दस्तक-विशेष

अंधविश्वास व पाखंड का संसार

 संजय सक्सेना

pakhand.qxdदेश में लगातार साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा है। साक्षरता ही नहीं बढ़ रही है विज्ञान के क्षेत्र में भी खूब प्रगति हुई है। वैज्ञानिक जीवन के सभी क्षेत्रों को सुगम और आरामदेह बनाने के लिये नित नये-नये आविष्कार कर रहे हैं। इंसान अंतरिक्ष तक में दस्तक दे चुका है, वहीं इसके उलट एक ऐसा वर्ग भी है जो पुराने रूढ़िवादी विचारों, अंधविश्वास और ढोंगी बाबाओं-कथित देवी मांओं के मायाजाल से बाहर ही नहीं निकल पा रहा है। अंधविश्वास में फंसकर यह लोग स्वयं का तो नुकसान कर ही रहे हैं समाज के लिये मुसीबत बन रहे हैं। इन्हें नहीं पता है कि इनकी वजह से ही छोटे-छोटे गांवों से लेकर बड़े-बड़े शहरों तक में कथित बाबा और देवी मां पैर पसारे हुए हैं,जिसके चक्कर में फंस कर कोई मेहनत की कमाई गवां रहा है तो किसी का परिवार प्रभावित हो रहा है। धर्म की आड़ में अधर्म करने वाले लोगों की वजह से ही देश के करीब-करीब सभी हिस्सों में अंधविश्वास और पाखंड का कारोबार खूब पनप रहा है। अनपढ़ और कम पढ़ा-लिखा ही नहीं अपने को बुद्धिजीवी और जागरूक समझने और कहलाने वाला तबका भी अंधविश्वास और पाखंडियों के भ्रमजाल से बच नहीं पाया है।

खासकर जब देश को राह दिखाने वाले नेता, फिल्मकार, डाक्टर, शिक्षक, विज्ञान से जुड़े लोग, बड़े-बड़े पूंजीपति आदि भी ऐसे अंधविश्वासी बाबाओं के चक्कर और मांओं के चक्कर में फंसते हैं तो सहज समझा जा सकता है कि समाज को कौन आईना दिखाने का काम करेगा। आम जनता जिन्हें अपना आदर्श मानती है,उनको ऐसा करते देख वह भी आदर्श पुरूषोंं के पीछे-पीछे भागते हुए ढोंग,पाखंड और अंधविश्वास फैलाने वालों का शिकार हो जाती हैं। आजकल तो कथित बाबाओं और ‘देवी मां’ की बाढ़ ही आ गई है। इनकी खूब चर्चा हो रही है। आध्यात्मिक बाबा, तांत्रिक बाबा, ओझा बाबा, ढोंगी बाबा, ये बाबा, वो बाबा, न जाने कौन-कौन से बाबा। देश की जनता बाबाओं के काले कारनामें देखकर पूरी तरह से भ्रमित हो चुकी है। कोई भगवा पहन लोगों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है तो कोई सफेद-काले वस्त्र धारण करके,लेकिन मकसद सबका एक ही है। जल्द से जल्द अपने लिये दौलत का ढेर लगा लेना। हाल में उत्तर प्रदेश की संगम नगरी इलाहाबाद में अखाड़ा परिषद ने आश्चर्यजनक रूप से एक बिल्डर और बीयर बार मालिक को ही महामंडलेश्वर बना दिया। जब आरोप लगे कि पैसों के दम पर बिल्डर सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर की पदवी दी गई तो उन्हें पदमुक्त कर दिया गया। सचिन दत्ता उर्फ महामंडलेश्वर सच्चिदानंद गिरि को अखाड़ा परिषद ने पूरे ताम-झाम और रीति-रिवाज के साथ महामंडलेश्वर की पदवी से नवाजा। निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने खुद सच्चिदानंद का पट्टाभिषेक किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव भी मौजूद थे। शिवपाल सिंह यादव ने बाकायदा अपने सरकारी हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश भी करवाई। किसी ने सचिन दत्ता का इतिहास जानने की कोशिश नहीं की। सचिन के महामंडलेश्वर सच्चिदानंद बनने के अगले ही दिन विवादों में आ गये। उन पर आरोप लगाया गया कि सचिन दत्ता नोएडा के बड़े बिल्डर हैं। नोएडा के सेक्टर 18 में उनका बीयर बार और डिस्को भी है। बालाजी कंस्ट्रक्शंस के नाम से इनका रियल एस्टेट कारोबार है। नोएडा और गाजियाबाद में इनके कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
