अद्धयात्म

गंगा किनारे भोले का धाम तो सई तट पर आस्था की धारा

आस्था : इस बार सावन कुछ खास लेकर आएगा। शिवभक्ति की तैयारी है। सोमवार के दिन नागपंचमी होने से पर्व का महत्व और बढ़ जाएगा। इस दिन शिव का पूजन कई गुना फलदायक होगा। सावन में प्रतापगढ़ जिले के हर कोने से शिव भक्ति की लहर उठेगी। कहीं गंगा के किनारे भोले का धाम है तो कहीं सई के तट पर आस्था की धारा बह रही है। सावन को लेकर शिव मंदिरों में जहां तैयारी चल रही है, वहीं जलाभिषेक करने को श्रद्धालु भी लालायित हैं। इधर घटाओं ने मौसम को अभी से ही सावनी कर दिया है, जबकि सावन शुरू होगा 17 जुलाई से। इस बार के सावन महीने में कई खास बातें हैं। नागपंचमी कई साल के बाद इस बार सोमवार यानी पांच अगस्त को है। यह शिवजी की कृपा पाने का खास अवसर होगा। आचार्य आलोक मिश्र बताते हैं कि सोमवार को नागपंचमी होना महत्वपूर्ण है। इस दिन शिव का पूजन कई गुना फलदायक होगा। इस बार सावन के पूरे महीने में पिछले साल से अधिक वर्षा भी होगी। शुक्ल पक्ष सप्तमी को स्वाती योग भी रहेगा। सावन में आप जिले के किसी भी शिव धाम में पूजन कर सकते हैं। जिले के मुख्य मंदिरों पर एक नजर भी डाल लें।
घुइसरनाथ धाम : यह शिवालय लालगंज तहसील के कुंभापुर गांव में है। सई नदी के किनारे यह स्थल घुस्मा देवी की कहानी से जुड़ा है। इसी से इसका नाम घुस्मेश्वर पड़ा, जो बाद में घुइसरनाथ हो गया। यहां मंगलवार को मेला लगता है। सावन में हजारों कांवरिए भी पहुंचते हैं। धाम पर्यटन विभाग द्वारा विकसित किया गया है। रिवर फ्रंट भी बन रहा है।
हौदेश्वर नाथ धाम : गंगा किनारे भगवान शंकर की यह स्थली कुंडा में है। धाम राजा भगीरथ की तपस्या का गवाह है। जब वह गंगा को स्वर्ग से उतारकर ले जाने लगे तो गंगा किनारे रुके। यहां से गंगा के वेग को कम करने के लिए हवन-पूजन किया। जिस पात्र यानि हौदे में शिवलिंग रखकर पूजन किया उसी से स्थल को हौदेश्वर कहा जाने लगा।
भयहरणनाथ धाम : यह स्थल मानधाता क्षेत्र में बकुलाही नदी के किनारे है। पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। वह लोगों के मन से असुर का भय दूर करना चाहते थे। यह स्थल घुघुरी लोक उत्सव के लिए भी जाना जाता है। यहां पर गुडिय़ा का मेला, लोक महोत्सव जैसे आयोजन होते हैं। सावन में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
बेलखरनाथ धाम : यह स्थल पट्टी तहसील क्षेत्र में है। यह बेलखरिया राजा से जुड़ा स्थल है। इस मंदिर का निर्माण आचार्य शिवहर्ष ब्रह्मचारी ने चार पीढिय़ों के साथ मिलकर शिव इच्छा से किया। यह मंदिर ऊंचे टीले पर है। बगल में सई नदी बहती है। यहां कभी महोत्सव भी होता था। सावन में दूर-दूर से कांवरिए जलाभिषेक करने को आते हैं।

Related Articles

Back to top button