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यह है रियल लाइफ का सेंटा क्लॉज सिर्फ तोहफा नहीं कुछ ऐसे बांटते हैं राहत

लखनऊ। रोज-रोज कहां ढूंढेंगे सूरज, चांद, सितारों को, हम अपनी कोशिशों से रोशन कर देंगे इन अंधियारों को।। हर किसी को उपहार खुशी देते हैं। कभी-कभी इस खुशी में आंखे डबडबा जाती हैं तो किसी के लब पर अनायास ही दुआ आ जाती है। आभार के रूप में आशीर्वाद बरसता है तो चंद रुपयों से खरीदा गया गिफ्ट भी अनमोल हो जाता है। शहर के ऐसे ही कुछ सेंटा क्लॉज अपने तोहफों के जरिए जरूरतमंदों का जीवन आसान कर रहे हैं। कोई नि:शुल्क उपचार से दिव्यांगजन को समाज की मुख्य धारा से जोड़ रहा है तो कोई दवा और भोजन द्वारा जरूरतमंदों की मदद कर रहा है। कुछ ऐसे भी हैं जो शिक्षा का उपहार दे रहे हैं। वहीं एंबुलेंस सेवा और रक्तदान के जरिए जिंदगी बचाने में भी लगे हैं।यह है रियल लाइफ का सेंटा क्लॉज सिर्फ तोहफा नहीं कुछ ऐसे बांटते हैं राहत

क्रिसमस पर शहर के कुछ ऐसे ही सेंटा क्लॉज से मिलवाते हैं जिनके जीवन का फलसफा है: 

ये माना जिदंगी चार दिन की,

बहुत होते हैं यारों चार दिन भी। 

दिव्यांगजन को समानता का तोहफा

विवेकानंद पॉलीक्लीनिक में चिकित्सकीय सलाहाकार डॉ. अशोक कुमार अग्रवाल विगत चालीस वर्ष से चिकित्सकीय सेवा के जरिए दिव्यांगजन को समानता का तोहफा बांट रहे हैं। डॉ. अग्रवाल बताते हैं, 15 साल पहले की बात है। रायबरेली में एक चिकित्सकीय शिविर करके टीम मेंबर के साथ लौट रहा था। स्टेशन पर एक अनोखी ट्रेन खड़ी देखी। पता चला कि अंतरराष्ट्रीय संस्था इंपैक्ट इंडिया के लाइफ लाइन प्रोजेक्ट के अंतर्गत इस ट्रेन का संचालन किया जा रहा है। ट्रेन में चार पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड थे। देश के रिमोट एरिया में जाकर लोगों का इलाज करते थे। कान्सेप्ट रोचक लगा और मैं भी इससे जुड़ गया। उसके बाद शुरू हुआ सेवा का सिलसिला आज भी जारी है। 

पोलियो सर्जरी का उम्दा काम

रायबरेली, गोरखपुर, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, जम्मू और कश्मीर समेत कई राज्यों में पोलियो ग्रसित लोगों के उपचार के लिए कैंप आयोजित किए गए। इसमें ऐसे दिव्यांगजन को चिंहित किया गया जिनको सर्जरी की जरूरत थी। इनकी सर्जरी प्लान की। जिला अस्पताल में सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित बच्चों का उपचार किया। 

संवारा कुष्ठ रोगियों का जीवन

दस साल पहले की बात है। प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट और पीएमआर, केजीएमयू के संयुक्त तत्वावधान में नि:शुल्क कैंप लगाए गए। सीतापुर, बाराबंकी और हरदोई आदि जगहों पर जाकर कैंप किए। चिंहित मरीजों को प्लास्टिक सर्जरी के बाद पोस्ट ऑपरेटिव ट्रिटमेंट के लिए लिंब सेंटर में भर्ती किया गया। करीब 300 कुष्ठ रोगियों का जीवन संवरा है। गोरखपुर जाकर मस्तिष्क ज्वर पर सर्वे का मौका मिला। फिर उन मरीजों के पुनर्वास का काम शुरू किया। लिंब सेंटर में इन मरीजों के लिए जेई वार्ड शुरू किया। 