हालांकि सच्चिदानंद गिरि के समर्थक उनके बचाव में कहते रहे कि सचिन दत्ता तो 22 साल की उम्र में ही संन्यासी बन गए थे। गाजियाबाद निवासी सचिन अग्नि अखाड़ा के महामंडलेश्वर कैलाशानंद के साथ 20 साल से जुड़े हैं। सचिन को महामंडलेश्वर बनाने की सिफारिश कैलाशानंद और नरेंद्र गिरि ने की थी। संत समाज में महामंडलेश्वर का पद बहुत ऊंचा और सम्मानित माना जाता है। कुंभ में होने वाले शाही स्नान में महामंडलेश्वर रथ पर सवार होकर निकलते हैं। कुंभ में महामंडलेश्वर के लिए अलग शिविर की व्यवस्था होती है। इनकी सुरक्षा के भी खास इंतजाम किए जाते हैं। एक तरह सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाये जाने पर विवाद चल रहा था तो दूसरी तरफ कथित देवी राधे मां अपने कारमानों के कारण सुर्खियां बटोरने लगीं। मुंबई की एक महिला जो अपने आप को संत राधे मां बताती थी, के जाल में भी फिल्म और टीवी कलाकारों सहित लाखों लोग फंस गए। लोग फंसे वहां तक ठीक था लेकिन जूना अखाड़ा के साधु-संत भी उनके मोहपाश में अंधे हो गए और उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि से सम्मानित कर दिया। हालांकि कुछ साधू-संतों की आपत्ति के बाद उन्हें महामंडलेश्वर पद से निलंबित कर दिया गया था। सिख परिवार में जन्मी भारी मेकअप और महंगी साड़ी-गहनों से लदी तथाकथित बब्बो उर्फ राधे मां नामक इस महिला के दर्शन और आशीर्वाद के लिए लोग अच्छी-खासी कीमत चुकाते थे। अपने साथ मेकअप आर्टिस्टों को लेकर चलती राधे मां दुल्हन की तरह सज-संवरकर आती और पूरे समय तक झूमती रहती। उनके भक्त उन्हें देवी दुर्गा का अवतार मानते थे। आज की तारीख में राधे मॉ आरोपी बन गई हैं। उन पर दहेज प्रताड़ना,एक किसान परिवार को ठगने (जिसकी वजह से किसान परिवार के चार सदस्यों ने आत्महत्या कर ली थी) अश्लीलता फैलाने सहित तमाम मामले दर्ज हो गये हैं। पुलिस राधे मां से पूछताछ कर चुकी है। राधे मां का भेद खुल गया, लेकिन अभी भी कुछ लोगों की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है और वह कथित राधे मां को बदनाम किया जा रहा है की ही रट लगा रहे हैं। राधे मांकी अश्लीलता को शब्दों के तर्क से ढकने की कोशिश की जा रही है। तर्क भी ऐसे-ऐसे सामने आ रहे हैं जिसको सुनकर हंसी और गुस्सा दोनों आता है। फिल्मी गानों पर थिरकती, अश्लील पहनावा पहने,भक्तों की गोद में बैठ जाने वाली कथित मां के ऊपर न जाने कौन से आरोप लग रहे हैं,लेकिन उनके भक्त कहते हैं कि राधे मां के पहनावे पर तो हाय-तौबा मचाई जा रही है, लेकिन उन नागा बाबाओं पर कोई उंगली नहीं उठाता है जो निर्वस्त्र घूमते हैं। ऐसे लोगों की समझ पर तरस ही खाया जा सकता है।
