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पनामा पेपर्स में नाम आने से मुश्किलों में पड़ा शरीफ परिवार, अब क्या होगा मरियम का राजनीतिक भविष्य

पाकिस्तान की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाला शरीफ परिवार की मुश्किलें पनामा पेपर्स में नाम सामने आने के बाद बढ़ती गईं। अमेरिकी स्थित एक एनजीओ के खोजी पत्रकारों के समूह आईसीआईजे इन्हें सार्वजनिक किया था। इसमें दुनिया भर की 140 से अधिक लोगों की संपत्ति का खुलासा किया गया था। इसके अनुसार, शरीफ समेत अन्य लोगों ने टैक्स हैवन देशों में अपने काले धन का निवेश किया।
पनामा पेपर्स के अनुसार, नवाज शरीफ के बेटों हुसैन और हसन के अलावा बेटी मरियम ने टैक्स हैवन माने जाने वाले ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में कम से कम चार कंपनियां शुरू कीं। इन कंपनियों के जरिए लंदन में छह बड़ी संपत्तियां खरीदी गईं। शरीफ परिवार ने इन संपत्तियों को गिरवी रखकर डॉएचे बैंक से करीब 70 करोड़ रुपये का का लोन लिया। इसके अलावा, दूसरे दो अपार्टमेंट खरीदने में बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ने उनकी मदद की।

नवाज और उनके परिवार पर आरोप है कि इस पूरे कारोबार और खरीद-फरोख्त में अघोषित पैसा लगाया गया। शरीफ की विदेश में इन संपत्तियों की बात उस वक्त सामने आई जब लीक हुए पनामा पेपर्स में दिखाया गया कि उनका मैनेजमेंट शरीफ के परिवार के मालिकाना हक वाली विदेशी कंपनियां करती थीं। शरीफ परिवार के लंदन के 4 अपार्टमेंट से जुड़ा मामला भी उन 8 मामलों में शामिल है जिनकी नेशनल अकाउंटबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) ने दिसंबर 1999 में जांच शुरू की थी।

लंदन में खरीदी थीं प्रॉपर्टी
पनामा मामले की जांच कर रही 6 सदस्यों वाली जेआईटी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि प्रधानमंत्री के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में शरीफ परिवार ने लंदन में संपत्ति खरीदी थीं। हालांकि शरीफ ने इन आरोपों को गलत करार दिया था।

लंदन के एवेन फील्ड के फ्लैट नंबर 16, 16-ओ, 17 और 17-ए अजिजिया स्टील कंपनी, हिल मेटल कंपनी, जेद्दाह सहित फ्लैगशिप इनवेस्टमेंट लिमिटेड समेत 15 अन्य कंपनियों के नाम पर खरीदे गए थे।

मरियम की गलती पड़ी भारी
कहा जाता है कि शरीफ परिवार को मरियम की एक गलती की सजा भुगतनी पड़ रही है। पहले नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और उन आजीवन चुनाव नहीं लड़ने का प्रतिबंध लगा। अब उनके जेल जाने की नौबत आ गई है। दरअसल, पनामा पेपर्स मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जेआईटी का गठन किया था।

मरियम ने जेआईटी को गुमराह करने के लिए पनामा गेट से जुड़े जो दस्तावेज भेजे थे, वे कैलिबरी फॉन्ट में टाइप थे और वर्ष 2006 के थे। जबकि कैलिबरी फॉन्ट 31 जनवरी 2007 से पहले व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उपलब्ध ही नहीं था। इसी गलती की का खामियाजा शरीफ परिवार को उठाना पड़ रहा है।

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