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भोजपुरी फिल्में 50% घटीं: गुजराती को 25% घाटा, पंजाबी का बिजनेस 250 Cr

मुंबई.200 करोड़ रुपए की मराठी फिल्म इंडस्ट्री की 3 फिल्में इस बार कान फिल्म फेस्टिवल में जा रही हैं। हाल ही में इनमें से दो ने तो नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी जीता है। साउथ की फिल्म इंडस्ट्री भी काफी कामयाब है। ऐसे में DainikBhaskar ने देश की 4 प्रमुख रीजनल फिल्म इंडस्ट्री की हालत पर गौर किया तो पता चला कि भोजपुरी फिल्मों की संख्या 50% कम हो गई है तो वहीं गुजराती इंड्स्ट्री को 25% का घाटा हो रहा है। वहीं, पंजाबी फिल्म इंड्स्ट्री फायदे में है, इसका सालाना कारोबार 250 करोड़ रुपए के पार पहुंच गया है। भोजपुरी फिल्मों का 70% तो स्टार की फीस…
 
भोजपुरी इंडस्ट्री
 
– भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का बाजार पिछले 5 साल में कम हुआ है। इस इंड्रस्टी में आए बदलावों के बारे में भोजपुरी के महानायक कहे जाने वाले चर्चित अभिनेता कुणाल सिंह कहते हैं कि पांच साल पहले जहां भोजपुरी में भी फैमिली ड्रामा वाली फिल्में बनती थी, वहीं हाल के दिनों में मनोरंजन हावी हो गया है।
– वे कहते हैं कि पांच साल पहले इंडस्ट्री जितनी तेजी से बढ़ी थी, वह अब स्थिर हो गई है। पांच साल में फिल्म बनने की संख्या तेजी से कम हुई है। वह कहते हैं कि रीजनल लैंग्वेज का सिनेमा बिना सरकार की मदद के पनप नहीं सकता। बिहार सरकार द्वारा इस इंड्रस्टी को पूरा सहयोग नहीं मिल पा रहा है।
– “सरकार से मदद नहीं मिलने के कारण आज भी मल्टीप्लेक्स में हमारी फिल्में रिलीज नहीं हो पातीं। फिल्मों की संख्या 5 साल में आधी हो गई है। पहले जहां 100 से 150 तक फिल्में बनती थी वहीं अब 50 से 60 फिल्में ही बनती हैं।”
– वह कहते हैं कि महंगाई बढ़ने के कारण भोजपुरी फिल्मों की कंस्ट्रक्शन कॉस्ट बढ़ गई है। पहले यह 75 लाख के आसपास होता था, अब एक करोड़ हो गया है। पांच साल में भोजपुरी फिल्मों का बाजार भले कम हुआ हो, लेकिन भोजपुरी के स्टार की फीस बढ़ी है। फिल्म के बजट का 70% तक एक-एक स्टार को दिया जाने लगा है। मगर बाकी आर्टिस्ट्स, टेक्नीशियंस और मजदूरों की फीस कम हो गई है।
– कुणाल कहते हैं कि भोजपुरी सिनेमा की बदहाली का एक कारण यह भी है कि लोगों को भ्रम हो गया है कि स्टार ही फिल्म चलाता है जबकि फिल्म को हिट कराने में पूरी टीम का कंट्रीब्यूशन होता है।
 
फिल्म क्रिटिक का क्या कहना है?
– राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम भोजपुरी सिनेमा में पांच साल में आए बदलावों के बारे में कहते हैं कि यह इंडस्ट्री कंटेंट और डिस्ट्रीब्यूशन के मामले में नहीं बदली है। पांच साल पहले जिस फॉर्मूले पर फिल्में बनती थी, आज भी उसी फाॅर्मूले के तहत बनती है। इसके प्लॉट में कोई सुधार नहीं हुआ है और आज भी यह लोअर कैटेगरी
के लोगों तक ही पहुंच रखती है।
– उन्होंने बताया कि हिन्दी सिनेमा के बैड वर्जन के तौर पर भोजपुरी फिल्मों की जो शुरुआत 15-17 साल पहले हुई थी, वही आज भी जारी है। इसे बदलने की कोशिश किसी ने नहीं की। इस बीच देशवा जैसी फिल्म बेहतर कंटेंट के साथ अाई, लेकिन वह भी बाजार में कामयाब नहीं हो पाई।
– वो कहते हैं कि बिहार में भोजपुरी सिनेमा आज भी सिंगल स्क्रीन थियेटरों में ही दिखाया जाता है। इन सिंगल स्क्रीन थियेटरों की संख्या लगातार घट रही है और मल्टीप्लेक्स की संख्या बढ़ रही है। मल्टीप्लेक्स में यह नहीं दिखाए जाने के कारण एक बड़े दर्शक वर्ग से कटी हुई है।
– “भोजपुरी का बजट पांच साल से स्थिर है, इस इंड्रस्टी में कुछ नया करने की कोशिश नहीं हुई है। इसलिए कमाई में भी कमी आई है।”
– भोजपुरी फिल्मों के लिए बिहार में पब्लिक रिलेशन का काम देखने वाले और इस इंड्रस्टी पर नजर रखने वाले रंजन सिन्हा कहते हैं कि पहले भोजपुरी फिल्में 25 हफ्ते तक भी चलती थीं, लेकिन अब एक से दो हफ्ते ही चलती हैं। पांच साल में सुपर हिट फिल्मों में पटना से पाकिस्तान और निरहुआ हिन्दुस्तानी है।
– वे कहते हैं कि इस इंड्रस्ट्री के स्टार में अभी डिमांड में खेसारी लाल यादव, पवन सिंह और दिनेश लाल यादव निरहुआ हैं। वहीं रवि किशन हिन्दी और दक्षिण भारतीय फिल्मों में बिजी हैं तो मनोज तिवारी राजनीति में। भोजपुरी फिल्मों का सालाना टर्नओवर 200 करोड़ रुपए है। अभी यहां निरहुआ सुपरस्टार हैं। इनकी फीस आज सवा करोड़ है।

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