खैर, पहले जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर के पद पर परम-ग्लैमरस राधे माँ को बिठाने और अब महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर के पद पर नित्य कुकर्म में रत रहने वाले नित्यानंद को बिठा देने से संन्यास-आश्रम और संन्यासियों के अखाड़ों के औचित्य पर ही प्रश्न-चिन्ह लग गया है। प्रश्न उठता है कि इन अखाड़ों में बहुमत किस तरह के संन्यासियों का है? क्या इनके सदस्यों में बहुमत नित्यानंद और राधे माँ जैसे संन्यासियों का है,उनकी तरह की सोंच रखने वाले संन्यासियों का है? अगर हाँ तो फिर क्या औचित्य है ऐसे अखाड़ों का और अगर नहीं तो फिर नित्यानंद और राधे माँ कैसे महामंडलेश्वर के महान पद पर काबिज हो गए। सवाल यह नहीं है कि इन ढोंगियों को उनकी करनी की सजा मिल रही है,ध्यान इस ओर भी देना पड़ेगा की इस तरह के ढोंगी समाज में अपना पैर ही नहीं पसार पायें। सचिन दत्ता, राधे मां, आसाराम, इच्छाधारी बाबा,रामपाल आदि कुछ ढोंगी बाबाओं के चेहरे से नकाब हट गया है,लेकिन निर्मल बाबा जैसे तमाम बाबा और देवी मॉ आज भी अपना धंधा फैलाये हुए हैं। बात थोड़ी पुरानी जरूर है,लेकिन आज भी लोगों के जेहन में ताजा है कि किस प्रकार देश के बड़े-बड़े राजनैतिज्ञ ढोंगी तांत्रिक चन्द्रास्वामी के झांसे में आकर उनके सामने नतमस्तक हुआ करते थे। तांत्रिक चन्द्रास्वामी अपनी राजनीतिक पैठ के कारण सुर्खियों में रहे। चन्द्रास्वामी की कई बड़े मंत्रियों और राजनीतिक हस्तियों से निकटता थी। चन्द्रास्वामी के भक्तों में दो प्रधानमंत्रियों पी.वी. नरसिम्हा राव और चंद्रशेखर का नाम था। राव साहब के समय में उनका दखल अंतर्राष्ट्रीय मामलों तक में था। हथियारों की खरीद में भी उनकी भूमिका पर जहां उन पर उंगलियां उठीं, वहीं अंतर्राष्ट्रीय हथियारों के सौदागर अदनान खाशोगी से उनके संबंधों को लेकर खासी चर्चा रही। अदनान के निजी हवाई जहाज पर की गई स्वामी की यात्राओं के खुलासे भी अखबारों की सुर्खियां बने थे। उन खबरों में छपा था, हवाई जहाज में दुनिया भर की उम्दा शराब और आला दरजे की सुंदरियां स्वागत के जाम छलकाती थीं। नरसिम्हा राव की सरकार जाने के बाद माफिया बब्लू श्रीवास्तव से रिश्तों के किस्सों के साथ तमाम आपराधिक व टैक्स मामलों में लिप्त होने के आरोपों के चलते चन्द्रा स्वामी को तिहाड़ जेल में काफी समय काटना पड़ा।1998 में एमसी जैन आयोग की एक रिपोर्ट में राजीव गांधी हत्याकांड मामले में चन्द्रास्वामी की भूमिका बताई गई थी। चन्द्रा स्वामी के आश्रम से हथियार डीलरों को दिए गए 11 लाख डॉलर के ड्रॉफ्ट मिले थे।
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती संघ के रथ पर सवार होकर तामिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के बेहद करीब हुए थे, नवंबर 2004 में मंदिर मैनेजर शंकररमन की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया। भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में योग गुरू स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का बड़ा दबदबा था। ब्रह्मचारी की इंदिरा जी से निकटता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वह आला अफसरों की तैनाती, तबादलों से लेकर मंत्रियों की कुर्सी तक तय करने में अहम भूमिका निभाने के साथ पर्दे के पीछे इंदिरा जी के लिए राजनैतिक सौदेबाजी, मंत्रणा तक