फीचर्डराजनीतिराष्ट्रीय

बीजेपी के इन ‘अदृश्य वोटों’ ने केरल में कांग्रेस की लुटिया डुबो दी…

एजेंसी/chandyनई दिल्ली। केरल विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। केरल के इन चुनावी नतीजों पर पूरे देश के लोगों की नजरें टिकी हुई थी और लोग बड़ी उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। एक बार फिर केरल ने अपना इतिहास दोहराया हैं जहां हर पांच साल के अंतराल में सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के पास जाती रहती है। यह चुनाव इसलिए भी खास रहा कि इस चुनाव में बीजेपी ने यूडीएफ को हराने में अहम भूमिका अदा की है। आपको बता दें कि केरल के इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 10 फीसदी  (2129726 वोट) हासिल किए, और माना जा रहा है कि इस में अधिकतर वोट यूडीएफ को ही जाने वाले थे।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी इस वोट शेयर को मात्र 1 सीट में परिवर्तित कर पाई, मतलब साफ है कि इस अदृश्य वोट बैंक ने एलडीएफ को  सत्ता हासिल करने में परोक्ष रूप से मदद की। जैसा कि चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि बीजेपी का केरल में वोट प्रतिशत बढ़ा है और यह 2011 के छह प्रतिशत से बढ़कर 2016 में दहाई के आंकड़े को भी पार कर लिया है।

केरल का यह चुनाव खास इसलिए भी था कि लोगों की नजरें लोकसभा चुनाव में जीत के बाद दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में हार देख चुकी बीजेपी पर टिकी थी जिसने इस बार राज्य में अपना खाता खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। यही नहीं 2014 लोकसभा चुनाव में करारी हार के चलते केरल में जहां सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था, वहीं एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई थी क्योंकि मार्क्स्वादी मोर्चे की अब केवल त्रिपुरा में ही सरकार रह गई है। के लिए भी केरल विधानसभा में खाता खोलना काफी अहम माना जा रहा है। वाम मोर्चा वाले एलडीएफ ने केरल 88 सीटें हासिल करते हुए कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को पटखनी दी। यूडीए मोर्चे को 51 सीटें मिलीं। आइए जानते हैं हैं क्या रहे चुनाव के अहम पहलू जिस वजह से हुआ सत्ता परिवर्तन….

1. शराबबंदी की नई नीति- शराब की ऊंची खपत वाले केरल में इसकी बिक्री पर चरणबद्ध तरीके से पाबंदी लगाने के फैसले पर जहां महिलाओं का समर्थन मिला है वहीं यूडीएफ सरकार का फैसला आत्मघाती भी हो सकता है। केरल देश का अकेला राज्य है, जहां महिला वोटरों की संख्या पुरुष मतदाताओं के मुकाबले ज्यादा है। ऐसा माना जा रहा है कि इस फैसले से विशेषकर बार मालिक काफी नाराज हैं और यूडीएफ की हार सुनिश्चित करने का फैसला किया था। गौरतलब है कि बीजेपी के सहयोगी नेतसन एक जाने-माने बार मालिक हैं। हालांकि यूडीएफ का दावा है कि शराब की खपत में कमी के चलते राज्य में होने वाले अपराध और घरेलू हिंसा के मामलों में काफी कमी देखने को मिली है। लेकिन चांडी शराब घोटाले के दागी मंत्रियों व वरिष्ठ विधायकों का साथ भी नहीं छोड़ना चाहते थे।

