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नीतीश ने इस्तीफे के ‘तीर’ से कई निशाने साधे

nitish_kumarपटना । लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर को भले ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘ब्लोअर की हवा’ बताते रहे परंतु चुनाव के परिणाम के बाद इसी हवा ने जनता दल (युनाइटेड) के तीर को सही निशाने पर नहीं लगने दिया। इस हवा में जहां जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को मधेपुरा से हार का मुंह देखना पड़ा वहीं मुख्यमंत्री पार्टी के अंदर और बाहर के लोगों का दबाव नहीं झेल सके और उन्हें पद से इस्तीफा तक देना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी जिस तरह के विरोध के स्वर उभरने लगे थे उसे झेल पाना नीतीश के लिए आसान नहीं था। वैसे नीतीश के विरोधी इसे भले ही नाटक कह रहे हों परंतु राजनीति के जानकार इसे सही कदम बता रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अनिल प्रकाश ने आईएएनएस को बताया ‘‘लोकसभा का परिणाम जद (यू) के आशा के अनुरूप नहीं था और विपक्षी दलों द्वारा बराबर उनके इस्तीफे की मांग की जा रही थी। ऐसे में उनके पास इस्तीफे के अलावा कोई चारा नहीं था। इस्तीफा देकर उन्होंने जहां राजनीतिक परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है वहीं उन्होंने विपक्षियों और आम लोगों को सत्ता का मोह नहीं होने का संदेश भी दिया है।’’ आमतौर पर 16 जून 2०13 के बाद जब भाजपा से जद (यू) अलग हुई तभी से मुख्यमंत्री सार्वजनिक तौर पर सत्ता के मोह नहीं होने की बात कहते रहे हैं। ऐसे में विपक्षी उन पर कांग्रेस के समर्थन से सरकार चलाने की बात कहकर उन्हें सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करने का आरोप लगाते रहे हैं। ऐसे में नीतीश ने इस कदम से ऐसे विरोधियों को भी चुप कराने का प्रयास किया है जो सत्तासुख के लिए कोई भी समझौता करने का आरोप लगाते रहे हैं। प्रकाश कहते हैं कि नीतीश को नए जनादेश के लिए चुनाव में जाना चाहिए। वे कहते हैं कि नीतीश जब तक सरकार के मुखिया रहे तब तक भाजपा के एजेंडों को बिहार में खुलकर लागू नहीं होने दिया। भाजपा को भले ही सरकार का जनादेश मिल गया हो परंतु भाजपा को अपने ऊपर लगे सांप्रदायिक होने का आरोप धोने में काफी समय लगेगा। ऐसे में नीतीश के लिए यह सकारात्मक रहा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर बिहार में सांप्रदायिक ताकतों को नहीं बढ़ने दिया। यह कदम बिहार के परिदृश्य में उनके वोट बैंक में भी इजाफा करेगा। इस संदेश को लेकर अब उन्हें गांव-गांव जाना चाहिए। बहरहाल नीतीश ने लोकसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देकर न केवल विपक्षियों को संदेश देने का प्रयास किया है बल्कि एक राजनीतिक परिपक्वता भी दर्शाया है। इस तरह देखा जाए तो नीतीश ने अपने ‘तीर’ से कई निशाने साधे हैं।

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