में पूरी तरह मुस्तैद रहते थे। इसी कारण पुराने नेता, मंत्रीगण, अफसरान स्वामी जी के भक्तोंं में शुमार होते। इन्हीं लोगों के चलते जहां स्वामी जी अरबपति हुए, वहीं उन्होंने जम्मू राज्य में एक गन फैक्ट्री भी लगा ली थी। जब इंदिरा जी का इमरजेंसी के बाद पतन हुआ तो स्वामी को कई आपराधिक मुकदमों का सामना करने के साथ अपनी संपत्तियों को बचाने के लिए कई लड़ाइयां लड़नी पड़ीं थी। इसी बीच वे एक जहाज दुर्घटना में मर गये। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा के समर्थन में आशाराम ने गुजरात में प्रचार अभियान में सक्रियता दिखाई थी, लेकिन उन्हें हत्या के एक मामलें में फंसने के कारण अपने कदम पीछे खींचने पड़े। इस समय आशाराम बलात्कार जैसे गंभीर आरोप में जेल में बंद हैं। उनके ऊपर गवाहों को डराने-धमकाने और मरवाने के भी आरोप लगे हैं। बात अन्य बाबाओं की कि जाये तो स्वामी चिन्मयानन्द पर भी बलात्कार का आरोप उनकी ही एक शिष्या ने लगाया है। दिल्ली से पकड़ा गया इच्छाधारी बाबा प्रवचन और पाखंड की आड़ में सेक्स रैकेट चलाया करता था। स्वयंभू बाबा शिव मूरत द्विवेदी को कथित तौर पर जिस्मफरोशी का धंधा चलाने के आरोप में मकोका के तहत गिरफ्तार किया गया था। इस इच्छाधारी बाबा को शिव मूरत द्विवेदी के अलावा संत स्वामी भीमानंद जी महाराज चित्रकूटवाले के नाम से भी जाना जाता था। सिंचाई विभाग में जेई से संत बने रामपाल के बारे में लोग बताते हैं कि रामपाल हिन्दू धर्म के भगवानों को नहीं मानते। खुद को कबीर पंथी बताने वाले रामपाल स्वयं को ही परमेश्वर का एक रूप बताते हैं।उनके सतलोक आश्रम में सभी अनैतिक काम होते थे।उन पर कानून का शिकंजा कसा अगस्त 2014 में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये रामपाल की हिसार कोर्ट में पेशी थी लेकिन उनके समर्थकों ने वकीलों से बदसलूकी कर दी। कोर्ट की कार्यवाही में काफी बाधा पहुंची। नाराज वकीलों ने रामपाल की जमानत रद करने की याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट ने अदालत की इस अवमानना के केस में रामपाल को दो बार नोटिस भी भेजा लेकिन खराब तबीयत की दलील देकर वे इसे टालते रहे। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे अदालत की अवमानना मानते हुए रामपाल की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए। बमुश्किल उन्हें गिरफ्तार किया जा सका। उनके समर्थक घंटों सुरक्षा बलों पर फायरिंग करते रहे।
सितंबर 2008 में सिरसा (हरियाणा) के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह पर डेरे की एक साध्वी ने रेप के आरोप लगाए। मामले में सीबीआई के स्पेशल जज ए. के. वर्मा की अदालत ने धारा 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक धमकी) और 509 (महिला की मर्यादा को अपमानित करने वाली भाव भंगिमा बनाना या बातें कहना) के तहत आरोप तय किए, बाबा राम रहीम ने एक फिल्म भी बनाई जिसमें उन्होंने स्वयं अभिनय किया।