पत्नी की याद में सेवा

15 साल पहले कैंसर के कारण पत्नी स्नेहलता अग्रवाल का साथ छूट गया। उनकी याद में फैमिली मेंबर हर साल धनराशि जमा करते हैं। उस धनराशि से जरूरतमंदों को बैसाखी का वितरण किया जाता है। लिंब सेंटर में फंड भी जमा करवाते हैं, जिसका प्रयोग गरीब मरीजों के इलाज में किया जाता है। पोलियो, प्रोस्थेटिक एवं आर्थोटिक, कुष्ठ रोग, डिस्एबिलिटी एंड रिहैबिलिटेशन और प्रेरक लघु कथाएं शीर्षक से किताबें भी लिख चुके हैं। बैसाखी बैंक और पोलियो अस्पताल खोलने की इच्छा इनकी भविष्य से उम्मीद है। सूत्र वाक्य गिविंग एंड शेयरिंग है।

इलाज और शिक्षा का गिफ्ट 

प्रो. एवं हेड ह्यूमन एनाटोमी विभाग बीबीडी  डॉ. रमा शंखधर बोले मां ने कहा था कि दरवाजे पर आया कोई भी जरूरतमंद खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। मां के इन्हीं शब्दों पर चलकर डॉ. रमा शंखधर समाज को इलाज और शिक्षा का गिफ्ट दे रही हैं। बताती हैं, कार्निया प्रत्यारोपण के 20 से अधिक मरीजों को दवाई से लेकर ऑपरेशन तक की राहत दी है। हर साल स्कूल और रिमोट एरिया में पांच चिकित्सकीय कैंप करती हैं। जरूरतमंद महिलाओं को नि:शुल्क इलाज और परामर्श देती हैं। शताब्दी अस्पताल में डायबिटिक जिम निर्माण में योगदान रहा। वर्ष 2017 में साथियों के साथ मिलकर लिंब सेंटर को एंबुलेंस दिया। स्कूल को लिया गोद : अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर प्राथमिक विद्यालय, शंकरपुरवा को गोद लिया है। यहां पानी का बेहतर इंतजाम हो चुका है। चहारदीवारी बनाने की दिशा में काम चल रहा है। बिजली के लिए भी प्रयासरत हैं। 

हर बेटी जाए स्कूल

खुशी, दीपाली, अनामिका, रुपाली और दीपा ये उन लड़कियों के नाम हैं, जिन्हें पैसों को कमी के कारण परिवारीजन स्कूल भेजने में असमर्थ थे। डॉ. रमा ने इन्हें स्कूल से जोड़ा। तंबाकू कंट्रोल की दिशा में राख के ढेर शीर्षक से किताब भी लिखी। गोद लिए स्कूल में हर सुविधा मुहैया करानी है। एक अस्पताल खोलने की इच्छा इनकी भविष्य से उम्मीद है। सेवा परम धर्म को अपना सूत्र वाक्य मानते हैं। 

मिलने लगा वार्ड में खाना 

नर्सिंग ऑफीसर ट्रॉमा सेंटर आर्थोपेडिक यूनिट संतोष कुमार बताते हैं, तीन माह पहले की बात है। एक महिला भर्ती हुई थी, उसके दोनों हाथ कट चुके थे। उसकी अटेंडेंट एक बुजुर्ग महिला थी। उनके इलाज और खाने का प्रबंध किया। ख्याल आया कि ऐसे कितने ही मरीज होंगे जिनके पास खाने तक के पैसे नहीं होते होंगे। तब आर्थो यूनिट को छोड़कर अन्य वार्डों में सरकारी खाना आता था। इसी ख्याल के चलते पत्र लिखा और आर्थो यूनिट में भी भोजन मिलने लगा। नर्सिंग के अन्य साथियों के साथ मिलकर स्ट्रेचर आदि भी डोनेट करते हैं। निर्धन मरीजों के इलाज का भी प्रबंध करते हैं। सूत्र वाक्य सेवा का नाम ही नर्सिंग है। 

जी चाहे जब हमको आवाज दो

एके सिंह और अशोक कुमार गौतम अपने चालीस साथियों की टीम के साथ मिलकर विगत पांच वर्षों से दिव्यांगजन की मदद कर रहे हैं। 50 से अधिक मरीजों की प्रति वर्ष सेवा करते हैं। हर माह पांच जोड़ी बैसाखी निर्धन मरीजों को वितरित करते हैं। अशोक कुमार गौतम बताते हैं कि बैसाखी, व्हील चेयर, न्यूरो और स्पाइनल कॉर्ड की दिक्कत वाले मरीजों को कृत्रिम अंग और कैलिपर आदि देते हैं। अब तक 500 से ज्यादा उपकरण वितरित किए जा चुके हैं। सितंबर, 2018 में एक वृहद शिविर का आयोजन कर 200 दिव्यांगजन की मदद की जाएगी। 

