधी की मौत पहली असमय और अपघाती मौत थी और छोटे बेटे की मौत इंदिरा गांधी के लिए किसी सदमे से कम नहीं थीं। वे संजय को अपना उत्तराधिकारी मानती थीं। एक लगातार घूमती सियासत में अपना सबसे करीबी और विश्वासपात्र भी। संजय का जाना उन्हें बहुत अकेला कर गया था। यह एक ऐसा एकांत था जो इंदिरा को भयाक्रांत करने वाला था और वे लगातार उससे जूझती रहीं थीं।

संजय के जाने बाद टूट गईं थी इंदिरा? 
इधर अपने छोटे बेटे संजय गांधी को असमय खो देने के बाद बड़े बेटे राजीव का पायलेट के रूप में प्रोफेशन भी इंदिरा गांधी को कम ही रास आता था। एक बेटे का हवाई जहाज उड़ाने का शौक उन्हें अकेला और उदास कर गया था, जबकि दूसरे बेटे राजीव के इसी तरह के शौक को लेकर वे चिंता कई बार जाहिर कर चुकी थीं। उन्हें राजीव के प्लेन उड़ाने से डर लगने लगा था। नाश्ते की टेबल हो या रात को सोने का समय, उन्हें हर समय अपने बड़े बेटे को लेकर चिंता थी।

खास बात यह है कि यह वही समय था जब वे बिहार के रहने वाले तांत्रिक और योग गुरु धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के और भी विश्वास में आईं। जानकार बताते हैं कि उस दौर में लंबे समय तक यह बात चर्चा में रही कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने ही उन्हें संजय को लेकर अलर्ट रहने के लिए कहा था। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के कहने पर ही इंदिरा ने शिव पूजा करना शुरू की। यही नहीं धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने उन्हें एकमुखी रुद्राक्ष भी दिया था, जिसे वे हमेशा अपने साथ रखती रहीं।

संजय की मौत के बाद डर से भरा एकाकीपन उन्हें ईश्वर के और भी करीब ले आया था। संभवतः वह र्इश्वर शिव ही रहे। राहुल बचपन से ही दादी इंदिरा गांधी के करीब रहे और वे उसी समय का जिक्र करते हैं, जब इंदिरा गांधी अपने पूजन कक्ष से लेकर जीवन में शिव के प्रति आस्थावान रहीं हो। हालांकि इंदिरा शुरू से ही धार्मिक थीं और पूजन-पाठ, अनुष्ठान में उनकी पूरी आस्था थी।

स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की लिखी हुई सोनिया गांधी की जीवनी रेड साड़ी में इंदिरा गांधी की ईश्वर के प्रति भक्ति और झुकाव का जिक्र किया गया है। ऐसे ही प्रख्यात गांधीवादी लेखक रामचंद्र गुहा की किताब, इंडिया आफ्टर गांधी और इंडिया आफ्टर नेहरू में कुछ संदर्भों में इसका जिक्र आता है।

बहरहाल, जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की शिव भक्ति के प्रति झुकाव की बात है, ईश्वर और ईष्ट किसी भी व्यक्ति का नितांत निजी हिस्सा होता है। माना जाता है कि हिंदू धर्म में ईष्ट और गुरु के नाम तो बेहद गोपनीय भी रखे जाते हैं। संभवतः राहुल शिव पूजा को लेकर जिस निजता और एकांत की बात कर रहे हों वो वहीं से जुड़ती हो। जैसा कि पहले कहा- संभव हो कि वे शिव को इसलिए पूज रहे हों कि क्योंकि वे महाकाल भी हैं।

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