ढोंगी बाबाओं की लिस्ट इतनी लम्बी है जो खत्म नहीं हो सकती है, कुछ दिनोें पूर्व एक ढोंगी सारथी बाबा के बारे में पता चला। सारथी बाबा पर हैदराबाद के एक होटल में एमबीबीएस की छात्रा के साथ तीन दिन बिताने और नॉन वेज खाने का आरोप था। एक स्थानीय टीवी चैनल ने पिछले दिनों बाबा की इन गतिविधियों को लेकर खबर चलाई थी। ढोंगी संत समाज की दुनिया में कई बाहुबली गेरूआ धारियों का भी सिक्का चलता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाहुबल के सहारे करोड़ों की सम्पति जुटाने वाले कथित संत ज्ञानेश्वर गैंग वार में मौत के घाट उतार दिये गये थे। संत ज्ञानेश्वर के आश्रम पर छापा पड़ा तो वहां कई महिलाएं और लड़कियां मिलीं जिनको बंदी बना कर रखा गया था। इनका शारीरिक शोषण भी किया जाता था।
एक तरफ तमाम कथित बाबाओं और देवी मांओं को भोग-विलास आदि के कारण जेल की सलाखों तक के पीछे पहुंचना पड़ गया तो ऐसे साधू-संतों की भी कमी नहीं रही जिन्होंने धर्म ध्वजा को पकड़े-पकड़े संसद और विधानसभाओं तक में दस्तक दी। राम मंदिर आन्दोलन ने कई नये स्वामियों को भाजपाई राजनीति के रथ पर सवार करा कर 1991 में संसद के भीतर तक पहुंचा दिया। इनमें उमा भारती, स्वामी विश्वनाथ शास्त्री, स्वामी चिन्मयानन्द, महन्त अवैद्यनाथ,योगी आदित्यनाथ सहित करीब -करीब दर्जन भर धर्मगुरू थे। आज भी उमा भारती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी निरजंन ज्योति, साक्षी महाराज धार्मिक से ज्यादा राजनैतिक कारणों से पहचानी जाती हैं। बात ढोंगी बाबाओं और कथित मॉओं के चंगुल में फंसने वाले ऐसे लोगों बात की जाये जिन्हें सब कुछ लुटाने के बाद ‘होश’ आता है तो इसके पीछे तमाम किन्तु-परंतु छिपे हैं।यह समझना जरूरी है कि तमाम जागरूकता अभियानों के बाद भी अंधविश्वास और पाखंड फैलाने वालों का धंधा क्यों नित नई ऊंचाइयां हासिल कर रहा है। इसके पीछे का मनोविज्ञान समझना बहुत आसान है। अपवाद को छोड़कर मनुष्य की हमेशा यह प्रवृति रही है कि वह अपनी मेहनत-योग्यता से अधिक पाने का सपना(लालच)देखता है।
यही सपना या लालच पूरा करने का ख्वाब दिखाकर कुछ लोग ठगी की घटना को अंजाम देते हैं। यह ठग नटवर लाल बनकर,ढोंगी पंडित,तांत्रिक, औघड़ बाबा,साधू किसी भी भेष में सामने आ सकते हैं। बस,देखने वाली बात यह होती है कि वह अपने शिकार को किस रूप में फंसा सकता है।अक्सर ऐसे मामलों में ठग इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी आस्था का सहारा लेते हंै,जिसके आगे सभी तर्क बौने पड़ जाते है। यह आस्था ही है जो बड़ी से बड़ी हस्तियों को भी ऐसे ढोंगियों की शरण में पहुंचा देती है। हमें समझना चाहिए कि लालच तमाम बुराइयों की जननी है। लालच इंसान का विवेक हर कर उसके जमीर पर वार करता है। लालची आदमी सही-गलत में फर्क भूल जाता है। ऐसा इंसान पाप-पुण्य,यश-अपयश,अच्छा-बुरा,न्याय-अन्याय,हानि-लाभ, जीवन-मरण का अंतर नहीं कर पाता हैै। इस तरह के लोगों के लिये नाते-रिश्ते,समाजिक शिष्टाचार बेईमानी हो जाते हैं। लालच ऐसा अदृश्य दानव है जिसकी ‘जड़ों’ में बुराइयां ही बुराइयां वास करती है। लालच कई रूप में सामने आता है। लालच रातों रात इंसान को करोड़पति बना देने का सपना दिखाता है। इसी के चक्कर में कुछ लोग कथित बाबाओं की शरण में चले जाते हैं तो तमाम लोग सट्टे बाजी,शेयर बाजार,लाटरी के खेल में उलझ जाते हैं।

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