दस्तक-विशेषराज्य

हैलो माईक टेस्टिंग, हैलो, हैलो

जग मोहन ठाकन

अभी 21 जून को सुबह सुबह हर रोज की तरह निकट के पार्क में घुसा तो देखा कई नए नए लोग बाकायदा सुंदर सुंदर परिधान पहने पहले से ही पार्क की  ठीक कोमल घास वाली जगह पर आसन जमाये पार्क की सुबह की ताज़ी ओक्सिज़न युक्त प्राणवायु को चूसने की प्रतियोगिता में लीन हैं . अधिकतर युवक युवती आधुनिक परिधान छोटी टी कट व इत्ती ही न्यूनतम संभव लोअर के आवरण में भारत की प्राचीन परम्परा का निर्वहन करते योगी बनने का अभ्यास कर रहे हैं . पता चला आज  लोगों को योग के प्रति जागरूक किया जा रहा है . तभी चौबे जी मिल गए , आते ही बिफर पड़े – सब ढकोसला है ,  जब भी कोई समस्या देश के संचालकों के सामने फन उठाती है ये पब्लिक को दिग्भ्रमित करने के लिए कोई ना कोई मदारी वाली नई डुग डुगी बजाने लगते हैं . बाजीगरों व सपेरों के खेल में अपनी विपदा भूलने वाली देश की भोली- भाली  जनता ताली बजा कर  खुश हो जाती है और ये सपेरे अपने बोरों में काले सांप पालने में कामयाब हो जाते हैं ताकि जरुरत पड़ने पर फिर इन्ही सांपों के सहारे जनता को बहकाया जा सके . कभी ये सफ़ेद पोश  लोग अपने हाथों में इत्तर छिटकी झाड़ू लेकर  सेल्फी खींचकर मीडिया में छा जाते हैं , तो कभी लोगों को बैंकों की लाइनों में लगने को विवश कर बैंक वालों से हाथ दो चार करवा कर खुद पाक साफ़ बन जाते हैं .  ये इन लोगों का जनता की नब्ज चेक करने का हैलो माइक  टेस्टिंग है.
पार्क में योगभक्त जन  के चूसने के कारण कम हो चुकी  ओक्सिज़न की वजह से चौबे जी के नथुने भी  साँसों की रफ़्तार को बढ़ते देख  फूलते जा रहे थे . मैंने बीच में ही टोकना उचित समझा और कहा – चौबे जी चाहे कुछ भी कहो योग से बड़े बड़े पेट वालों का  वजन तो घटता है .  और यही वजन  ही सब रोगों की जड़ है .
चौबे जी मंद मंद मुस्काये , बोले –ठीक पकड़े है . आज की सत्ता के शिखर पर बैठे पुरोधा यही तो चाहते हैं , यही तो इनका एजेंडा है , कि वजन बढे तो केवल उनका, दूसरा कोई इनके समान वजन धारी ना हो जाए .  सुना है कि कुछ ‘शाह’ लोग ज्यादा ही वजनधारी  होने लगे थे, पर  समय रहते हमारे  पारखी  ‘ग्रीन टी’  वाले की नजर पड़ गयी  और आज उनका लगभग बीस किलो वजन कम हो गया बताते हैं . वजन कम करने की तकनीक में तो ग्रीन टी का कोई सानी नहीं है . कल तक जिनकी ‘वाणी’ में अदम्य ‘जोश’ था, आज उनका इतना कम वजन हो गया है कि कोई उनका वजन तौलने तक राजी नहीं है . खैर समय समय की बात है . शिखर पर बैठने वाले वजनधारी तो होते ही हैं . परन्तु यह भी सत्य है कि जो   भारी भरकम ग्लेसिअर कल तक हिमालय की चोटी पर बैठकर अकड़ दिखाते थे, वे आज फिसल कर धरातल पर जगह ढूंढ रहे हैं और पत्थरों की ठोकरें उन्हें  चीर चीर कर पानी पानी कर रहीं हैं और वे गन्दला पानी हो चुके तथाकथित ग्लेसिअर गंदे नालों में ठहराव के लिए तरस रहे हैं .
मुझे तो लगता है चौबे जी की बात में वजन है . परन्तु यदि किसी  ग्रीन टी वाले की नजर पड़ गयी तो —.

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