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ये था भारत का महायात्री, दुनिया कहती है इसे महापंडित..!

Rahulएंजेंसी/ यात्राएं जिदंगी की रवानगी को तरोताजा करती हैं और उसकी रहस्‍यों की परतों को खोलने का सबसे बेहतरीन और अलहदा जरिया होती हैं। यदि किताब के चंद पन्‍ने दिल और दिमाग के अंदर हलचल पैदा करते हैं, तो वहीं एक छोटी सी यात्रा अनुभव बनकर किताबी ज्ञान को सबसे परिपक्‍व और गहरा बनाती है।

वैसे भी घुम्‍मकड़ी और यायावरी जिंदगी किसे पसंद नहीं। देश, दुनिया, जंगल, शहर, नगर, ग्राम घूमते हुए, कई तरह के समाज, संस्‍कृति, साहित्‍य, धर्म, दर्शन को जानना उसे समझना यह सब यात्राओं और घुमक्‍कड़ी के जरिये ही तो हो सकता है। यात्राएं अलग-अलग तरह लोगों के आचार-विचार, जीवन शैली और रहन-सहन से परिचित कराती है। यही वजह है कि दुनिया में यात्रियों ने ही अपने रोमांच, साहस, हिम्‍मत और जिज्ञासा के बूते दुनिया को खोजने और जोड़ने का काम किया।

दुनिया में एक से एक यात्री हुए, जिन्‍होंने देशों की खोज की, संस्‍कृति और सभ्‍यताओं को ढूंढ निकाला, ऐसा ही भारत का एक महायात्री था, जिसने गंथों, भाषाओं की खोज में दुनिया और देश भ्रमण किया।
फिर चाहे वह पुर्तगाली यात्री वास्‍कोडिगामा हो, जो अपनी अदम्‍य इच्‍छाशक्‍ति, जिज्ञासा के बूते सीधे समुद्री रास्‍ते से भारत पहुंचा और भारत की महान सभ्‍यता, संस्‍कृति की जानकारी दुनिया को दी, या फिर क्रिस्‍टोफर कोलंबस हो, जो भीषण समुद्री लहरों में अपनी हिम्‍मत और साहस के बूते यूरोप को अमेरिका से परिचित करा पाया। ऐसे ही चीन यात्री ह्यान सांग था, जिसने भारतीय संस्‍कृति को बेहद गहराई से जाना, समझा और उसकी एक मुकम्‍मल तस्‍वीर अपनी तरह से पूरी दुनिया के सामने रखी।

ऐसा ही एक घुमक्‍कड़ी, यायावर, महाविद्वान और जिज्ञासु भारत में हुआ, जिसका नाम था राहुल सांकृत्‍यायन। राहुल सांकृत्‍यान को भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में महापंडित की उपाधि दी जाती है। हिंदी के लेखक, साहित्‍यकार, यायावर, इतिहासविद्, तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार के रूप में पहचाने जाने वाले इस शख्‍स के आगे नेहरू से लेकर उस दौर के सभी विद्वान नतमस्‍तक थे।

यकीनन एक ऐसे समय में जबकि कंप्‍यूटर पर एक क्‍लिक के जरिये इंटरनेट सारी जानकारी हमारे सामने लेकर आ जाता है, ऐसे में राहुल सांकृत्‍यायन एक ऐसा व्‍यक्‍तित्‍व था, जिसने दुर्लभ ग्रंथों की खोज के लिए दुनिया के कई हिस्‍सों की यात्राएं की और आप आश्‍चर्य करेंगे की उन्‍हीं खोजे गए ग्रंथों को वे हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटकने के बाद, खच्चरों पर लादकर देश ले आए।

9 अप्रैल 1893 को उत्‍तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में पैदा हुए राहुल सांकृत्‍यायन का असली नाम केदारनाथ पांडेय था। वे एक किसान परिवार में जन्‍में थे। राहुल सांकृत्‍यायन की किशोरवस्‍था में ही शादी हो गई थी, जिसके बाद वे घर से भाग गए और साधु बन गए, लेकिन वे ज्‍यादा कहीं भी टिके नहीं और उसके बाद भारत भ्रमण करते रहे।

राहुल सांकृत्‍यायन की जिज्ञासा और रचनाधर्मिता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्‍हें 30 से ज्‍यादा भाषाएं आती थीं। सन् 1930 में श्रीलंका जाकर राहुल बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए वे ‘रामोदर साधु’ से ‘राहुल’ हो गए और सांकृत्य गोत्र के कारण सांकृत्यायन कहलाए। उनकी अकाट्य तर्कशक्ति और अनुपम ज्ञान भण्डार के चलते ही काशी के पंडितों ने उन्हें महापंडित कहा। बाद में महापंडित राहुल सांकृत्यायन हो गये। इसके बाद जिज्ञासु व घुमक्कड़ प्रवृत्ति के चलते राहुल ने साधु वेषधारी सन्यासी से लेकर वेदान्ती, आर्यसमाजी व किसान नेता एवं बौद्ध भिक्षु से लेकर साम्यवादी चिन्तक तक का लम्बा सफर तय किया।

राहुल सांस्‍कृत्‍यायान ने कला, संस्‍कृति, साहित्‍य के क्षेत्र में तकरीबन 40 से ज्‍यादा किताबें लिखीं। भारत का यह यात्री आज भी पूरी दुनिया के बुद्धजीवियों, संस्‍कृतिधर्मियों, खोजकर्ताओं और विद्वानों के बीच अपनी अनूठे घुमक्‍कड़ी जीवन के लिए सम्‍मान के साथ सांसे ले रहा है।

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