अद्धयात्म

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एजेन्सी/ l_kalratri-1460447623मां दुर्गा का सप्तम रूप है – कालरात्रि। इनके शरीर का रंग घने अंधकार के समान काला है, इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। इस रूप में देवी के केश बिखरे हुए हैं। इनके गले में माला है, जो बिजली की तरह चमक रही है। शिव की तरह इनके भी तीन नेत्र हैं।

इनसे बिजली की किरणें उत्पन्न होती रहती हैं। इनकी सांस से भी अग्नि की ज्वाला निकलती रहती है। देवी का वाहन गर्दभ है। इनके चार हाथ हैं। दाईं ओर ऊपर का हाथ सबको वरदान देता है। इसी प्रकार दायां हाथ अभय मुद्रा में है। 

बाईं ओर के ऊपरी हाथ में लोहे का कांटा है। बाएं हाथ में खड्ग है। यह स्वरूप बहुत भयानक है। भक्तों के लिए यह रूप सिद्धिदायक है, वहीं दुष्टों को वे दंड देती हैं। इनकी कृपा से प्रेतबाधा का निवारण होता है। इसके अलावा अकाल मृत्यु का भय भी वे दूर कर देती हैं। 

इन मंत्रों से कीजिए भगवती कालरात्रि को प्रसन्न

ध्यान 

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। 

कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥ 

दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्। 

अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥ 

महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा। 

घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥ 

सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्। 

एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥ 

स्तोत्र पाठ 

हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती। 

कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥ 

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी। 

कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥ 

क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी। 

कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥ 

कवच 

ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि। 

ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥ 

रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम। 

कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥ 

वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि। 

तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

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