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विश्व शांति और आत्म साक्षात्कार के प्रणेता हैं परमहँस योगानन्द 

लखनऊ : मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर, भारत सरकार द्वारा प्रेरित योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा परमहँस योगानन्द की एक सौ पच्चीसवीं जन्मतिथि के अवसर पर बीते 9 नवंबर को मुख्यमंत्री आवास 5 कालिदास मार्ग पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में स्वामी जी ने वाईएसएस/एसआरएफ के मुख्य एम्स एवं आइडियल्स के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी। स्वामी जी ने बताया कि योगानन्द जी एक प्रोग्रेसिव व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भगवद साक्षात्कार की महान प्रविधि क्रिया योग की शिक्षाओं के विस्तार के लिए उस समय के अनूठे तरीके डाक द्वारा भेजने की भी व्यवस्था की। योगानन्द जी के भारत प्रेम के विषय में बताते हुए स्वामी ईश्वरानंद ने कहा, श्री योगानन्द ने भारत भूमि के आध्यात्म की प्रशंसा करते हुए अपने प्राण त्यागे। स्वामी जी ने आग्रह किया कि योगानन्द जी को आदर देने का सबसे अच्छा तरीका है, उनके द्वारा दिया गया भगवद प्रेम अपनाएं। योगानन्द जी की शिक्षाओं के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवद प्रेम का अर्थ है उनकी उपस्थिति को सर्वत्र देखना, जो तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक हमारा मन शांत न हो। मन को शांत करने की एक प्रविधि का अभ्यास करना भी सिखाया। उन्होंने इस दौरान योग के आधारभूत नियमों के बारे में जैसे, सीधे बैठना, सही तरीके से श्वांस लेना और श्वांस लेने की सही प्रक्रिया से होने वाली शांति को आत्मसात करने का प्रयास करने के विषय में प्रोत्साहन दिया। उन्होंने बैठे ऑडियंस को दोहरे श्वांस का अभ्यास और श्वांस पर मन केंद्रित करने का अभ्यास भी कराया।
स्वामी ने स्वांस के अभ्यास के बाद मानस दर्शन का अभ्यास कराया। 350 लोगों के शांति के इस अभ्यास से पूर्ण मुख्यमंत्री आवास यौगिक शांति से ओत-प्रोत हो उठा। सांसद भूपेंद्र यादव ने योगानन्द जी के विषय में बताते हुए कहा, उनका जन्म विश्व के ऐसे समय में हुआ जब चारों ओर अशांति और युद्ध की स्थिति थी, ऐसे में परमहँस योगानन्द ने अपने अंदर असीम को जानने की पद्दति को अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, योगी कथामृत और अपने योगदा पाठों के द्वारा बताना शुरू किया, जिसका असर अब वैश्विक स्तर पर दिखाई देने लगा है। उन्होंने इन्हीं प्रिन्सिपल्स को आदर्श बनाते हुए अपना जीवन जिया और सम्पूर्ण मानव जाति को एक आदर्श जीवनशैली का मार्ग दिखाया। महावतार बाबाजी ने श्री युक्तेश्वर द्वारा योगानन्द जी को पश्चिम में क्रिया योग का प्रचार करने के लिए प्रेरणा दी। योगानन्द जी ने भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया एवं सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यक्रम में अति उत्साह के साथ भाग लिया। योगानन्द जी के विषय में कहते हुए मुख्यमंत्री ने अल्बर्ट आइंस्टीन के उस कथन को याद दिलाया कि विज्ञान की सीमाएं हैं और उन विज्ञान की सीमाओं को भारत की आध्यात्मिक विरासत ही लांघ सकती है। भारत आध्यात्मिकता का केंद्र है। योगानन्द जी के ही समय के अविभाजित बंगाल के प्रणवानंद जी के बारे बताते हुए योगी जी ने कहा जिस परम तत्व को उन्होंने इतनी कठिनाइयों के साथ पाया, अपितु उस भारत के प्राचीनतम प्रसाद को उस संसार को दिया जो इतनी कठिनाइयों के दौर से गुज़र रहा।
विश्व मानवता को जब भी कठिनाइयों का सामना करेगा, भारत अध्यात्म की विधियों द्वारा इन कठिनाइयों के निस्तारण के लिए नेतृत्व करता नजर आएगा। योगानन्द जी उसी आध्यात्मिक परम्परा से विश्व शांति और आत्म साक्षात्कार के प्रेणता हैं, जिससे भारत ने सदैव विश्व में अपना अलग स्थान बनाया। स्वामी वासुदेवानंद के भजनों से कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम में स्वामी ईश्वरानंद ने मुख्यमंत्री को योगदा सत्संग सोसाइटी की ओर से योगावतार श्री कृष्ण की एक सुंदर चित्र तथा लीची वृक्ष का पौधा भेंट किया। वहीँ सांसद भूपेंद्र यादव का भी कार्यक्रम में सम्मान किया गया।

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