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एेसे समझें… क्या है एसवाईएल: 212 किलोमीटर नहर पर 50 साल से सियासत

kldflfd_1478819556चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा में एसवाईएल नहर की कुल लंबाई 212 किमी है। इसमें से नहर का 91 किमी हिस्सा हरियाणा और 121 किमी हिस्सा पंजाब में है। पंजाब में ये नहर नंगल डैम (जिला रोपड़) से शुरू होती है और यहां पर इसका नाम आनंदपुर हाइडल चैनल है। चैनल में पानी कीरतपुर साहिब तक जाता है और वहां से डायवर्ट होकर सतलुज में गिरता है। कीरतपुर साहिब से आगे चलकर ये नहर जिला फतेहगढ़ साहिब और मोहाली से होते हुए पटियाला के गांव कपूरी तक जाती है और वहां से आगे हरियाणा सीमा में दाखिल होती है।
 
1966 में हरियाणा के विभाजन के बाद भारत सरकार ने पुनर्गठन एक्ट, 1966 की धारा 78 का प्रयोग किया। पंजाब के पानी (पैप्सू सहित) में से 50 प्रतिशत हिस्सा (3.5एमएएफ) हरियाणा को दे दिया गया जो
 
1955 में पंजाब को मिला था। (इस पर बादल का आरोप है कि तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा पुनर्गठन एक्ट की धारा 78 का प्रयोग करना गैर संवैधानिक था। संविधान का उल्लंघन करके अंतर्राज्य जल विवाद एक्ट, 1956 के अधीन ट्रिब्यूनल की जगह केन्द्र सरकार द्वारा धारा 78 के तहत हरियाणा को पानी दिया गया।
 
1976 में एसवाईएल की शुरु की गई। निर्माण 1981 में समझौते के बाद हुआ। पंजाब ने हरियाणा से 18 नवंबर 76 को 1 करोड़ लिए । 1977 को पंजाब ने निर्माण को स्वीकृति दी। लेकिन निर्माण का काम शुरु नहीं हुआ।
 
1979 में हरियाणा निर्माण शुरु न होने के चलते सुप्रीम कोर्ट गया, जिसमें निर्माण संबधी दिशा निर्देशों की मांग की। वहीं बादल ने 11 जुलाई 1979 को पुनर्गठन एक्ट की धारा 78 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 1980 में पंजाब सरकार बर्खास्त।
 
1981 में पंजाब के तत्कालीन सीएम ज्ञानी जैल सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल और राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने पीएम इंदिरा गांधी की मौजूदगी में दिसंबर 1981 को एसवाईएल के निर्माण का निर्णय लेकर समझौता किया गया।
 
1982 में इंदिरा गांधी ने बार्डर पर पटियाला के गांव कपूरी में टक लगाकर नहर का निर्माण शुरू किया। विरोध में शिअद ने एसवाईएल की खुदाई के विरूद्ध मोर्चा खोला। कई अकाली गिरफ्तार।
 
1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता। पंजाब के दरियाई पानी समेत नहर के निर्माण का फैसला। एसवाईएल का निर्माण बिना यह निर्धारित करने से शुरू किया गया कि हरियाणा को कोई पानी मिलेगा या नहीं।
 
1988 में उग्रवाद के दौर में नहर के निर्माण कार्य में लगे इंजीनियरों और मजदूरों की हत्याएं हुईं। 1988 के मई महीने के दौरान मजाट में 30 मजदूरों की हत्या कर दी गई। इसके बाद साल 1990 में 3 जुलाई एसवाईएल के निर्माण से जुड़े 2 इंजीनियरों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसके बाद नहर निर्माण का काम बंद किया गया। हरियाणा के तत्कालीन सीएम चौधरी हुक्म सिंह ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि नहर निर्माण का काम सीमा सुरक्षा संगठन को सौंपा जाए।
 
1996 में हरियाणा फिर सुप्रीम कोर्ट में। कोर्ट ने 2002 को पंजाब को निर्देश दिये कि या तो एक वर्ष में एसवाईएल नहर बनवाए या फिर इसका कार्य केंद्र के हवाले करे।
 
2015 को हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने का अनुरोध किया। जिस पर 2016 को इस मामले में गठित 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने पहली सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बुलाया। 8 मार्च को दूसरी सुनवाई हुई।
 
2016 से पंजाब में 121 किमी लंबी नहर को पाटने का काम शुरु। 19 मार्च तक सुप्रीम कोर्ट के यथा स्थिति के आदेश आने तक जारी रहा। 110 जेसीबी मशीनों, 40 से ट्रैक्टर ट्रालियों द्वारा 19 जगह बड़े पैमाने पर नहर के किनारे तोड़े गए और कुछ स्थानों पर नहर के किनारे तोड़ इन्हें सपाट कर दिया गया।

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