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करवा चौथ के पवित्र व्रत से जुड़ी हैं ये कथाएं, आज के दिन कथा सुनने का है विधान

एक दिन के स्त्रियों के करवा चौथ के व्रत को शिव परिवार के अन्य तीनों उत्सवों शिव उत्सव, गणेश उत्सव, पार्वती उत्सव अर्थात् नवरात्रों की तरह ही भारत के उत्तर व पश्चिमी राज्यों में बहुत उल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार को कब से मनाया जाता है व ये कितना प्राचीन है, इस बारे में अलग-अलग पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

द्रौपदी ने रखा था करवा चौथ व्रत

ये निश्चित है कि करवा चौथ का व्रत महाभारत काल से भी पहले से चलता आ रहा है। द्रौपदी द्वारा भी ‘करवा चौथ’ का व्रत रखा गया था, ऐसी मान्यता है। एक कथा के अनुसार, जब अर्जुन नीलगिरि की पहाड़ियों में घोर तपस्या और ज्ञान प्राप्ति के लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।

द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मिलकर उन्हें सारी स्थिति बताई व अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई आसान सा उपाय बताने को कहा। तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को ‘करवा चौथ’ का व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए व बाकी पांडवों के भी सम्मान की रक्षा हो सकी।

सावित्री की कथा

एक अन्य किवदंति के अनुसार, जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो पतिव्रता स्त्री सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी व अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया।

यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग कर दिया व अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगी। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए व उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो।

सावित्री ने कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वचन दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था।

अंत में अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके व सत्यवान को सावित्री को सौंप दिया। तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्याग कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए ‘करवा चौथ’ का व्रत रखती हैं।

पतिव्रता करवा की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी, जो अपने पति से अटूट प्रेम करती थी। पूर्ण रूप से पति के प्रति समर्पित होने के कारण उसमें एक दिव्य शक्ति का वास हो गया था। नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसके पति को पकड़ लिया।

करवा ने यम देवता का आह्वान कर मगरमच्छ को यमलोक भेजने व अपने पति को सुरक्षित वापस करने के लिए कहा। उसने कहा कि यदि उसके सुहाग को कुछ हुआ तो वह अपने पतिव्रत की शक्ति से यमदेव और यमलोक का नाश कर देगी।

कहते हैं कि यमराज ने उसकी दिव्य शक्ति व पतिव्रत से घबराकर उसके पति को सुरक्षित वापस कर दिया और मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से ही गणेश चतुर्थी को पूरे श्रद्धा व विश्वास से पति की दीर्घायु के लिए स्त्रियों द्वारा मनाया जाने लगा। इस दिन कार्तिक चतुर्थी को ‘करवा चौथ’ के नाम से जाना जाता है।

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