अद्धयात्म

यहां दुर्गा के रूप में पूजी जाती है महाभारत की एक राक्षसी

12_1445593670दस्तक टाइम्स/एजेंसी : पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम की पत्नी हिडिम्बा को कुल्लू राजवंश की दादी के रूप में जाना जाता है। यहां में लोग हिडिम्बा को देवी मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। पगोड़ा शैली में बने इस मंदिर के आस-पास का दृश्य इतना सुंदर है कि मनाली में आने वाले पर्यटक यहां जरूर आते हैं। इसी कारण के इस मंदिर की गिनती हिमाचल प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में की जाती है।

हिडिम्बा की देवी रूप में मान्यता

हिमाचल प्रदेश ते हर क्षेत्र के अपने-अपने देवी-देवता हैं, जिनकी मान्यता स्थानीय लोगों में भरपूर होती है। हिडिम्बा को स्थानीय लोग मां दुर्गा का अवतार मानते हैं और इसी रूप में उनकी पूजा भी करते हैं। कहा जाता है कि समय-समय पर हिडिम्बा ने यहां के लोगों को कई राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी, जिसकी वजह से लोग उन्हें मां दुर्गा का अवतार मानने लगे। मंदिर में हिडिम्बा देवी की लगभग साठ सेंटीमीटर ऊंची पत्थर से बनी मूर्ति है। इस मंदिर में सिर्फ सुबह के समय ही पूजा की जाती है।

कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के मध्य राजा बहादुर सिंह ने यहां इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह प्राचीन मंदिर ऐतिहासिक पगोड़ा शैली में बनाया गया है। मंदिर की छत चार तलों में बंटी हुई है। साथ ही मंदिर की तीन दिशाओं में बरामदे हैं, जहां लकड़ी पर बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर के मुख्य दरवाजे के ठीक ऊपर नवग्रहों की प्रतिमा बनी हुई है।

हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध कुल्लू दशहरे में भी देवी हिडिम्बा की इस प्रतिमा को शामिल किया जाता है। उत्सव में शामिल होने वाले सभी देवी-देवता और जनता भगवान रघुनाथ के साथ-साथ कुल्लू राजवंश की दादी हिडिम्बा देवी के भी दर्शन करते हैं।

पेड़ पर विराजित है घटोत्कच
मंदिर से लगभग 20 मीटर की दूरी पर भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच विराजमान हैं। यहां कोई मंदिर नहीं है। देवदार के वृक्ष पर ही घटोत्कच का निवास माना जाता है और यहीं पर उनकी पूजा की जाती है।
महाभारत काल से जुड़ा हिडिम्बा का एक प्रसंग

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