अन्तर्राष्ट्रीय

खतरनाक प्रयोग कर रहे हैं चीन और रूस, खत्म हो सकता है जीवन

लंदन : रूस और चीन मिलकर एक ऐसी विवादित योजना पर काम कर रहे हैं, जिससे वे वायुमंडल के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं। साल 2017 में एक हॉलीवुड फिल्‍म रिलीज हुई थी ‘जियो स्टॉर्म’। फिल्‍म में दिखाया गया था कि जब धरती के अलग-अलग देशों में तापमान बेहद ज्‍यादा घट या बढ़ गया, तब सेटेलाइट के जरिए वायुमंडल को संतुलित करने की तकनीक इजाद की गई। फिल्‍म में दिखाया गया है कि अफगानिस्‍तान में जब बहुत ज्‍यादा गर्मी बढ़ गई, तो सेटेलाइट के जरिए वहां के तापमान को संतुलित कर दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद इन सेटेलाइट का गलत इस्‍तेमाल होने लगा और इन्‍हें हथियार की तरह प्रयोग किया गया। रूस और चीन इन दिनों जिस प्रयोग पर काम कर रहे हैं, वो भी कुछ इसी सिद्धांत के इर्दगिर्द नजर आ रही है। ये प्रयोग कितना खतरनाक हो सकता है, इसकी कल्‍पना नहीं की जा सकती है। खबरों की मानें तो चीन और रूस मिलकर पृथ्वी के वायुमंडल को गर्म करने और बदलने की विवादास्पद योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि इस परियोजना में संभावित सैन्य अनुप्रयोग हैं, क्योंकि यह उपग्रह संचार को बाधित कर सकता है। ऐसे में युद्ध की स्थिति या जासूसी के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में ये प्रयोग काफी कारगर साबित हो सकता है। आयनों के रूप में जाना जाने वाला चार्ज कण, भूमि के एक विशिष्ट क्षेत्र पर एक प्रतिबिंबित परत बनाता है और उपग्रह संचार ब्लैकआउट का कारण बनता है। दो महाशक्तियों ने कई संयुक्त प्रयोग किए हैं जो यूरोप और चीन के ऊपर हवा की रासायनिक संरचना को बदलकर प्रौद्योगिकी के उपयोग को विस्तारित करने की योजना बना रहे हैं। दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रयोग में पूर्वी यूरोप के ऊपर 310 मील (500 किमी) से अधिक ब्रिटेन(126,000 वर्ग किलोमीटर/49, 000 वर्ग मील) के आधे आकार का क्षेत्र शामिल है। रूस के एक छोटे से शहर वासिलसस्क में बिजली के एक स्पाइक का अनुभव किया, जिसमें आसपास के क्षेत्रों की तुलना में दस गुना अधिक नकारात्मक चार्ज किया गया सूक्ष्माणु था। आगे के प्रयोगों में 100 डिग्री सेल्सियस (212 डिग्री फ़ारेनहाइट) से अधिक वातावरण में आयनित गैस के तापमान में वृद्धि शामिल है। वासिलसस्क में एक विशेष सुविधा द्वारा इलेक्ट्रॉनों को आकाश में भेजा गया था, जो शीत युद्ध के दौरान बनाया गया। इसने 260 मेगावाट पर माइक्रोवेव का उत्पादन किया, यह एक छोटे से शहर को प्रकाश देने के लिए पर्याप्त है। पृथ्वी के वायुमंडल की प्रतिक्रिया पर डेटा तब एक चीनी विद्युत चुम्बकीय निगरानी उपग्रह झांगेंग-1 द्वारा एकत्र किया गया था।

चीन की एक पत्रिका में इस रिसर्च को प्रकाशित किया गया था और इसे संतोषजनक बताया गया। लेकिन एक्‍सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे प्रयोग बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। ये पूरी मानव जाति के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। हालांकि चीन और रूस की ओर से इस बारे में अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन यकीनन दूसरे देशों को इस प्रयोग को गंभीरता से लेना होगा। देखिए, प्राकृति से छेड़छाड़ करना हमेशा से इंसानों के लिए हानिकारक रहा है। बढ़ते प्रदूषण और औद्योगीकरण के करण ही आज पृथ्‍वी का तापमान बढ़ता जा रहा है, जिसे लेकर पूरा विश्‍व चिंतित है। पृथ्‍वी के तापमान को कम करने के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं। लेकिन चीन और रूस के तापमान को नियंत्रित करने के प्रयोग खतरनाक भी साबित हो सकते हैं। आप कल्‍पना कीजिए की दिल्‍ली में बेहद ठंड पड़ रही है और उसे एकदम किसी तकनीक के जरिए गर्म कर दिया जाए, तो आप कैसा महसूस करेंगे। यहां तक तो ठीक है, लेकिन यदि चीन या रूस इस तकनीक का युद्ध के दौरान इस्‍तेमाल करते हैं, तो क्‍या होगा? ऐसे में ये तकनीक किसी खतरनाक हथियार का रूप धारण कर सकता है।

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