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देश के तीन मशहूर दशहरों की रिपोर्ट, देवताओं को सरकार देती है TA-DA

r1_1445462267दस्तक टाइम्स/एजेंसी- छत्तीसगढ़ : बस्तर. तीनों शहर विश्व प्रसिद्ध दशहरे के लिए पहचाने जाते हैं। देश ही नहीं, दुनियाभर से लोग यहां उत्सव देखने आते हैं। तीनों की अपनी खासियतें। कुल्लू में ये देवताओं के मिलन का प्रतीक है। खास बात यह है कि यहां देवताओं को सरकार टीए डीए भी देती है। मैसूर का दशहरा भव्यता के लिए जाना जाता है। जबकि बस्तर में ये 75 दिन का देवी महोत्सव कहलाता है। वैसे खास बात यह है कि इन तीनों ही जगह मुख्य आयोजनों में रावण दहन नहीं होता। विजयादशमी पर आइए, आपको ले चलते हैं- देश की गौरवशाली पहचान बन चुके इन तीन शहरों के उत्सव की रौनक देखने…

 यहां आमंत्रित देवताओं को भी सरकार देती है टीए-डीए
रथ और पालकियों में बैठे सैकड़ों देवी-देवताएं और गीत-संगीत। नाचते-गाते लाखों श्रद्धालु। गुरुवार को जब देश में दशहरे का समापन होगा, हिमाचल प्रदेश का कुल्लू अगले सात दिनों के लिए उत्सव में नहा जाएगा। तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। दशहरे से महीनों पहले राजा ने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया है। दशहरे के दिन यानी 22 अक्टूबर को इनका आगमन होता है। इन देवी-देवताओं को अपने-अपने स्थानों से कुल्लू तक आने पर होने वाले खर्च के रूप में टीए-डीए यानी नजराने की राशि भी सरकार ही देती है। उत्सव की शुरुआत भगवान रघुनाथ की रथयात्रा से होती है।
 
उनकी मूर्ति सुल्तानपुर स्थित मंदिर से ढालपुर मैदान तक लाई जाती है। उन्हें मैदान के एक छोर पर खड़े रथ में स्थापित किया जाता है। इसके बाद अलग-अलग क्षेत्रों से आए एक हजार देवता सात दिनों के लिए यहीं स्थान ग्रहण कर लेते हैं। सभी देवी-देवता रघुनाथजी की सेवा में जुट जाते हैं। उत्सव के छठे दिन रघुनाथजी के अस्थायी शिविर के सामने शक्ति पूजन किया जाता है। इसे मुहल्ला कहते है।
 
इसी दिन सभी देवता रघुनाथजी से मिलते हैं। अंतिम दिन लंका दहन होता है। इस दिन रघुनाथजी के रथ को व्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है और प्रतीकात्मक रूप से कंटीले पेड़ों को जलाया जाता है। पहले इसके साथ बलि भी दी जाती थी। पर पिछले साल कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। वह इस साल भी जारी है।
 
यहां लोग दुनियाभर से दशहरा मनाने आते हैं। इस बार गर्मजोशी नजर नहीं आ रही। एक ट्रैवल एजेंट अनंथा से पूछा कि इस बार पहले जैसी भव्यता क्यों नहीं है? उसने बताया- सरकार ने तय किया है कि दशहरा सादगी से मनेगा। वह इससे ज्यादा कुछ बता नहीं सका। फिर डॉ. सीजी बेत्सुरमथ से मिला। वे मैसूर सिटी कॉरपोरेशन के कमिश्नर हैं और दशहरा आयोजन समिति में भी हैं। यही सवाल उनसे भी किया।
 
किसानों के दर्द में भागीदार
 
उन्होंने बताया पिछले छह महीने में राज्य में करीब पांच सौ किसानों ने सूखे के कारण जान दे दी है। राज्य की तीन-चौथाई तहसीलों में सूखा पड़ा है। इसलिए दशहरा महोत्सव भावनात्मक वातावरण में सादगी से मनाया जा रहा है। किसानों में उम्मीद बढ़ाने के लिए परंपरा से हटकर उत्सव का उद्घाटन इस बार किसान से करवाया गया है।
 
इस बार नहीं होंगे आधे उत्सव
 
10 दिन के दशहरा उत्सव में इस साल फूड फेस्टिवल, युवा, महिला और चिल्ड्रन दशहरा सहित आधे आयोजन नहीं किए गए। फिर भी ऐतिहासिक शहर को रोशनी से सराबोर रखा गया है। 201 हैरीटेज इमारतें और व्यावसायिक परिसर रोशनी, फूल और पत्तियों से सजाए गए हैं। इसमें भी मैसूर पैलेस की शान सबसे अलग है। यहां इस बार जंबो सवारी देखने के छह लाख से अधिक पर्यटक मैसूर पहुंच चुके हैं। मैसूर दशहरा महोत्व को इस वर्ष 405 वर्ष हो जाएंगे। 
 
2008 में राज्य सरकार ने इसे राज्योत्सव (नाद हब्बा) का दर्जा दिया था। जंबो सवारी के लिए रोज दो बार 12 हाथी पांच किलोमीटर के रास्ते पर अभ्यास कर रहे हैं। इनमें प्रमुख है- अर्जुन हाथी, जो अपनी पीठ पर 750 किलो सोने के विशेष हौदे पर चामुंडेश्वरी देवी की प्रतिमा लेकर चलेगा। हाल ही में मैसूर राज परिवार के वारिस घोषित किए गए यदुवीर कृष्णदत्ता चामराजा वाडियार प्रतिमा को हौदे पर रखेंगे। 

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