गरीबों के लिए दवाइयों की नेमत 

हरिओम सेवा केंद्र के संस्थापक चंद्र किशोर रस्तोगी ने 22 जून, 1998 से केजीएमयू में मरीजों की सेवा शुरू की। चंद्र किशोर रस्तोगी बताते हैं, बेड टू बेड जाकर मरीजों की दिक्कत जानते हैं। उसके बाद जिन गरीब मरीजों को दवाइयों की जरूरत होती है, उन्हें नि:शुल्क दवाइयां वितरित करते हैं। केजीएमयू में सीता रसोई की भी शुरुआत की। इसमें आसरा लेने वाले मरीजों और उनके परिवारीजन के साथ अन्य जरूरतमंदों को दोपहर का भोजन नि:शुल्क कराया जाता है। 

अस्पताल से घर भी ले जाती एंबुलेंस 

आम तौर पर एंबुलेंस दुर्घटनाग्रस्त मरीज को अस्पताल ले जाती है। अस्पताल से मरीजों को घर ले जाने में निजी वाहनों का ही सहारा रह जाता है। ऐसे में निजी एंबुलेंस चालक मजबूरी का फायदा उठाते हैं। ऐसे लोगों के लिए अखिलेश दास एंबुलेंस सेवा राहत का नाम है। नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा के जरिए मरीज को घर से अस्पताल, पैथोलॉजी और वापस घर तक भी छोड़ा जाता है। मार्च 2008 से यह सेवा संचालित की जा रही है। पूरे शहर को सात जोन में बांटकर सात एंबुलेंस चलाई जा रही हैं। हर एंबुलेंस के लिए दो ड्राइवर, कंट्रोल रूम के लिए तीन ऑपरेटर और पांच सुपरवाइजर का स्टाफ है। प्रति दिन 25 से 30 मरीज इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं।

इन नंबरों पर कर सकते हैं संपर्क 7703007275, 0522-3911255। एंबुलेंस  शहीद पथ, पॉलीटेक्निक चौराहा, हनुमान सेतु परिवर्तन चौक, कपूरथला चौराहा, लॉरेटो कान्वेंट, बीबीडी चिनहट, हाथी पार्क के पास मौजूद रहती है।

रक्तदान से बड़ा कुछ नहीं 

हाई कोर्ट में प्रैक्टिशनर इंदिरा नगर निवासी अंबिका त्रिपाठी ने वर्ष 2003 में एक एनसीसी कैंप के दौरान ब्लड डोनेट किया था। उसके बाद तीन और कैंप में ब्लड दे चुकी हैं। कहती हैं, जीवनदान से बड़ा उपहार क्या हो सकता है। 

इंसान ही इंसान के काम आता है

बिजली विभाग में कार्यरत आलमबाग निवासी राजेंद्र विक्रम कहते हैं कि पहली बार वर्ष 2015 में एक जरूरतमंद को खून दिया था। पहली बार लगा है काम आदमी का आदमी के काम आना। तब से चार बार और ब्लड डोनेट कर चुके हैं। 

गिफ्ट का मकसद सिर्फ खुशी 

छात्रा आइटी कॉलेज सना रोज ने बताया कि गिफ्ट सिर्फ वस्तु नहीं है। यह खुशी का नाम है। यीशु मसीह ने हमें सिखाया है कि जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। यह भाव सिर्फ एक दिन के लिए हर दिन के लिए होना चाहिए। 

जो भावनाएं बयां करे वही गिफ्ट 

मेडिकल स्टूडेंट सीमा भारती ने बताया कि गिफ्ट हमारे व्यक्तित्व को भी बयां करते हैं। गिफ्ट भावनाओं को पहुंचाने का जरिया होते हैं। ईसा मसीह की शिक्षाएं हमें दयालु बनने की सीख देती हैं। यह दया सिर्फ इंसान नहीं पशु-पक्षी के लिए भी होनी चाहिए। 

 

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