उत्तर प्रदेशटॉप न्यूज़लखनऊ

आखिर क्या है स्वामी प्रसाद मौर्य का ‘मुलायम कनेक्शन’

swami-prasad-maurya_1466616834बसपा में बगावत का झंडा उठाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ पुराना दोस्ताना रहा है। वे एक दशक से ज्यादा समय तक मुलायम के साथ काम कर चुके हैं।इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भूगोल में परास्नातक और एलएलबी करने वाले मौर्य ने 1980 में सक्रिय राजनीति की शुरुआत रालोद से की। तब चौधरी चरण सिंह रालोद के सर्वेसर्वा हुआ करते थे और मुलायम सिंह भी इसी दल में थे।
 
मौर्य को पहली जिम्मेदारी युवा रालोद के संयोजक की मिली। इसके बाद वे युवा लोकदल के प्रदेश महामंत्री तथा लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य, प्रदेश महामंत्री और मुख्य महासचिव रहे। जनता दल के गठन के बाद मौर्य भी जनता दल के साथ हो लिए और 1991-95 तक प्रदेश महासचिव रहे।

मुलायम भी तब जनता दल का हिस्सा थे।आगे चलकर मुलायम ने समाजवादी पार्टी बनाई और मौर्य 1996 में बसपा में शामिल हो गए। इस तरह मौर्य एक दशक से ज्यादा समय तक सपा मुखिया के साथ रह चुके हैं। अब एक बार फिर उनकी नई पारी सपा के साथ शुरू होने के संकेत हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य दो जनवरी 1996 को बसपा में शामिल हुए। बसपा संस्थापक कांशीराम ने उन्हें प्रदेश महासचिव बनाया। इसके बाद वे प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए।

1996 के विधानसभा चुनाव में मौर्य पहली बार विधायक चुने गए। कुल चार बार वे विधायक चुने गए। जब वे विधायक नहीं थे तो मायावती ने उन्हें एमएलसी बनाया। मायावती जब-जब सरकार में आईं, मौर्य को मंत्री बनाया।

बसपा विपक्ष में रही तो उन्हें पार्टी विधानमंडल का नेता और नेता विरोधी दल की जिम्मेदारी सौंपी। मायावती ने उन्हें विधान परिषद में नेता सदन की जिम्मेदारी भी सौंपी। वे 2007 से 2012 तक बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। 2012 में जब प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी वापस ली गई तो राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए।

मौर्य का सपा सरकार के प्रति नरम रवैया लोकायुक्त चयन के दौरान ही नजर आने लगा था।

लोकायुक्त चयन समिति में मौर्य भी सदस्य थे और इस मामले में मुख्यमंत्री व हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की राय अलग-अलग होने के संकेतों के बीच उनकी भूमिका अहम हो गई थी।

बताया जाता है कि मायावती के सख्त निर्देशों के बाद ही मौर्य ने राज्यपाल को चिट्ठी लिखी जिसमें सरकार से अलग राय दी।

 

Related Articles

Back to top button