स्वास्थ्य

थायराइड के रोग : परेशान ना हों पीड़ित लोग

देश में थायराइड ग्रंथि से संबंधित रोगों के मामले बढ़ रहे हैं। इससे कैसे निपटा जा सकता है ? क्या इस स्वास्थ्य समस्या की रोकथाम संभव है?

थायराइड ग्रंथि (ग्लैंड) गर्दन में सांस नली के ऊपर और स्वर यंत्र के नीचे तितली के आकार की एक एंडोक्राइन ग्रंथि है। यह ग्रंथि टी 3 और टी 4 नामक हार्मोन बनाती है। थायराइड हार्मोन का असर शरीर के लगभग हर भाग पर पड़ता है। यह ग्रंथि शरीर के तापमान का नियंत्रण करती है और शरीर के मेटाबॉलिज्म की एक प्रमुख नियंत्रक है। थायराइड ग्रंथि की क्रिया पिट्यूटरी ग्रंथि नियंत्रित करती है। पिट्यूटरी ग्रंथि से टी एस एच (थायराइड स्टीम्यूलेटिंग हॉर्मोन) बनता है, जो थायरायड ग्रंथि से टी 3 और टी 4 हार्मोन बनवाता है। थायराइड ग्रंथि में किसी कारणवश हॉर्मोन के अपर्याप्त निर्माण होने की स्थिति को हाइपोथायराइडिज्म कहते हैं। हाइपोथायराइडिज्म पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है।

आयोडीन की कमी और यह मर्ज

लगभग तीन दशक पहले देश में आयोडीन की कमी से हुआ हाइपोथायराइयडिज्म एक अत्यंत गंभीर स्वास्थ्य समस्या थी। सौभाग्यवश आयोडीन युक्त नमक के प्रचलन के बाद इस समस्या का लगभग निवारण हो गया है।

जीवन-शैली और मर्ज

यह गलत धारणा है कि हाइपोथायराइडिज्म का सबसे बड़ा कारण हमारी अस्वास्थ्यकर और तनावपूर्ण जीवन-शैली है। सच तो यह है कि हाइपोथायराइडिज्म का सबसे बड़ा कारण आटोइम्यूनिटी है। इसी वजह से केवल जीवन-शैली में सुधार से इसका इलाज संभव नहीं है।

शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव

थायराइड की कमी से सुस्ती, ठंड लगना, याददाश्त का कमजोर होना, त्वचा में रूखापन (ड्राईनेस) और वजन बढ़ने की समस्या पैदा हो सकती है। इसके अलावा कब्ज, लो पल्स और महिलाओं में अनियमित मासिक चक्र की शिकायत हो सकती है। आमतौर पर थायराइड को वजन बढ़ने से जोड़ा जाता है, परंतु सच तो यह कि हाइपोथायराइडिज्म में लगभग 2 से 4 किलोग्राम वजन ही बढ़ता है।

किन्हें थायराइड की जांच करानी चाहिए

गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशु के लिए थायराइड ग्रंथि की जांच अनिवार्य होनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि थायराइड हार्मोन की कमी से बच्चों में मानसिक विकास की कमी हो सकती है, लेकिन समय रहते इलाज कराने से इस दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। बच्चे जिनकी लंबाई उम्र के अनुरूप न न बढ़ रही हो और जिन महिलाओं को गर्भधारण करने में तकलीफ हो रही हो, उन्हें भी थायराइड की जांच अवश्य करानी चाहिए। 60 साल
से अधिक उम्र की महिलाओं में भी यह जांच कराना जरूरी हो जाता है।

खानपान संबंधी गलतफहमियां

लोगों में यह गलत धारणा व्याप्त है कि हमारे खानपान का प्रभाव थायराइड ग्रंथी पर पड़ता है। यह गलत धारणा है कि थायराइड से ग्रस्त लोगों को पत्तागोभी, ब्रोकोली और गोभी जैसी सब्जियां नहीं खानी चाहिए। अध्ययनों से साबित हुआ है कि थायराइड के विकार से ग्रस्त लोग अगर आयोडीन युक्त नमक का सेवन कर रहे हैं, तो किसी
सब्जी से परहेज करने की जरूरत नहीं है। इस संदर्भ में एक अपवाद सोयाबीन है, जिसका थायराइड से ग्रस्त व्यक्ति अगर अधिक मात्रा में सेवन करें, तो यह थायराइड के इलाज में बाधा डाल सकती है। थायराइड के रोगियों के लिए वही जीवन-शैली उपयुक्त है, जिसे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम सभी को अपनाना चाहिए। थायराइड की कमी को दूर करने के लिए थायराक्सिन नामक दवा लेनी पड़ती है।

ये हैं जांचें

हाइपोथायराइडिज्म की जांच रक्त में टी 3, टी 4 और टी एस एच के स्तर के मापने से होती है। हाइपोथायराइडिज्म में टी एस एच का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है. परंतु अगर टी एस एच का स्तर 5-10, आई यू / एमएल के मध्य हो, तो संभव है कि आपके डॉक्टर इसके लिए थायराइड से संबंधित टैबेलेट न लिखकर और जांच कराने की सलाह दें।

इन बातों पर दें ध्यान

  1. – थायराक्सिन की टैब्लेट सुबह खाली पेट ली जाती है। इस टैब्लेट को लेने के लगभग 45 मिनट तक कुछ नहीं
    खाना चाहिए।
  2. थायराइड की दवा लेने के चार घंटे बाद तक हमें कैल्शियम, आयरन और विटामिन की टैब्लेट्स नहीं लेनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उपर्युक्त टैब्लेट्स थायराइड की गोली के अवशोषण में बाधा डालती हैं।
  3. अक्सर हाइपोथायराइडिज्म से ग्रस्त व्यक्ति इस बात से चिंतित रहते हैं कि इस मर्ज का इलाज ताउम्र करना
    पड़ता है, लेकिन डॉक्टर की सही सलाह पर अमल कर और नियमित रूप से दवा का सेवन कर व्यक्ति सामान्य
    जीवन व्यतीत कर सकता है। डॉक्टर की सलाह के बगैर दवा बंद नहीं करना चाहिए।

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