उत्तराखंडराज्य

उत्तराखंड: वनाधिकारियों की जांच की फाइल शासन ने दबाई, दो पर जुर्माना

देहरादून: राज्य गठन से अब तक वन विभाग के अफसरों के खिलाफ दर्ज की गई शिकायतों और उन पर की गई कार्रवाई की फाइल शासन ने आरटीआइ में भी दिखाना गवारा नहीं समझा। मुख्य सूचना आयुक्त शत्रुघ्न सिंह के निर्देश पर सचिव परिवहन डी सेंथिल पांडियन ने जब प्रकरण की जांच की तो पता चला कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी अनुसचिव अखिलेश मिश्रा और तत्कालीन अनुभाग अधिकारी ज्योतिर्मय त्रिपाठी ने जानबूझकर फाइलें दबाई हैं। आयोग ने इन दोनों अधिकारियों पर तीन-तीन हजार रुपये का जुर्माना लगाया।उत्तराखंड: वनाधिकारियों की जांच की फाइल शासन ने दबाई, दो पर जुर्माना

नेहरू कॉलोनी निवासी सुभाष नौटियाल ने शासन के वन अनुभाग से राज्य गठन से लेकर सूचना मांगने की तिथि 18 अगस्त 2016 से पहले तक वन अधिकारियों के खिलाफ मिली शिकायतों और की गई कार्रवाई संबंधी फाइलों के अवलोकन कराने की मांग की थी।  इसके साथ उन्होंने अन्य बिंदु में विनय भार्गव, जेएस सुहाग, वीपी सिंह के खिलाफ शिकायत व जांच की कार्रवाई समेत जैट्रोफा से संबंधित फाइलें भी देखने की इच्छा जताई। 

सूचना के इस आवेदन पर लोक सूचनाधिकारी/अनुसचिव ने अनुभाग तीन में भी पत्र अंतरित किया। पत्रावलियों के अवलोकन पर शासन स्तर पर शुरू से ही टालमटोल किया जाता रहा। समय अधिक होने पर आवेदक सुभाष नौटियाल ने पत्रावलियों का अवलोकन और चिह्नित सूचनाओं को निश्शुल्क देने को कहा, जबकि अधिकारियों ने इन्कार कर दिया। 

विभागीय अपीलीय अधिकारी स्तर से भी आवेदक को कोई सहयोग नहीं मिल पाया। यह मामला जब सूचना आयोग पहुंचा तो मुख्य सूचना आयुक्त शत्रुघ्न सिंह ने दोनों अधिकारियों को नोटिस जारी कर पत्रावलियों के अवलोकन कराने के निर्देश दिए। इसके बाद भी जब आनाकानी की गई तो आयोग ने सचिव परिवहन डी सेंथिल पांडियन को प्रकरण की जांच करने और 45 दिन के भीतर रिपोर्ट देने को कहा। आयोग को सौंपी गई जांच रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों अधिकारियों ने सूचना देने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। जांच रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए मुख्य सूचना आयुक्त शत्रुघ्न सिंह ने दोनों अधिकारियों को कार्रवाई की चेतावनी देते हुए जवाब दाखिल करने के भी निर्देश दिए।

अनुभाग अधिकारी पर डाली जिम्मेदारी

तत्कालीन अनुसचिव अखिलेश मिश्रा ने जवाब दिया कि विभाग/अनुभाग की समस्त पत्रावलियां सचिवालय मैनुअल के अनुसार अनुभाग अधिकारी के संरक्षण में रहती हैं। हालांकि, आयोग ने इस बात को खारिज करते हुए कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत लिखित रूप में पत्रावलियों को नियत समयसीमा के अंतर्गत अवलोकन कराने को लिखा ही नहीं गया। जबकि उन्हें ज्ञात था कि मांगी गई पत्रावलियों की संख्या 500 है और जब अनुभाग अधिकारी ने आनाकानी की तो इसकी कोई रिपोर्ट लोक प्राधिकारी/अपर मुख्य सचिव वन से नहीं की गई।

अनुभाग अधिकारी ने बनाया छोटे कमरे का बहाना

तत्कालीन अनुभाग अधिकारी ने अपने जवाब में कहा कि अनुभाग की पत्रावलियां एक गलियारे में रखी गई है और उनका कार्यालय एक छोटे कमरे में चल रहा है। जबकि गलियारे में रखी पत्रावलियां छत को छू रही हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि वह वर्ष 2013 से अनुभाग में हैं और कई पुरानी जांच संबंधी फाइलों की जानकारी उन्हें नहीं है। 

आयोग ने इस बात को अविश्वसनीय करार देते हुए कहा कि यदि इसे सच भी मान लिया जाए तो तीन साल की अवधि में भी फाइलों की जानकारी न होना कार्य के प्रति शिथिलता प्रदर्शित करता है।

नौ पृष्ठों का आदेश प्रमुख सचिव को भेजा

महत्वपूर्ण फाइलों को गलियारे में रखे जाने पर आयोग ने कहा कि इससे पत्रावलियों में दीमक लग सकता है या कोई भी इनसे छेड़छाड़ कर सकता है। फाइलों को रखने की बेहतर व्यवस्था करने, उन्हें वर्षवार रखवाने के लिए नौ पृष्ठों के आदेश की प्रति प्रमुख सचिव वन को भेजी गई। वहीं, फाइलों के अवलोकन के बाद चिह्नित 500 पेज तक की सूचना निश्शुल्क कराने के आदेश भी आयोग ने दिए।

Related Articles

Back to top button