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बिहार चुनाव में पहले ही सट्टाबाजार ने चौथे दौर में बीजेपी पर लगाया दांव!

दस्तक टाइम्स/एजेंसी:
31_10_2015-31bihar बिहार में अबतब 4 चरण का मतदान पूरा हो चुका है और अंतिम और 5 वें चरण के लिए चुनाव प्रचार भी आज समाप्त हो गया है। हर चुनाव में पहले ही चुनावी आंकलन करने वाले चुनावी पंडितों को इस चुनाव में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वह अभी तक पड़े वोटिंग में कुछ भी साफ नहीं कर पा रहे हैं कि आखिरकार चुनावी पलड़ा किसके तरफ झुक रहा है। अभी तक कुल 186 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। इतने सीटों पह हुई वोटिंग में महागठबंधन और एनडीए में कांटे की टक्कर जारी है और दोनों के अपने-अपने दावे हैं। ऐसे में ये कहना बड़ा मुश्किल है कि बिहार में सत्ता किसके हाथ आती है। हालांकि हर दौर में बाजी पलटती दिख रही है। बिहार में हर दौर के मतदान के बाद हालात बनते-बिगड़ते दिख रहे हैं। बताया जा रहा है कि पहला और दूसरा दौर जहां महागठबंधन के नाम रहा, वहीं तीसरे और चौथे दौर में एनडीए ने वापसी की ओर कदम बढ़ाया है। सट्टाबाजार की अगर माने तो इतना साफ है कि चौथे चरण ने एनडीए गठबंधन को वापसी को जोरदार मौका दिया है।सट्टाबाजार की मानें तो चौथे चरण ने एनडीए गठबंधन को वापसी को जोरदार मौका दिया है। सट्टाबाजार ने एनडीए के लिए 125 से अधिक सीटों पर दांव खेला है जिसमें 95-100 के बीच बीजेपी को अकेले दी है। वोटिंग के ट्रेंड को देखकर यही कहा जा सकता है कि चौथे चरण ने एनडीए के लिए कहीं न कहीं ऑक्सीजन का काम किया है।वोटिंग ट्रेंड को देखने से पता चलता है कि चौथे चरण के मतदान में 57.6 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है जो पिछले विधानसभा से 3.3 फीसदी ज्यादा हैं। यही नहीं एक बार फिर मतदान के दौरान महिला मतदाताओं में अधिक उत्साह दिखा और 60.4 फीसदी महिलाओं में मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि 54.2 फीसदी पुरुषों ने वोट डाले। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं और युवाओं नें प्रदेश में बदलाव के लिए मतदान किया है। राजनीतिक गलियारों में पीएम मोदी की तूफानी रैलियों का असर साफ तौर पर देखा जा रहा है।सामाजिक समीकरण के नजर से देखने पर महागठबंधन की स्थिति एनडीए से मजबूत जरूर दिखाई देती है, लेकिन बीजेपी ने इस समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आरएसएस के सक्रिय हो जाने और बागी उम्मीदवारों के चलते महागठबंधन को नुकसान की आशंका है। जहां एक तरफ नीतीश और लालू की चुनावी रणनीति में समानता न होने से जातिगत जनगणना का सवाल चुनावी मुद्दा नहीं बन सका वहीं आरएसएस ने अपनी सक्रियता से एनडीए को होने वाले नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की है। नीतीश कुमार के विकास के एजेंडे को भी लालू के साथ होने से झटका लगा है। नीतीश के लिए विकास की राजनीति ने बैकफायर करने का काम किया है।एनडीए खासकर आरएसएस इस फ्लोटिंग वोटर को रिझाने के साथ साथ बूथ बूथ प्रबंधन की कला में माहिर माना जाता रहा है। तीसरे चरण के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने साइलेंट वर्कर की तरह बीजेपी के पक्ष में मत प्रतिशत बढ़ाने, मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक पंहुचाने और मतदातओं को लामबंद करने की तैयारियां शुरू कर दी थी। यही नहीं इसी खास रणनीति के तहत ही पीएम नरेंद्र मोदी की रैली को चुनाव से ठीक पहले रखने का फैसला किया गया ताकि इस फ्लोटिंग वोट को किसी भी कीमत पर पार्टी के पक्ष में मोड़ा जा सके। इसमें कोई दो राय नहीं कि पीएम मोदी की तूफानी रैलियों (एक दिन में तीन चार रैलियां) ने एनडीए को फायदा पहुंचाया है। स्थानीय लोगों की अगर मानें तो साफ है कि पीएम मोदी और अमित शाह ने जिस तरह ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है, इससे भी पार्टी को फायदा मिला है।

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