लखनऊ के एक किसान के घर जन्मे इस बच्चे को लोगों ने माना हनुमान
बीकेटी में रविवार को किसान राधेश्याम यादव के घर जन्मे एक अर्द्ध विकसित भ्रूण को लोगों ने हनुमानजी मानकर आस्था का केंद्र बना दिया। ग्रामीण उसकी पूजा-अर्चना करने लगे। उसे देखने के लिए आसपास के गांवों से भी भारी भीड़ जुटी और चढ़ावा चढ़ने लगा।
पर, इन हनुमान की माताओं के लिए सबक है। मेडिकल साइंस कहता है अगर फॉलिक एसिड लिया होता तो यह भ्रूण भी विकसित होता। इस भ्रूण के बहाने विशेषज्ञ चिकित्सकों से बात की उन्हें इसकी तस्वीरें दिखाईं और इसके पीछे की वजहों को जानने की कोशिश की।
एसजीपीजीआई की स्त्री व भ्रूणरोग विशेष डॉ. मंदाकिनी प्रधान कहती हैं दरअसल यह न्यूरल ट्यूब की विकृति का मामला है। चिकित्सकीय भाषा में इसे एनइनसिफैली कहा जाता है। इनसिफैली यानी दिमाग, एन का मतलब अनुपस्थिति। डॉ. प्रधान बताती हैं कि देश में एक हजार गर्भस्थ शिशुओं में से एक मामला ऐसा हो सकता है।
ऐसे शिशु की मृत्यु 100 प्रतिशत निश्चित मानी जाती है। इसलिए 20 सप्ताह से पहले इसका पता चलने पर अबॉर्शन करवा दिया जाता है। केजीएमयू की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. एसपी जैसवार बताती हैं कि अल्ट्रासाउंड में इस विकृति का पता चल जाता है और समय पर अबॉर्शन करा दिया जाता है।
लेकिन देर होने पर 20 हफ्ते से बड़े भ्रूण को टर्मिनेट करने की अनुमति हमारे कानून में नहीं है, ऐसे में जरूरी है कि गर्भवती महिलाएं अपना अल्ट्रा साउंड समय-समय पर करवाएं।
डॉ. मंदाकिनी बताती हैं कि जो महिलाएं बच्चे की प्लानिंग कर रही हैं, उन्हें दो महीने पहले से फॉलिक एसिड की टैबलेट लेना शुरू कर देना चाहिए। ऐसा करने पर गर्भवती होने पर उनके भ्रूण को इसकी कमी नहीं होगी। गर्भवती होने के तीन महीने बाद तक इसे जारी रखें।
फॉलिक एसिड बी-कॉप्लेक्स समूह का विटामिन है। डॉ. प्रधान ने बताया कि यह हरी पत्तेदार सब्जियों में होता है। वहीं भिंडी, बींस, गहरे हरी रंग की सब्जियों और खट्टे फलों में भी यह प्रचुर मात्रा में मिलता है। फॉलिक एसिड की 5 ग्राम की गोलियां दवा के रूप में दी जाती हैं।
डॉ. जैसवार कहती हैं कि गर्भवती होने के 21वें दिन भ्रूण बच्चेदानी में इम्प्लांट होता है। इससे पहले ही उसका विकास शुरू हो जाता है। पांचवें हफ्ते तक उसका सिर और गर्दन बन जाते हैं। इनके विकास के लिए उसी समय फॉलिक एसिड चाहिए।
यह न मिले तो इन अंगों के अविकसित रह जाने की आशंका रहती है। बाद में फॉलिक एसिड देने पर भी कोई फायदा नहीं होता।
अगर भ्रूण में एनइनसिफैली है तो यह 8 से 10 हफ्ते की उम्र में पता चल सकता है। इसके लिए अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी होता है।
डॉ. प्रधान बताती है कि एनइनसिफैली एक बार होने पर फिर से होने की आशंका 5 प्रतिशत तक रहती है और दो दफा होने पर यह तीसरी गर्भावस्था में 10 प्रतिशत हो जाती है।