दस्तक-विशेषस्तम्भ

किस प्रकार से पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए

फिरोज बख्त अहमद : देश के 44 जवानों का बलिदान, इस बार व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हालांकि यह पहला बलिदान नहीं है, बल्कि आए दिन ऐसा होता चला आ रहा है। आखिर हमारे बहादुर नौजवान कब तक इस प्रकार से कटते रहेंगे? 14 फरवरी को जब यह खबर मिली तो लेखक ने न तो रात्रि का भोज किया और न ही सवेरे, नाष्ते का कोई नाम था। मन अभी तक दुखी है कि कितने परिवारों के नौजवान लड़के इतनी बेदर्दी से, गाजर, मूली की तरह काट दिए गए। खेद का विशय तो यह है कि कुछ प्रांतीय सरकारे इन सैनिकों को कुछ पैसा दे देंगी और कहीं शायद यह पैसा भी न मिले और पिछले वर्षों की भांति, होगा है कि इस महान बलिदान को भी ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाएगा। सरहद पार दुश्मनों को तो किसी भी प्रकार से देख लिया जाएगा, उनसे निपट लिया जाएगा, मगर देष के अंदर जो एक पाकिस्तान, अण्डरग्राउण्ड तरीके से आतंकीय गतिविधियों में तल्लीन है, उसका इलाज कैसे हो? वास्तव में, समस्या की जड़ तो कश्मीर में है, जिससे भारत उबर नहीं पा रहा है। सबसे बड़ा काण्ड तो वहा दफा 370 का अब तक चलते रहना है। पूर्व प्रधानमंत्री, जवाहर लाल नेहरू ने दफा 370 ऐसी लगाई कि मौजूदा सरकार भी उसको नहीं हटा पाई। वास्तव में दफा 370 होने से न केवल कश्मीर, बल्कि पूर्ण भारत को इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। इस दफा के तहत, बड़ी कंपनियां जैसे टाटा, लीवर, अंबानी, बजाज, क्राम्पटन आदि अपनी कारखाने, दफ्तर आदि नहीं बना सकते क्योंकि कष्मीर से बाहर का कोई व्यक्ति न कोई यहां जमीन खरीद सकता है न तो यहां कोई रोजगार के धंधे शुरू कर सकता है। यदि यहां से दफा 370, हटा दी जाए तो यह सभी बड़ी कंपनियां और मल्टीनेषनल यहां आ कर जमीन खरीद सकते हैं और साथ ही साथ यहां के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार भी दे सकते हैं। भारत सरकार को अब इतने काण्डों के बाद सोचना होगा कि किस प्रकार से 370 को गंभीरता से सोचना होगा। आज कश्मीर, भारत के लिए नासूर बन चुका है। इसका हल न तो बंदूक है और न संदूक है कि जिसमें हमारे जवानों के शव लाए जाते हैं। तो इसका हल क्या है? इसका एक मात्र हल यह है कि कष्मीरी नौजवान का दिल जीता जाए और कश्मीरी नौजवान भारत सरकार का दिल जीते। ऐसा संभव हो सकता है मार-काट बहुत होली, सैनिक भी बहुत मारे जा चुके है और आतंकवादियों के लाषों के भी ढेर हो चुके हैं। इस जघन्य पाप को रोकने का बस एक ही उपाय है, वह है कष्मीरी नौजवानों और पत्थरबाजों को रोजगार देना और काम धंधे में विलीन कर देना। जो नौजवान बेरोजगार होते हैं, उनका दिमाग षैतानी हरकते करने के लिए उन्हें उकसाता है और वे कभी पत्थरबाजी, कभी गोलीबारी तो कभी बमों से मासूम फौजियों और जनता का वध करता है। जिस प्रकार पिछले दिनों सरकार ने कष्मीरियों को बुलेट से हटा कर, बैलट पर ला दिया था, कुछ इसी प्रकार से आज भी कष्मीरियों को गोली से हटा कर गले लगाने की बात चलानी होगी। गणमान्य पाठकों को, आज के गर्म माहौल में षायद यह कथन हजम न हो, मगर ईमानदारी की बात यह है कि अब कष्मीर को कुछ ऐसा पैकेज देना पड़ेगा कि जैसा एक बार वहां के अवकाश प्राप्त जस्टिस जान ने किया था। उन्होंने, कश्मीरी आतंकवादियों से कहा था कि वह अपनी रंजिशें भुला कर और हथियार डालकर भारतीय सरकार के पहरेदार बन जाएं।

