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ये हैं समुद्र में गोता लगाकर मछली पकड़ने वाली दादी-नानी

जापान में दादी और नानी की उम्र की महिलाएं जब काले रंग के वेटसूट में नजर आती हैं तो बेहद ऊर्जावान लगती हैं। इन महिलाओं की उम्र 60 से 80 के बीच है और प्रशांत महासागर में गोता लगाकर मछली पकड़ना इनका पेशा है। यहां इन्हें ‘अमा’ के नाम से जाना जाता है यानी ‘समुद्र की मां’।

ये हैं समुद्र में गोता लगाकर मछली पकड़ने वाली दादी-नानी

जापान में 60-80 की उम्र की इन पेशेवर मछुआरन महिलाओं को ‘अमा’ के नाम से जाना जाता है
तटवर्ती शहर टोबा में मछुआरन का काम करने वाली हिदेको कोगुची कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि मैं मछलियों के बीच जलपरी हूं और यह अनुभूति बेहद शानदार है।’ कोगुची पिछले तीस सालों से समुद्र में गोता लगा रही हैं और उन्हें उम्मीद है कि अगले 20 साल तक वह यह काम करती रहेंगी।

गोताखोरी का मौसम यहां साल के 10 महीने रहता है। इस दौरान मछली पकड़ने वालों के स्थानीय संघ मौसम के पूर्वानुमानों के बाद लाउड स्पीकरों पर इन महिलाओं को आवाज लगाते हैं। हर अमा के हाथ में बहुत मामूली औजार होते हैं। समुद्र तल पर यह महिलाएं अपने छल्लों को सेट करती है और फिर पानी में गोता लगाती है। कई बार वे अंदर अपनी सांस मिनट भर से ज्यादा तक रोके रखती हैं। एक बार में बिना थके वो दर्जनों बार गोता लगाती हैं।

2000 ही अमा बची हैं

मछली पकड़ने वाली अमा अब जापान में महज दो हजार ही बची हैं। 1930 के दशक में यह संख्या 12 हजार से ऊपर थी। दक्षिण कोरिया में भी यह पेशा अभी चल रहा है। यहां गोताखोरों को हाइन्यो कहा जाता है। हालांकि यहां भी उनकी तादाद बहुत कम रह गई है। जापान में यह परंपरा कम से कम 3000 साल पुरानी है। यह पेशा कभी सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं रखा गया लेकिन इसमें ज्यादातर उन्हीं का दबदबा रहा है। स्थानीय फिशिग कोऑपरेटिव के निदेशक साकिची ओकुदा बताते हैं कि पुराने दिनों में युवतियां मिडिल स्कूल से निकलने के बाद अमा बन जाती थीं।

पीढ़ियों से चला आ रहा कौशल
कोगुची और उनकी बहन ने भी अपना यह कौशल अपने परिवार में सीखा, जो उनके यहां कई पीढ़ियों से चला आ रहा है। हालांकि अब यह उनसे आगे नहीं जाएगा। उनके बच्चे अच्छी नौकरी की तलाश में कहीं और चले गए हैं। इन महिलाओं को अच्छे पैसे नहीं मिलते और खतरा भी रहता है। यही वजह है कि अमा खुद भी नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे यह काम करें।

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