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लीलाधर ने हौसले से पछाड़ दिया लाचारी को

phpThumb_generated_thumbnailएजेन्सी/इन्सान में कुछ करने का जुनून हो तो परिस्थितियां कभी भी बाधा नहीं बन सकती। भादवांवाला का लीलाधर इस बात को साबित कर रहा है। कला वर्ग 12वीं का अंतिम पेपर देने आए लीलाधर के दोनों हाथ 31 दिसंबर 2009 को खेत में पानी लगाते समय बर्मा मशीन में आने के बाद काटने पड़े थे। तब लीलाधर छठी कक्षा में अध्ययनरत था। 
 
हाथ कटने के बावजूद उसने हौसला नहीं हारा और पढ़ाई को लगातार जारी रखते हुए अपने पैरों से लिखना शुरू कर दिया। 12वीं कला वर्ग का अंतिम पेपर शनिवार को रिड़मलसर के राजकीय सीनियर सैकंडरी विद्यालय में दिया। बेहद ही गरीब परिवार के लीलाधर ने सरकारी सहायता के लिए भरसक प्रयास किया तो इसे किसी योजना के तहत 500 रुपए प्रति माह मिल रहे हैं। 
 
बकौल लीलाधर जब हाथ कटे तो वह छोटा था, लेकिन उसके यह समझ में आ गया कि जिंदगी में आगे बढऩा आसान नहीं है कड़ी मेहनत और विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए ही उसे मंजिल को पाना है। लीलाधर ने बताया कि उसके माता-पिता मजदूरी करते हैं, लेकिन हर स्थिति में हौसला बढ़ाया। छठी में हाथ कटने के बाद पढ़ाई जारी रखनी चाही तो उसके पास लिखने के लिए विकल्प के तौर पर पैर ही थे, धीरे धीरे प्रयास के बाद उसने पैरों से लिखना सीख लिया। यह युवक आज बिना किसी सहयोगी के पेपर हल करता है। घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। उसे शिक्षा पर ही भरोसा है जिसके भरोसे जीवन की गाड़ी चल सके। 

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