2. बीजेपी ने वोट बैंक में लगाई सेंध- केरल में बीजेपी ने दोनों पार्टियों के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं। बीजेपी ने इज्हावा नेता वेलापल्ली नतेसन की नवगठित भारत धर्म जन सेना के साथ गठबंधन किया, जो अब तक एलडीएफ का समर्थन करते आए हैं। जाहिर है इसका नुकसान लेफ्ट को ही हुआ। ईसाईयों की बहुलता वाले केरल में बीजेपी राजशेखरन के नेतृत्व में आक्रामक तरीके से हिंदुत्व कार्ड का सहारा लिया। राज्य में लगभग 45 फीसदी ईसाई और मुसलमान हैं। हिंदू करीब 55 फीसदी हैं, और उन्होंने कभी एकजुट होकर वोट नहीं किया। उन्होंने या तो एजावा (23 फीसदी) बनकर वोट डाले या फिर नायर (14 प्रतिशत) के तौर पर। बीजेपी एजावा को लुभाने की कोशिश कर रही थी। गौरतलब है कि राजशेखरन ने राज्य में विश्व हिंदू परिषद को स्थापित करने में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि नायर सेवा समाज द्वारा समर्थन से इंकार देने के चलते बीजेपी की इस योजना को बड़ा धक्का लगा है।

3. भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा- यूडीएफ के मुख्यमंत्री ओमान चांडी के कार्यकाल में एक के बाद एक कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। जहां तक मुख्य आरोपों बात है तो खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री अनूप जोसेफ पर लगा आरोप (मामले में सतर्कता विभाग की जांच चल रही है) और सौर घोटाला प्रमुख है। सौर घोटाले की मुख्य आरोपी सरिता नायर ने तो चांडी पर उनका यौन शोषण करने का आरोप भी लगाया था। हालांकि बार बार बयान बदलने के कारण एलडीएफ इसे चुनावी मुद्दा बनाने में नाकाम रही। एक अन्य आरोप में बार रिश्वत घोटाले में भी सत्ताधारी दल का नाम जोड़ा गया। इस चुनाली माहौल के चलते भ्रष्टाचार के पुराने मामले भी उठाए जाने लगे जिसमें 1991 का पामालीन तेल आयात मामला था, तब चांडी वित्त मंत्री थे। इस मुद्दे को भी चुनावी मौसम में खूब उछाला गया।

4. सत्ता विरोधी लहर- केरल का अपना एक इतिहास रहा है जहां हर पांच साल के अंतराल में सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के पास जाती रहती है। केरल में 1977 को छोड़ दें, तो हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता आया है, अगर किसी राज्य का ट्रेंड यह हों तो निश्ति रूप से सरकार द्वारा किए गए काम को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है।  जाहिर है ऐसे में इस बार बारी एलडीफ की थी। सत्ता विरोधी लहर होने के कारण ही इस चुनाव में कांग्रेस के पास गिनाने के लिए कुछ उपलब्धियां होने के बाद भी नहीं भुना सकी। बेहद चर्चित सौर घोटाले में नाम आने के बावजूद भी ओमन चांडी बीते दो दशक में पहले ऐसे कांगेसी मुख्यमंत्री हैं जो अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे। उनसे पूर्व के करुणाकरण 1982-87 में ऐसा सफलतापूर्वक करने वाले अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। कोच्चि मेट्रो, कन्नूर हवाईअड्डा और विजिंघम बंदरगाह जैसी सफल इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाएं और इसके अलावा चांडी की शून्य भूमिहीन केरल नीति, निःशुल्क जेनेरिक दवाएं देने की नीति भी काफी लोकप्रिय रहे हैं।

5. अन्य मुद्दे भी रहे हावी- केरल के आदिवासी इलाकों में गरीबी और अकाल से बच्चों की मौत के लिए मुख्यमंत्री ओमन चांडी के ढुलमुल रवैये को भी काफी हद तक जिम्मदार माना गया। यही नहीं केरल में कानून की पढ़ाई करने वाली एक दलित छात्रा के साथ निर्मम बलात्कार और हत्या के कुछ ही दिन बाद नर्सिंग की पढ़ाई करने वाली एक दलित छात्रा के साथ वारकला के अयांती में कथित तौर पर बलात्कार ने भी जननता को झकझोर कर रख दिया। केरल में कोल्लम के पुत्तिंगल मंदिर में  आतिशबाजी के दौरान आग लगने और विस्फोट से 100 से अधिक लोगों के मरने से चांडी सरकार के प्रशासनिक सक्षमता पर सवाल उठने लगे थे।

Related Articles

Back to top button