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नक्सलवाद के सफाये में लगेंगे 22 साल

लखनऊ : एक तरफ देश सीमा पार से आतंकवाद की चुनौती का सामना कर रहा है तो वहीं, भीतर नक्सलवाद ने जानमाल का काफी नुकसान किया है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आश्वस्त करते हुए कहा है कि नक्सलवाद अब सिमटकर मात्र 10-12 जिलों में रह गया है, जो पहले देश के 126 जिलों में था।

लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान गृह मंत्री ने कहा कि अधिकतम 3 साल में नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा। इस तरह से उन्होंने एक साल में 4 जिलों को नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त करने का सरकार का स्ट्राइक रेट भी दिया। अब भी कुल 90 जिले ऐसे हैं, जो किसी न किसी तरह से नक्सल प्रभावित हैं और रेड कॉरिडोर के दायरे में आते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि देश के नक्शे से नक्सलवाद का पूरी तरह से सफाया होने में 3 साल नहीं बल्कि संभवत: 22 साल और 6 महीने लग सकते हैं। गृह मंत्री ने दावे के साथ कहा है कि नक्सल प्रभावित जिले 126 से काफी घट गए हैं, जो पिछले साल 2017 सरकारी डेटा में भी सामने आए थे। हालांकि इसमें यह फैक्ट भी छिपा हुआ है कि राज्यों के विभाजन के कारण नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या बढ़ गई थी। इसके पहले लगातार दो वर्षों- 2015 और 2016 में 106 जिलों में नक्सलियों का प्रभाव स्थिर बना हुआ था। पिछले 10 वर्षों में नक्सल हिंसा के कारण लोगों की मौत का आंकड़ा काफी हद तक कम हुआ है। 2008 में यह 721 था, जो इस साल मई तक घटकर 97 रह गया है। इतना ही नहीं, उग्रवाद से जुड़ी हिंसक घटनाओं की संख्या भी काफी घटी है। 2008 में कुल 1591 घटनाएं हुई थीं, जो 2018 में 354 रह गईं। हालांकि पिछले 10 वर्षों में नक्सल हिंसा के कारण मारे गए लोगों की तादाद जम्मू और कश्मीर में आतंकी घटनाओं में हुई मौतों से काफी ज्यादा है। नक्सल हिंसा में 10 साल में 5,873 जानें गईं जबकि इसी अवधि में घाटी में आतंकी हमलों में 3,062 लोगों की मौत हुई। राजनाथ सिंह ने त्वरित कार्य बल (आरएएफ) के 26वें स्थापना दिवस पर रविवार को कहा कि वह दिन दूर नहीं जब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और आरएएफ के पराक्रम के बलबूते पूरे देश से नक्सलवाद और माओवाद का सफाया हो जाएगा।

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