हालांकि कुछ आतंकवादियों ने कहा कि उनके मन में बड़ा रोश है कि आपसी रंजिष में उनकी उनका परिवार समाप्त हो चुका है या उनकी युवतियों के साथ बलात्कार किए गए हैं, तो वे कैसे उनके साथ आएं मगर जस्टिस जान ने उन्हें आष्वासन दिया कि वे अपने सभी दुखों को भूलकर भारतीय सरकार के साथ आए, जो उन्हें संरक्षण देगी, रोजगार देगी, समाज में सम्मान भी देगी। ऐसा हुआ भी और राश्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुस्लिम मामलों के विषेशज्ञ इंद्रेष कुमारजी ने इसका बीड़ा उठाया और वे अपनी जान की बाजी लगाकर, न केवल कश्मीरियों और आतंकवादियों के बीच में गए, बल्कि उनके दिल भी जीते। भारत के दुष्मनों और अलगाववादियों को आखिर यह कैसे रास आता! उन्होंने इंद्रेशजी को यह कार्य करने नहीं दिया, और ऐसी हरकतें कीं और आए दिन कश्मीर में कर्फू लगने लगा और इंद्रेशजी व उनकी विचारधारा वाले लोग, सभी वर्गों के लोगों को आगे काम करने की जगह ही नहीं दी गई। चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए कष्मीरी आतंकवादियों के पाकिस्तानी आकाओं को कि जब जब मोदी ने उनकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया, चाहे वह मोदी के प्रधानमंत्रीत्व का षपथ ग्रहण समारोह हो या उनका लाहौर में नवाज षरीफ की नवासी के विवाह में जा कर मुबारकबाद देना, इन दोनों दोस्ती के प्रतीकों का जवाब पाकिस्तानियों ने उड़ी, पठानकोट आदि आतंकवादी गतिविधियों के रूप में दिया। अब यदि भारत को सर्जिकल स्ट्राइक करनी है तो वह गवादर में चल रहे सी-पाक को निषाना बनाए, ताकि चीन या तो पाकिस्तान को छोड़े या दबाकर रखे या भारत से पंगा न ले। आज भी इंद्रेशजी के पास ऐसी टीम है कि वह वह कसनीर जाकर और अपनी जान पर खेल कर भटके हुए नौजवानों का सही मार्ग दर्षन कर उन्हें वफादार भारतीय बना सकती है, मगर इसके लिए सरकार को उन्हें खुला हाथ देना पड़ेगा।

श्रीनगर में, आज की तारीख में यदि किसी गैर-मुस्लिम नेता का कोई मान-सम्मान है और उस पर विश्वास किया जाता है तो वह व्यक्ति केवल और केवल इंद्रेश कुमार है। खेद का विशय है कि इंद्रेशजी के इस वर्चस्व का सरकार वह लाभ नहीं उठा पाई कि जो उठा सकती थी। आज भी जब इंद्रेश जी से कश्मीर के संबंध में कोई वार्तालाप करता है तो एक टीस सी उनके मन में उठ आती है। इसका कारण यह है कि यदि इंद्रेश जैसा व्यक्ति कश्मीर के एक सिरे से दूसरे सिरे पर अकेला मार्च करे तो उसके मन में कशमीरियत का मान सम्मान होने के कारण कोई भी आतंकवादी उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। लेखक को याद है कि एक आतंकवादी घटना के संदर्भ में जब किसी आतंकवादी को सरे आम फांसी पर लटकाया गया था तो महात्मा गांधी के पौत्र और मणि लाल गांधी के पुत्र, अरुण गांधी हैं, जो कि अमेरिका में एक ह्यूमन राइट संस्था चलाते हैं, उन्होंने कहा था कि यदि एक आतंकवादी को फांसी दी जाती है तो उसका नतीजा यह होता है उसके बदले कई और आतंकवादी पैदा हो जाते हैं। तो क्या अरुण गांधी का तात्पर्य यह है कि आतंकवादियों को बजाए फांसी पर लटकाने के गले का हार बनाया जाए? सबसे बड़ी बात तो यह है कि अलगाववादियों को या तो पाकिस्तान भेजा जाए या उन्हें जेलों में डाला जाए और सीमा पार से जो आतंकवादी घुसपैठ करते हैं वहां ऐसी दीवार बनाई जाए कि जैसे ट्रंप ने अमेरिका और मेक्सिको के बीच में बनाने की बात करी है। इसके अतिरिक्त हमें कुछ इस प्रकार की सर्जिकल स्ट्राइक करनी होगी कि जिस तरह से अमेरिका ने ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को उठाकर की थी। पाकिस्तान तो भारत से युद्ध चाहता ही है आज भारत विकास में चीन, ब्रिटेन और अमेरिका को टक्कर दे रहा है, जो उसे फूटी आंखें नहीं भा रहा है। जहां तक दिल जीतने वाली बात है इस संदर्भ में लेखक ने सरकार को एक मशवरा यह दिया था कि जिस समय कष्मीर में पैलेट गन से, लगभग 200 लोग घायल हुए थे, यदि उसी समय, उन्हें दो जहाजों में उड़ाकर दिल्ली ला कर, उनका इलाज करा दिया जाता तो इससे एक आम कशमीरी का दिल जीता जा सकता था और वह अवश्य ही सरकार का साथ देता। इसके बाद उन लगभग 200 परिवारों से बात करके, पत्थरबाजों और आतंकवादियों को भी रास्ते पर लाया जा सकता था। युद्ध, कहीं से कहीं तक लाभदायक नहीं है क्योंकि भले ही पाकिस्तान का सफाया हो जाए, वहां के पगले फौजी अफसर भी अपने पागलपन में, समाप्त होने से पहले हमें भी काफी हानि पहुंचा जाएंगे। यह तो पूर्ण विष्व को पता है कि पाकिस्तान परमाणु बमकी ट्रिगर, वहां के आतंकवादियों के हाथों में हैं। युद्ध कहीं से कहीं तक उपाय नहीं है। हां, यह बात अलग कि अगर पाकिस्तान इसे षुरू करता है तो भारत भी धरती से उसका नाम-ओ-निशान मिटाने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं।यदि युद्ध हुआ और इधर से भारत से परमाणु बम दाग दिया तो उधर से भी ऐसा ही होगा जिसके कारण एषिया तो इसकी चपेट में आ ही जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार एवं मौलाना आज़ाद के पौत्र हैं)
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